- – यह गीत फागुन के रंगीन मौसम और होली के त्योहार की खुशियों को दर्शाता है।
- – कान्हा (श्री कृष्ण) और राधा के प्रेम को बृज की पृष्ठभूमि में खूबसूरती से प्रस्तुत किया गया है।
- – गीत में फागुन के रंगों में भीगे श्याम सांवरा की महिमा और उनके साथ खेलने की बात कही गई है।
- – सखियों के साथ मिलकर फाग खेलना और कान्हा की बंसी की मधुर धुन का जिक्र है, जो जीवन को सुरम्य बनाती है।
- – यह गीत प्रेम, रंग और उत्सव की भावना से भरपूर है, जो बृज की सांस्कृतिक विरासत को जीवंत करता है।

तर्ज – बना रे बागा में झूला घाल्या
कान्हा रे फागुण की रुत आयी रे,
कान्हा रे फागुण की रुत आयी,
रंगीलो,
रंगीलो,
रंगीलो फाग खिलाजा म्हारा श्याम सांवरा।।
राधा रे बृज में मिले कन्हाई,
राधा रे बृज में मिले कन्हाई,
थारा प्यार का,
थारा प्यार का,
थारा प्यार का रंग में भीजे म्हारा श्याम सांवरा,
कान्हा रे फागण की रुत आयी,
रंगीलो फाग खिलाजा म्हारा श्याम सांवरा।।
कान्हा रे तू तो बेगो आजे रे,
कान्हा रे तू तो बेगो आजे रे,
फागुण को,
फागुण को,
फागुण को रंग जमाजे म्हारा श्याम सांवरा,
कान्हा रे फागण की रुत आयी,
रंगीलो फाग खिलाजा म्हारा श्याम सांवरा।।
सखियो रे आपा बृज में चला रे,
सखियो रे आपा बृज में चला रे,
सब हिल मिल,
सब हिल मिल,
सब हिल मिल खेलो फाग म्हारा श्याम सांवरा,
कान्हा रे फागुण की रुत आयी,
रंगीलो फाग खिलाजा म्हारा श्याम सांवरा।।
कान्हा रे ऐसी बंसी सुना जा रे,
कान्हा रे ऐसी बंसी सुना जा रे,
म्हारो जीवन,
म्हारो जीवन,
म्हारो जीवन बने सुरिलो म्हारा श्याम सांवरा,
कान्हा रे फागुण की रुत आयी,
रंगीलो फाग खिलाजा म्हारा श्याम सांवरा।।
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