ओ मोटे मोटे नैनन के तू ,
ओ मीठे मीठे बैनन के तू
साँवरी सलोनी सूरत के तू ,
ओ प्यारी प्यारी मूरत के तू ।
ओ कजरारे मोटे मोटे तेरे नैन,
हाय नजर ना लग जाये,
बाँके-बिहारी कजरारे मोटे मोटे तेरे नैन,
हाय नजर ना लग जाये ॥
काजल की कोरे – ओय होय होय,
मेरा जिगर मरोड़े – ओय होय होय,
रंग रस में भोरे – ओय होय होय,
मै तो हारी रे कजरारे मोटे मोटे तेरे नैन,
हाय नजर ना लग जाये ॥
आँखों का काजल – ओय होय होय,
मेरा जिगर है घायल – ओय होय होय,
तेरे प्यार में पागल – ओय होय होय,
कर डारि रे कजरारे मोटे मोटे तेरे नैन,
हाय नजर ना लग जाये ॥
तेरे मुकुट की लटकन – ओय होय होय,
तेरे अधर की मुस्कन – ओय होय होय,
गिरवह की मटकन – ओय होय होय,
बलिहारी रे कजरारे मोटे मोटे तेरे नैन,
हाय नजर ना लग जाये ॥
तेरी प्रीत है टेडी – ओय होय होय,
तेरी रीत है टेडी – ओय होय होय,
तेरी जीत है टेडी – ओय होय होय,
मै तो हारी रे कजरारे मोटे मोटे तेरे नैन
हाय नजर ना लग जाये ॥
बाँके-बिहारी कजरारे मोटे मोटे तेरे नैन
हाय नजर ना लग जाये – ओय होए होय
ओय नजर ना लग जाये – ओय होए होय
हाय नजर ना लग जाये – ओय होए होय
हाय नजर ना लग जाये: भजन का अर्थ
यह भजन श्रीकृष्ण की मोहिनी सूरत, उनकी अद्भुत लीलाओं और भक्तों के प्रति उनके प्रेमपूर्ण आचरण का एक गहरा चित्रण है। हर पंक्ति के पीछे भक्त और भगवान के रिश्ते के भावनात्मक, आध्यात्मिक और प्रतीकात्मक पहलुओं को समझने की आवश्यकता है। इस गहरे विवेचन में हम हर पंक्ति के पीछे छिपे अर्थ को विस्तार से समझेंगे।
ओ मोटे मोटे नैनन के तू
प्रतीकात्मकता:
“मोटे मोटे नैन” केवल श्रीकृष्ण की शारीरिक सुंदरता का वर्णन नहीं करते, बल्कि यह उनकी दृष्टि की व्यापकता को भी दर्शाते हैं। उनकी दृष्टि में हर जीव के प्रति करुणा और प्रेम छिपा है। ये नेत्र संसार के हर कोने को देख सकते हैं और हर जीव के मन को पढ़ सकते हैं।
गूढ़ भावार्थ:
श्रीकृष्ण की आँखें उनकी आत्मा का प्रतिबिंब हैं। उनकी आँखों की गहराई में भक्त को अपनी आत्मा का भी दर्शन होता है। यह उनकी सर्वज्ञता का प्रतीक है – वे सब कुछ देखते हैं, फिर भी उनके नेत्र स्नेह और दया से भरे रहते हैं।
ओ मीठे मीठे बैनन के तू
प्रतीकात्मकता:
श्रीकृष्ण की वाणी केवल मधुरता की मिसाल नहीं है, बल्कि यह आध्यात्मिक ज्ञान और प्रेम की शक्ति का स्रोत है। उनकी बातें सुनकर न केवल गोपियाँ और ग्वाल मोहित होते थे, बल्कि उनके उपदेशों ने अर्जुन जैसे महान योद्धा को धर्म का मार्ग भी दिखाया।
गूढ़ भावार्थ:
श्रीकृष्ण की वाणी से निकलने वाले शब्द केवल ध्वनि नहीं, बल्कि दिव्य मंत्र हैं। यह पंक्ति इस ओर इशारा करती है कि उनका प्रत्येक शब्द प्रेम, सत्य और चेतना से भरा हुआ है, जो श्रोता को आत्मिक उन्नति की ओर प्रेरित करता है।
साँवरी सलोनी सूरत के तू
प्रतीकात्मकता:
सांवला रंग भारतीय आध्यात्मिकता में गहराई और परिपूर्णता का प्रतीक है। श्रीकृष्ण की सांवली सूरत इस बात को दर्शाती है कि सच्चा सौंदर्य बाहरी रूप से नहीं, बल्कि भीतर से चमकता है।
गूढ़ भावार्थ:
यह पंक्ति भक्त को अहंकार त्यागने का संदेश देती है। बाहरी रंग-रूप मायावी है; असली सुंदरता वह है, जो भीतर विद्यमान है। श्रीकृष्ण की सलोनी सूरत उनकी आत्मा की शुद्धता और दिव्यता को प्रकट करती है।
ओ प्यारी प्यारी मूरत के तू
प्रतीकात्मकता:
मूरत केवल एक आकृति नहीं है; यह प्रेम और भक्ति का केंद्र है। श्रीकृष्ण की मूरत हर भक्त के लिए उनकी अपनी भावना के अनुसार प्रकट होती है। किसी को वह मित्र लगते हैं, तो किसी को प्रेमी, और किसी को ईश्वर।
गूढ़ भावार्थ:
यह पंक्ति बताती है कि भक्त श्रीकृष्ण की मूरत में अपनी पूर्णता को देखता है। वह मूरत भक्त के भीतर के भावों को प्रतिबिंबित करती है, जिससे वह भगवान के और निकट आ जाता है।
ओ कजरारे मोटे मोटे तेरे नैन
प्रतीकात्मकता:
काजल से सजी आँखें केवल सुंदरता का प्रतीक नहीं हैं, बल्कि यह उनकी गहराई और रहस्यमयता को भी दर्शाती हैं। उनकी दृष्टि में अद्भुत आकर्षण है, जो भक्त को बांध लेती है।
गूढ़ भावार्थ:
कजरारे नयन भगवान की कृपा और अनुग्रह को दर्शाते हैं। इन आँखों में संसार के समस्त रहस्य समाहित हैं। जो इन नयनों में झांकता है, वह अपना अहंकार भूलकर प्रेम के सागर में डूब जाता है।
हाय नजर ना लग जाये
प्रतीकात्मकता:
यहाँ “नजर” का मतलब बाहरी बुरी शक्तियों से है, जो भक्त और भगवान के बीच प्रेम के बंधन को प्रभावित कर सकती हैं।
गूढ़ भावार्थ:
भक्त के मन में यह प्रार्थना है कि भगवान के इस दिव्य रूप को कोई दूषित दृष्टि न लगे। यह पंक्ति बताती है कि भगवान की दिव्यता को बनाए रखना और उसकी रक्षा करना भक्त का कर्तव्य है।
काजल की कोरे – ओय होय होय
प्रतीकात्मकता:
श्रीकृष्ण की आँखों में लगा काजल उनके रूप की पूर्णता को दर्शाता है। काजल यहाँ सुरक्षा और आकर्षण का प्रतीक है। यह पंक्ति उनके अलौकिक सौंदर्य को और भी प्रभावशाली बनाती है।
गूढ़ भावार्थ:
काजल की कोर भक्त के लिए एक संकेत है कि जीवन में संतुलन बनाए रखना आवश्यक है। यह श्रीकृष्ण के नयनों में गहराई जोड़ता है, जो भक्त को अपने अंदर झांकने और स्वयं को जानने की प्रेरणा देता है।
मेरा जिगर मरोड़े – ओय होय होय
प्रतीकात्मकता:
यह पंक्ति भक्त के अंदर की बेचैनी और श्रीकृष्ण के प्रति उसकी तीव्र तड़प को दर्शाती है। “जिगर मरोड़े” का अर्थ है कि उनके प्रेम का प्रभाव इतना गहरा है कि यह हृदय को आंदोलित कर देता है।
गूढ़ भावार्थ:
यह स्थिति भक्त के हृदय में जागृत प्रेम की पराकाष्ठा को प्रकट करती है। श्रीकृष्ण की दृष्टि मात्र से भक्त का जीवन और उसकी भावनाएँ पूरी तरह से बदल जाती हैं।
रंग रस में भोरे – ओय होय होय
प्रतीकात्मकता:
यहाँ “रंग” और “रस” प्रेम और भक्ति का प्रतीक हैं। “भोरे” का अर्थ है उस रंग और रस में डूब जाना।
गूढ़ भावार्थ:
श्रीकृष्ण की आँखें भक्त को उस दिव्य प्रेम के रंग और रस में डुबा देती हैं, जहाँ वह स्वयं को भूलकर केवल भगवान में समर्पित हो जाता है।
इस गहरे विवेचन में हमने भजन की प्रत्येक पंक्ति के पीछे छिपे आध्यात्मिक, प्रतीकात्मक और भावनात्मक अर्थ को समझा। अब अगले अंश की गहराई और विवेचना अगले संदेश में जारी करेंगे।