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क्रोधात् भवति संमोहः in Hindi/Sanskrit

क्रोधाद्भवति संमोहः संमोहात्स्मृतिविभ्रमः।
स्मृतिभ्रंशाद् बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति।

Krodhad Bhavati Sammohah in English

Krodhadbhavati sammohah sammohatsmritivibhramah.
Smritibhramshad buddhinasho buddhinashat pranashyati.

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क्रोधात् भवति संमोहः का अर्थ

यह श्लोक भगवद गीता के अध्याय 2, श्लोक 63 से लिया गया है। इस श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को समझा रहे हैं कि क्रोध किस प्रकार से एक व्यक्ति के विनाश का कारण बनता है।

श्लोक का अर्थ:

  1. क्रोधाद्भवति संमोहः – क्रोध से मनुष्य का संमोह (भ्रम) उत्पन्न होता है। जब कोई व्यक्ति क्रोधित होता है, तो उसकी सोचने-समझने की शक्ति क्षीण हो जाती है और वह उचित-अनुचित का विवेक खो बैठता है। इस अवस्था में वह भ्रमित हो जाता है और गलत निर्णय लेने की संभावना बढ़ जाती है।
  2. संमोहात्स्मृतिविभ्रमः – संमोह या भ्रम की अवस्था में व्यक्ति की स्मृति या स्मरण शक्ति में विकार उत्पन्न हो जाता है। वह भूल जाता है कि सही और गलत क्या है, और अपने पूर्व के ज्ञान और अनुभवों को भी भूल जाता है।
  3. स्मृतिभ्रंशाद् बुद्धिनाशः – जब स्मृति में विकार हो जाता है, तो व्यक्ति की बुद्धि नष्ट हो जाती है। इसका मतलब है कि उसकी निर्णय लेने की शक्ति, विवेक और समर्पण की भावना समाप्त हो जाती है।
  4. बुद्धिनाशात्प्रणश्यति – जब बुद्धि नष्ट हो जाती है, तो व्यक्ति पूरी तरह से विनाश की ओर अग्रसर हो जाता है। वह सही मार्ग से भटक जाता है और उसके जीवन में अज्ञानता, असफलता और दुख का प्रवेश हो जाता है।

सारांश:

इस श्लोक में बताया गया है कि क्रोध से कैसे व्यक्ति का मानसिक और बौद्धिक पतन होता है और अंततः यह उसे विनाश की ओर ले जाता है। इसलिए, मनुष्य को क्रोध से बचना चाहिए और अपने मन पर नियंत्रण रखना चाहिए। यह संदेश जीवन में धैर्य, विवेक और संयम की महत्ता को दर्शाता है।

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