धर्म दर्शन वॉट्स्ऐप चैनल फॉलो करें Join Now

शेयर, लाइक या कॉमेंट जरूर करें!

मधुराष्टकम् अधरं मधुरं in Hindi/Sanskrit

अधरं मधुरं वदनं मधुरं नयनं मधुरं हसितं मधुरं ।
हृदयं मधुरं गमनं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥१॥

वचनं मधुरं चरितं मधुरं वसनं मधुरं वलितं मधुरं ।
चलितं मधुरं भ्रमितं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥२॥

वेणुर्मधुरो रेणुर्मधुरः पाणिर्मधुरः पादौ मधुरौ ।
नृत्यं मधुरं सख्यं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥३॥

गीतं मधुरं पीतं मधुरं भुक्तं मधुरं सुप्तं मधुरं ।
रूपं मधुरं तिलकं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥४॥

करणं मधुरं तरणं मधुरं हरणं मधुरं रमणं मधुरं ।
वमितं मधुरं शमितं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥५॥

गुञ्जा मधुरा माला मधुरा यमुना मधुरा वीची मधुरा ।
सलिलं मधुरं कमलं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥६॥

गोपी मधुरा लीला मधुरा युक्तं मधुरं मुक्तं मधुरं।
दृष्टं मधुरं सृष्टं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥७॥

गोपा मधुरा गावो मधुरा यष्टिर्मधुरा सृष्टिर्मधुरा ।
दलितं मधुरं फलितं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥८॥

Madhurashtakam Adhram Madhuram in English

Adharam madhuram vadanam madhuram nayanam madhuram hasitam madhuram
Hridayam madhuram gamanam madhuram Madhuradhipate’rakhilam madhuram ॥1॥

Vachanam madhuram charitam madhuram vasanam madhuram valitam madhuram
Chalitam madhuram bhramitam madhuram Madhuradhipate’rakhilam madhuram ॥2॥

Venur madhuro renur madhurah panir madhurah padau madhurau
Nrityam madhuram sakhyam madhuram Madhuradhipate’rakhilam madhuram ॥3॥

Gitam madhuram pitam madhuram bhuktam madhuram suptam madhuram
Rupam madhuram tilakam madhuram Madhuradhipate’rakhilam madhuram ॥4॥

Karanam madhuram taranam madhuram haranam madhuram ramanan madhuram
Vamitam madhuram shamitam madhuram Madhuradhipate’rakhilam madhuram ॥5॥

Gunja madhura mala madhura Yamuna madhura vichi madhura
Salilam madhuram kamalam madhuram Madhuradhipate’rakhilam madhuram ॥6॥

Gopi madhura leela madhura yuktam madhuram muktam madhuram
Drishtam madhuram srishtam madhuram Madhuradhipate’rakhilam madhuram ॥7॥

Gopa madhura gavo madhura yashtir madhura srishtir madhura
Dalitam madhuram phalitam madhuram Madhuradhipate’rakhilam madhuram ॥8॥

मधुराष्टकम् अधरं मधुरं PDF Download

मधुराष्टकम् अधरं मधुरं का अर्थ

मधुराष्टकम् एक प्रसिद्ध भक्ति स्तोत्र है जो भगवान श्रीकृष्ण की दिव्यता और उनके हर एक पहलू की मिठास का गुणगान करता है। इसका प्रत्येक श्लोक श्रीकृष्ण के सौंदर्य, उनके चरित्र, और उनके कार्यों की मधुरता की स्तुति करता है। यह स्तोत्र भक्ति और प्रेम की पराकाष्ठा को दर्शाता है और भक्तों के हृदय में कृष्ण के प्रति अपार प्रेम और भक्ति उत्पन्न करता है।

पहला श्लोक: श्रीकृष्ण के चेहरे की मधुरता

अधरं मधुरं वदनं मधुरं नयनं मधुरं हसितं मधुरं।
हृदयं मधुरं गमनं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥१॥

अधर और वदन की मधुरता

अधरं मधुरं का अर्थ है श्रीकृष्ण के होंठों की मिठास। उनके अधर इतने मधुर हैं कि उनके ऊपर हर कोई मोहित हो जाता है।
वदनं मधुरं का मतलब है उनका चेहरा भी अत्यंत मधुर और आकर्षक है। यह वदन, जो प्रेम और करुणा से भरा हुआ है, हर किसी को उनकी ओर खींचता है।

नयन और हसित की मधुरता

नयनं मधुरं – श्रीकृष्ण के नेत्रों की मधुरता का कोई मुकाबला नहीं। उनकी आँखें प्रेम, दया और करुणा से भरी रहती हैं, जो हर जीव को आनंद देती हैं।
हसितं मधुरं – उनका हंसना भी मधुर है। उनकी हंसी में इतनी मिठास है कि वह किसी का भी मन मोह लेती है और दुख को खुशी में बदल देती है।

हृदय और गमन की मधुरता

हृदयं मधुरं – श्रीकृष्ण का हृदय प्रेम से परिपूर्ण है। उनके हृदय में जो दया, प्रेम और भक्ति का भाव है, वह अत्यंत मधुर है।
गमनं मधुरं – उनके चलने की शैली में भी एक विशेष मिठास है। जब वह चलते हैं, तो ऐसा लगता है मानो सृष्टि स्वयं नृत्य कर रही हो। उनके कदमों की आवाज भी संगीतमय होती है।

संपूर्ण मधुरता

मधुराधिपते रखिलं मधुरं – इस पंक्ति का अर्थ है कि श्रीकृष्ण, जो मधुरता के अधिपति हैं, उनकी संपूर्णता ही मधुर है। उनके हर अंग, हर कार्य, हर भाव में मधुरता विद्यमान है।

दूसरा श्लोक: श्रीकृष्ण के चरित्र की मधुरता

वचनं मधुरं चरितं मधुरं वसनं मधुरं वलितं मधुरं।
चलितं मधुरं भ्रमितं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥२॥

वचन और चरित्र की मधुरता

वचनं मधुरं – श्रीकृष्ण का वचन भी अत्यंत मधुर है। जब वह बोलते हैं, तो ऐसा लगता है जैसे अमृत बह रहा हो। उनके शब्दों में शांति, प्रेम, और सच्चाई होती है।
चरितं मधुरं – श्रीकृष्ण का चरित्र, यानी उनके कर्म और उनकी जीवन शैली भी मधुर है। उनका हर कार्य दूसरों के कल्याण और आनंद के लिए होता है।

वसन और वलित की मधुरता

वसनं मधुरं – श्रीकृष्ण जो वस्त्र धारण करते हैं, वे भी मधुर होते हैं। उनके परिधान, चाहे वह पीताम्बर हो या कोई अन्य वस्त्र, उनकी शोभा और मधुरता को और बढ़ा देते हैं।
वलितं मधुरं – उनके चलने और मुड़ने की अदा भी अद्भुत और मधुर होती है। उनके प्रत्येक क्रियाकलाप में सौंदर्य और आकर्षण छिपा होता है।

चलन और भ्रमण की मधुरता

चलितं मधुरं – श्रीकृष्ण का चलना भी मधुर है। उनके कदमों की ध्वनि और उनकी चाल, दोनों में ही मधुरता है।
भ्रमितं मधुरं – जब वह इधर-उधर घूमते हैं, तो वह दृश्य भी बहुत मधुर और आकर्षक होता है।

तीसरा श्लोक: श्रीकृष्ण के वेणु (बांसुरी) की मधुरता

वेणुर्मधुरो रेणुर्मधुरः पाणिर्मधुरः पादौ मधुरौ।
नृत्यं मधुरं सख्यं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥३॥

वेणु और रेणु की मधुरता

वेणुर्मधुरो – श्रीकृष्ण की बांसुरी की ध्वनि इतनी मधुर होती है कि वह सबको मोहित कर देती है। बांसुरी की वह ध्वनि केवल संगीत नहीं, बल्कि उसमें प्रेम और करुणा का संदेश होता है।
रेणुर्मधुरः – रेणु का अर्थ है धूल या रजकण। जब श्रीकृष्ण चलते हैं, तो उनके चरणों से उठने वाली धूल भी मधुर होती है। यह धूल उनके भक्तों के लिए पवित्र होती है।

पाणि और पाद की मधुरता

पाणिर्मधुरः – श्रीकृष्ण के हाथों की मधुरता भी विशेष है। उनके हाथों से जब वह बांसुरी बजाते हैं या भक्तों को आशीर्वाद देते हैं, तो वह हाथ प्रेम और दया का प्रतीक बन जाते हैं।
पादौ मधुरौ – श्रीकृष्ण के चरण भी अत्यंत मधुर और पवित्र हैं। उनके चरण कमल के समान कोमल और आकर्षक होते हैं, और भक्तजन उनकी चरण धूलि के लिए तरसते हैं।

नृत्य और सखा की मधुरता

नृत्यं मधुरं – श्रीकृष्ण का नृत्य भी मधुर होता है। जब वह नृत्य करते हैं, तो ऐसा लगता है मानो प्रकृति स्वयं उनके साथ नृत्य कर रही हो। उनका नृत्य सृष्टि के हर जीव को आनंद प्रदान करता है।
सख्यं मधुरं – उनके मित्रता में भी मधुरता है। श्रीकृष्ण का अपने सखाओं के साथ जो संबंध है, वह प्रेम, विश्वास, और मधुरता से भरा होता है।

चौथा श्लोक: श्रीकृष्ण के गीत और रूप की मधुरता

गीतं मधुरं पीतं मधुरं भुक्तं मधुरं सुप्तं मधुरं।
रूपं मधुरं तिलकं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥४॥

गीत और पीने की मधुरता

गीतं मधुरं – श्रीकृष्ण के गाए गए गीतों में अत्यधिक मिठास है। उनके गीतों की ध्वनि इतनी मधुर है कि वह हर किसी के दिल को छू जाती है। उनके गीत जीवन के हर पहलू को संगीतमय बना देते हैं और आत्मा को आनंद प्रदान करते हैं।
पीतं मधुरं – यहाँ श्रीकृष्ण के पीने का जिक्र है। वह जब कुछ भी पीते हैं, चाहे वह दूध हो या पानी, वह क्षण भी अत्यंत मधुर हो जाता है। उनके पीने के अंदाज में भी एक अनोखी मिठास है।

भोजन और सोने की मधुरता

भुक्तं मधुरं – श्रीकृष्ण का भोजन करना भी मधुर है। जब वह भोजन ग्रहण करते हैं, तो वह दृश्य भक्तों के लिए अत्यंत मधुर और पूजनीय हो जाता है।
सुप्तं मधुरं – श्रीकृष्ण की निद्रा में भी मधुरता होती है। जब वह सोते हैं, तो ऐसा लगता है मानो सम्पूर्ण जगत में शांति और आनंद फैल गया हो। उनके सोने का दृश्य भी भक्तों के लिए अत्यंत सुखद होता है।

रूप और तिलक की मधुरता

रूपं मधुरं – श्रीकृष्ण का रूप अत्यंत सुंदर और मनमोहक है। उनका रूप मधुरता का साकार रूप है, जिसमें प्रेम, दया, और सौंदर्य का मेल होता है।
तिलकं मधुरं – उनके माथे पर लगाया गया तिलक भी मधुरता से भरा होता है। तिलक उनकी शोभा को और बढ़ाता है, और उनके भक्तों के लिए वह तिलक दिव्यता का प्रतीक बन जाता है।

पाँचवां श्लोक: श्रीकृष्ण के कर्मों की मधुरता

करणं मधुरं तरणं मधुरं हरणं मधुरं रमणं मधुरं।
वमितं मधुरं शमितं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥५॥

कर्म और तरण की मधुरता

करणं मधुरं – श्रीकृष्ण के सभी कार्य अत्यंत मधुर और दिव्य होते हैं। उनके द्वारा किए गए हर एक कार्य में प्रेम और दया का भाव होता है, जिससे उनके भक्तों के जीवन में मिठास भर जाती है।
तरणं मधुरं – उनका तरण, यानी किसी कठिनाई या बाधा से पार करना भी मधुर है। जब वह किसी कठिन परिस्थिति को हल करते हैं या किसी का उद्धार करते हैं, तो वह क्षण भी अत्यंत मधुर और प्रेरणादायक हो जाता है।

हरण और रमण की मधुरता

हरणं मधुरं – श्रीकृष्ण का किसी चीज को हरण करना, चाहे वह किसी बुराई को नष्ट करना हो या किसी का उद्धार करना, वह मधुर होता है। उनके कार्यों में कभी भी कोई हिंसा या कठोरता नहीं होती, बल्कि प्रेम और करुणा से भरे होते हैं।
रमणं मधुरं – श्रीकृष्ण के रमण, यानी उनके साथ समय बिताने का अनुभव भी अत्यंत मधुर होता है। उनके साथ बिताया हर क्षण भक्तों के जीवन में आनंद और शांति लाता है।

वमन और शमन की मधुरता

वमितं मधुरं – श्रीकृष्ण जो कुछ भी त्यागते हैं, वह भी मधुर होता है। उनके द्वारा छोड़ी गई चीजों में भी पवित्रता और दिव्यता होती है।
शमितं मधुरं – जब वह किसी को शांति प्रदान करते हैं, तो वह क्षण भी अत्यंत मधुर होता है। उनके द्वारा दी गई शांति आत्मा को संतुष्टि और आनंद प्रदान करती है।

छठा श्लोक: श्रीकृष्ण की प्रकृति की मधुरता

गुञ्जा मधुरा माला मधुरा यमुना मधुरा वीची मधुरा।
सलिलं मधुरं कमलं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥६॥

गुञ्जा और माला की मधुरता

गुञ्जा मधुरा – गुञ्जा बीजों की माला जो श्रीकृष्ण पहनते हैं, वह भी मधुर होती है। उनके द्वारा धारण की गई हर वस्तु पवित्र और दिव्य होती है।
माला मधुरा – उनके गले की माला, जो विभिन्न फूलों से बनी होती है, वह भी मधुरता का प्रतीक होती है। माला उनके व्यक्तित्व की शोभा को और बढ़ाती है और उनके भक्तों के लिए वह माला अत्यंत पूजनीय होती है।

यमुना और वीचि की मधुरता

यमुना मधुरा – यमुना नदी, जो श्रीकृष्ण के साथ गहरे रूप से जुड़ी हुई है, वह भी मधुर है। यमुना का जल उनके स्पर्श से पवित्र हो जाता है और भक्तों के लिए यमुना नदी की हर बूंद दिव्यता से भरी होती है।
वीची मधुरा – यमुना की लहरें भी मधुर होती हैं। जब ये लहरें श्रीकृष्ण के चरणों को स्पर्श करती हैं, तो वे और भी मधुर और पवित्र हो जाती हैं।

सलिल और कमल की मधुरता

सलिलं मधुरं – यमुना का जल भी मधुर होता है। यह जल भक्तों के लिए अमृत के समान होता है, जो उनकी आत्मा को पवित्र और शुद्ध करता है।
कमलं मधुरं – यमुना में खिला हुआ कमल भी अत्यंत मधुर होता है। श्रीकृष्ण के साथ जुड़ी हर वस्तु, चाहे वह कमल हो या यमुना का जल, दिव्यता और मधुरता से परिपूर्ण होती है।

सातवां श्लोक: गोपियों और लीला की मधुरता

गोपी मधुरा लीला मधुरा युक्तं मधुरं मुक्तं मधुरं।
दृष्टं मधुरं सृष्टं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥७॥

गोपी और लीला की मधुरता

गोपी मधुरा – श्रीकृष्ण की गोपियाँ, जो उनके साथ लीला करती हैं, वे भी अत्यंत मधुर होती हैं। उनके और श्रीकृष्ण के बीच का प्रेमपूर्ण संबंध इतना मधुर और दिव्य है कि वह हर किसी को आनंद प्रदान करता है।
लीला मधुरा – श्रीकृष्ण की लीला, यानी उनके खेल और क्रियाएँ भी अत्यंत मधुर होती हैं। उनके द्वारा की गई हर लीला में प्रेम, करुणा, और आनंद का भाव होता है।

युक्त और मुक्त की मधुरता

युक्तं मधुरं – श्रीकृष्ण का किसी भी कार्य में सम्मिलित होना भी मधुर होता है। उनके द्वारा किए गए हर कार्य में प्रेम और दया का भाव होता है।
मुक्तं मधुरं – उनके द्वारा दी गई मुक्ति भी मधुर होती है। जब वह अपने भक्तों को मोक्ष प्रदान करते हैं, तो वह क्षण भी दिव्यता और मधुरता से भरा होता है।

दृष्टि और सृष्टि की मधुरता

दृष्टं मधुरं – श्रीकृष्ण की दृष्टि भी मधुर होती है। जब वह किसी को देखते हैं, तो उनकी नजर में प्रेम और करुणा होती है, जिससे वह व्यक्ति आनंद से भर जाता है।
सृष्टं मधुरं – उनकी बनाई हुई सृष्टि भी मधुर होती है। उन्होंने जो कुछ भी सृजन किया है, वह प्रेम, सौंदर्य, और मधुरता से भरा हुआ है।

आठवां श्लोक: ग्वालों और सृष्टि की मधुरता

गोपा मधुरा गावो मधुरा यष्टिर्मधुरा सृष्टिर्मधुरा।
दलितं मधुरं फलितं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥८॥

गोपा और गाएं की मधुरता

गोपा मधुरा – श्रीकृष्ण के ग्वाल मित्र, जिन्हें गोप कहा जाता है, वे भी मधुर हैं। उनके साथ कृष्ण के रिश्ते में मित्रता, स्नेह, और अनंत प्रेम की मिठास है। उनके साथ बिताए गए पल खेल और हंसी से भरे रहते हैं, जो जीवन को आनंदमय बनाते हैं।
गावो मधुरा – गोपियों और गायों के बीच का विशेष संबंध भी मधुर है। गायें श्रीकृष्ण की बहुत प्रिय थीं, और उनके द्वारा गायों के प्रति दिखाया गया प्रेम और देखभाल अत्यंत मधुर है। उनके साथ बिताया गया समय एक दिव्य प्रेम का उदाहरण है।

यष्टि और सृष्टि की मधुरता

यष्टिर्मधुरा – श्रीकृष्ण की यष्टि (छड़ी), जिसे वे ग्वालों के रूप में अपने साथ रखते थे, वह भी मधुर है। यह यष्टि उनकी सरलता और प्रेम की प्रतीक है, जो गायों की देखभाल करते समय उन्हें मार्गदर्शन प्रदान करती थी।
सृष्टिर्मधुरा – श्रीकृष्ण द्वारा सृजित सृष्टि मधुरता से परिपूर्ण है। इस सृष्टि का हर तत्व, चाहे वह पेड़, पौधे हों या जीव-जंतु, सभी में मधुरता और सौंदर्य व्याप्त है।

दलित और फलित की मधुरता

दलितं मधुरं – जब श्रीकृष्ण कुछ भी नष्ट करते हैं, चाहे वह किसी बुराई का अंत हो, वह कार्य भी अत्यंत मधुर होता है। उनके द्वारा नष्ट किया गया कुछ भी सृष्टि के कल्याण के लिए होता है।
फलितं मधुरं – श्रीकृष्ण के द्वारा किए गए कार्यों का परिणाम, यानी फल भी मधुर होता है। उनके प्रत्येक कर्म से प्रेम, करुणा, और संतुलन की स्थापना होती है, जो समस्त सृष्टि के लिए कल्याणकारी होता है।

मधुरता का सामर्थ्य

श्रीकृष्ण, जो मधुरता के अधिपति हैं, उनकी संपूर्णता मधुर है। यह स्तोत्र, जिसे मधुराष्टकम् कहा जाता है, उनके हर एक पहलू की मधुरता की स्तुति करता है। उनके होंठों से लेकर उनके चलने तक, उनके गीतों से लेकर उनके कर्मों तक, उनके मित्रों से लेकर उनकी सृष्टि तक – हर चीज में एक अनूठी मिठास और आकर्षण है।

मधुराष्टकम् का भक्ति पर प्रभाव

मधुराष्टकम् केवल एक स्तोत्र नहीं है, बल्कि यह भक्तों के हृदय में श्रीकृष्ण के प्रति अनंत प्रेम, भक्ति, और समर्पण का भाव जगाता है। यह स्तुति श्रीकृष्ण की प्रत्येक गतिविधि की मधुरता का गुणगान करती है, जिससे भक्तों के हृदय में उनके प्रति गहरी श्रद्धा उत्पन्न होती है। आइए इसे और विस्तार से समझते हैं।

श्रीकृष्ण की हर क्रिया में दिव्यता

मधुराष्टकम् के माध्यम से हमें यह एहसास होता है कि श्रीकृष्ण की हर क्रिया दिव्य है। उनकी साधारण सी गतिविधियाँ, जैसे उनकी चाल, उनका हंसना, उनका गायन – सबमें इतनी मिठास है कि भक्तजन उनके हरेक रूप को पूजनीय मानते हैं। जब भगवान की हर क्रिया इतनी मधुर होती है, तो यह भक्तों को यह सिखाती है कि जीवन की हर गतिविधि में दिव्यता होनी चाहिए।

मधुराष्टकम् में श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं का प्रभाव

मधुराष्टकम् के कई श्लोकों में श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं का भी वर्णन मिलता है। उनका बांसुरी बजाना, गोपियों के साथ खेलना, और गायों के साथ जंगलों में घूमना – ये सभी उनकी लीला का हिस्सा हैं। यह भक्तों के लिए याद दिलाने वाला है कि भगवान का बाल रूप भी उतना ही पूजनीय है जितना कि उनका युवा या प्रौढ़ रूप।

वेणुर्मधुरो रेणुर्मधुरः – इस श्लोक में उनके बांसुरी वादन की मधुरता का वर्णन किया गया है। जब वह बांसुरी बजाते हैं, तो केवल मनुष्य ही नहीं, बल्कि पशु-पक्षी भी उस ध्वनि से मोहित हो जाते हैं। उनकी बांसुरी की ध्वनि केवल संगीत नहीं, बल्कि उसमें ब्रह्मांड की मधुरता समाहित होती है।

भक्ति मार्ग में प्रेम का महत्व

मधुराष्टकम् यह भी सिखाता है कि भक्ति केवल नियमों और परंपराओं का पालन नहीं है, बल्कि यह प्रेम और मधुरता का मार्ग है। जब एक भक्त भगवान के प्रति अनन्य प्रेम रखता है, तो उसकी भक्ति मधुरता से भर जाती है। भक्ति में कठोरता नहीं होनी चाहिए, बल्कि उसमें श्रीकृष्ण की तरह मिठास, प्रेम, और आनंद होना चाहिए।

गोपियों और गोपों के साथ मधुर संबंध

श्रीकृष्ण के गोप और गोपियों के साथ मधुर संबंध को भक्ति का आदर्श माना जाता है। गोपियाँ श्रीकृष्ण के प्रति अनन्य प्रेम रखती थीं और उनकी भक्ति इतनी गहन थी कि वह अपने सांसारिक कर्तव्यों को भूलकर केवल भगवान में लीन हो जाती थीं। गोपियाँ भगवान को समर्पण और प्रेम का प्रतीक हैं।
गोपी मधुरा लीला मधुरा – यहाँ गोपियों की मधुरता का वर्णन किया गया है, जो अपने प्रेम के कारण ही मधुरता का प्रतीक बन गई हैं।

मधुरता में संपूर्णता की प्राप्ति

मधुराष्टकम् यह संदेश भी देता है कि संपूर्णता का अर्थ केवल भौतिक उपलब्धियों से नहीं है, बल्कि यह मानसिक और आध्यात्मिक संतुलन से प्राप्त होती है। जब हम जीवन को मधुरता से जीते हैं, तो हम भगवान के निकट आते हैं। इस मधुरता का अर्थ है प्रेम, करुणा, और अहिंसा से भरा जीवन।

दलितं मधुरं फलितं मधुरं – यह पंक्ति हमें यह सिखाती है कि जब जीवन में कठिनाइयाँ आएं (दलितं), तब भी हमें मधुरता के साथ उनका सामना करना चाहिए। इसी तरह जब हमें फल (फलितं) प्राप्त हो, तब भी हमें विनम्र और मधुर रहना चाहिए। जीवन की हर परिस्थिति को मधुरता के साथ स्वीकार करना ही सच्ची भक्ति है।

शेयर, लाइक या कॉमेंट जरूर करें!

अस्वीकरण (Disclaimer) : नुस्खे, योग, धर्म, ज्योतिष आदि विषयों पर HinduismFAQ में प्रकाशित/प्रसारित वीडियो, आलेख एवं समाचार सिर्फ आपकी जानकारी के लिए हैं। 'HinduismFAQ' इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *