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राधा कृपा कटाक्ष स्त्रोत्र in Hindi/Sanskrit

मुनीन्द्र–वृन्द–वन्दिते त्रिलोक–शोक–हारिणि
प्रसन्न-वक्त्र-पण्कजे निकुञ्ज-भू-विलासिनि
व्रजेन्द्र–भानु–नन्दिनि व्रजेन्द्र–सूनु–संगते
कदा करिष्यसीह मां कृपाकटाक्ष–भाजनम् ॥१॥

अशोक–वृक्ष–वल्लरी वितान–मण्डप–स्थिते
प्रवालबाल–पल्लव प्रभारुणांघ्रि–कोमले ।
वराभयस्फुरत्करे प्रभूतसम्पदालये
कदा करिष्यसीह मां कृपाकटाक्ष–भाजनम् ॥२॥

अनङ्ग-रण्ग मङ्गल-प्रसङ्ग-भङ्गुर-भ्रुवां
सविभ्रमं ससम्भ्रमं दृगन्त–बाणपातनैः ।
निरन्तरं वशीकृतप्रतीतनन्दनन्दने
कदा करिष्यसीह मां कृपाकटाक्ष–भाजनम् ॥३॥

तडित्–सुवर्ण–चम्पक –प्रदीप्त–गौर–विग्रहे
मुख–प्रभा–परास्त–कोटि–शारदेन्दुमण्डले ।
विचित्र-चित्र सञ्चरच्चकोर-शाव-लोचने
कदा करिष्यसीह मां कृपाकटाक्ष–भाजनम् ॥४॥

मदोन्मदाति–यौवने प्रमोद–मान–मण्डिते
प्रियानुराग–रञ्जिते कला–विलास – पण्डिते ।
अनन्यधन्य–कुञ्जराज्य–कामकेलि–कोविदे
कदा करिष्यसीह मां कृपाकटाक्ष–भाजनम् ॥५॥

अशेष–हावभाव–धीरहीरहार–भूषिते
प्रभूतशातकुम्भ–कुम्भकुम्भि–कुम्भसुस्तनि ।
प्रशस्तमन्द–हास्यचूर्ण पूर्णसौख्य –सागरे
कदा करिष्यसीह मां कृपाकटाक्ष–भाजनम् ॥६॥

मृणाल-वाल-वल्लरी तरङ्ग-रङ्ग-दोर्लते
लताग्र–लास्य–लोल–नील–लोचनावलोकने ।
ललल्लुलन्मिलन्मनोज्ञ–मुग्ध–मोहिनाश्रिते
कदा करिष्यसीह मां कृपाकटाक्ष–भाजनम् ॥७॥

सुवर्णमलिकाञ्चित –त्रिरेख–कम्बु–कण्ठगे
त्रिसूत्र–मङ्गली-गुण–त्रिरत्न-दीप्ति–दीधिते ।
सलोल–नीलकुन्तल–प्रसून–गुच्छ–गुम्फिते
कदा करिष्यसीह मां कृपाकटाक्ष–भाजनम् ॥८॥

नितम्ब–बिम्ब–लम्बमान–पुष्पमेखलागुणे
प्रशस्तरत्न-किङ्किणी-कलाप-मध्य मञ्जुले ।
करीन्द्र–शुण्डदण्डिका–वरोहसौभगोरुके
कदा करिष्यसीह मां कृपाकटाक्ष–भाजनम् ॥९॥

अनेक–मन्त्रनाद–मञ्जु नूपुरारव–स्खलत्
समाज–राजहंस–वंश–निक्वणाति–गौरवे ।
विलोलहेम–वल्लरी–विडम्बिचारु–चङ्क्रमे
कदा करिष्यसीह मां कृपाकटाक्ष–भाजनम् ॥१०॥

अनन्त–कोटि–विष्णुलोक–नम्र–पद्मजार्चिते
हिमाद्रिजा–पुलोमजा–विरिञ्चजा-वरप्रदे ।
अपार–सिद्धि–ऋद्धि–दिग्ध–सत्पदाङ्गुली-नखे
कदा करिष्यसीह मां कृपाकटाक्ष–भाजनम् ॥११॥

मखेश्वरि क्रियेश्वरि स्वधेश्वरि सुरेश्वरि
त्रिवेद–भारतीश्वरि प्रमाण–शासनेश्वरि ।
रमेश्वरि क्षमेश्वरि प्रमोद–काननेश्वरि
व्रजेश्वरि व्रजाधिपे श्रीराधिके नमोस्तुते ॥१२॥

इती ममद्भुतं-स्तवं निशम्य भानुनन्दिनी
करोतु सन्ततं जनं कृपाकटाक्ष-भाजनम् ।
भवेत्तदैव सञ्चित त्रिरूप–कर्म नाशनं
लभेत्तदा व्रजेन्द्र–सूनु–मण्डल–प्रवेशनम् ॥१३॥

राकायां च सिताष्टम्यां दशम्यां च विशुद्धधीः ।
एकादश्यां त्रयोदश्यां यः पठेत्साधकः सुधीः ॥१४॥

यं यं कामयते कामं तं तमाप्नोति साधकः ।
राधाकृपाकटाक्षेण भक्तिःस्यात् प्रेमलक्षणा ॥१५॥

ऊरुदघ्ने नाभिदघ्ने हृद्दघ्ने कण्ठदघ्नके ।
राधाकुण्डजले स्थिता यः पठेत् साधकः शतम् ॥१६॥

तस्य सर्वार्थ सिद्धिः स्याद् वाक्सामर्थ्यं तथा लभेत् ।
ऐश्वर्यं च लभेत् साक्षाद्दृशा पश्यति राधिकाम् ॥१७॥

तेन स तत्क्षणादेव तुष्टा दत्ते महावरम् ।
येन पश्यति नेत्राभ्यां तत् प्रियं श्यामसुन्दरम् ॥१८॥

नित्यलीला–प्रवेशं च ददाति श्री-व्रजाधिपः ।
अतः परतरं प्रार्थ्यं वैष्णवस्य न विद्यते ॥१९॥

Radha Kriya Kataksh Stotram in English

Munindra-vrinda-vandite triloka-shoka-harini
Prasanna-vaktra-pankaje nikunja-bhu-vilasini
Vrajendra-bhanu-nandini vrajendra-sunu-sangate
Kada karishyasiha mam kripakataksha-bhajanam ॥1॥

Ashoka-vriksha-vallari vitana-mandapa-sthite
Pravalabala-pallava prabharunanghri-komale
Varabhayasphuratkare prabhutasampadalaye
Kada karishyasiha mam kripakataksha-bhajanam ॥2॥

Ananga-ranga mangala-prasanga-bhangura-bhruvam
Savibhramam sasambhramam driganta-bana-patanaih
Nirantaram vashikritapratita-nandanandane
Kada karishyasiha mam kripakataksha-bhajanam ॥3॥

Tadit-suvarna-champaka-pradipta-gaura-vigrahe
Mukha-prabha-parasta-koti-sharadendumandale
Vichitra-chitra-sancharachchakora-shava-lochane
Kada karishyasiha mam kripakataksha-bhajanam ॥4॥

Madonmadati-yauvane pramoda-mana-mandite
Priyanuraga-ranjite kala-vilasa-pandite
Ananyadhanya-kunjarajya-kamkeli-kovide
Kada karishyasiha mam kripakataksha-bhajanam ॥5॥

Ashesha-havabhava-dhirahirahara-bhushite
Prabhutashatakumbha-kumbhakumbhi-kumbhasustani
Prashastamanda-hasyachurna-purnasaukhy-sagare
Kada karishyasiha mam kripakataksha-bhajanam ॥6॥

Mrinala-vala-vallari taranga-ranga-dorlata
Latagra-lasya-lola-nila-lochanavalokane
Lalallulanmilanmanojna-mugdha-mohinashrite
Kada karishyasiha mam kripakataksha-bhajanam ॥7॥

Suvarna-malikanchita-trirekha-kambu-kanthage
Trisutra-mangali-guna-triratna-dipti-didhite
Salola-nilakuntala-prasuna-guccha-gumphite
Kada karishyasiha mam kripakataksha-bhajanam ॥8॥

Nitamba-bimba-lambamana-pushpamekhala-gune
Prashastaratna-kingkini-kalapa-madhya-manjule
Karindra-shundadandika-varohasaubhagoruke
Kada karishyasiha mam kripakataksha-bhajanam ॥9॥

Aneka-mantranada-manju-nupuraraava-skhalat
Samaja-rajahamsa-vamsha-nikvanati-gaurave
Vilolahema-vallari-vidambicharu-chankrame
Kada karishyasiha mam kripakataksha-bhajanam ॥10॥

Ananta-koti-vishnuloka-namra-padmarcharite
Himadrija-pulomaja-virinchaja-varaprade
Apara-siddhi-riddhi-digdha-satpadanguli-nakhe
Kada karishyasiha mam kripakataksha-bhajanam ॥11॥

Makhesvari kriyesvari svadhesvari sureshvari
Triveda-bharatesvari pramana-shasanesvari
Rameshvari kshameshvari pramoda-kananesvari
Vrajeshvari vrajadhipe Shri Radhike namostute ॥12॥

Iti mamadbhutam-stavam nishamya bhanunandini
Karotu santatam janam kripakataksha-bhajanam
Bhavettadaiva sanchita-trirupa-karma nashanam
Labhettada vrajendra-sunu-mandala-praveshanam ॥13॥

Rakayam cha sitashtamyam dashamyam cha vishuddhadhiḥ
Ekadashyām trayodashyām yah pathet sadhakah sudhiḥ ॥14॥

Yam yam kamayate kamam tam tamapnoti sadhakah
Radhakripakatakshena bhaktih syat prema-lakshana ॥15॥

Urudaghne nabhidaghne hriddaghne kanthadaghnake
Radhakundajale sthita yah pathet sadhakah shatam ॥16॥

Tasya sarvartha siddhih syad vaksamarthyam tatha labhet
Aishvaryam cha labhet sakshaddrisha pashyati Radhikam ॥17॥

Tena sa tatkshanadeva tushta datte mahavaram
Yena pashyati netrabhyaṁ tat priyam Shyamasundaram ॥18॥

Nityalila-pravesham cha dadati Shri-vrajadhipah
Atah parataram prarthyam vaishnavasya na vidyate ॥19॥

राधा कृपा कटाक्ष स्त्रोत्र PDF Download

राधा कृपा कटाक्ष स्त्रोत्र का अर्थ

मुनीन्द्र–वृन्द–वन्दिते त्रिलोक–शोक–हारिणि

स्तुति की महानता

इस श्लोक में देवी राधा की महिमा का गान किया गया है, जिन्हें ऋषि-मुनियों द्वारा नमन किया जाता है। यह बताता है कि वे तीनों लोकों के दुखों का नाश करती हैं। उनकी मुस्कुराती हुई कमल के समान मुखमंडल और वृंदावन की क्रीड़ा में उनकी लीला का वर्णन किया गया है। त्रिलोक-शोक-हारिणि के रूप में देवी राधा सभी प्रकार के दुखों को हरने वाली हैं।

प्रसन्न-वक्त्र-पण्कजे

इस पंक्ति में देवी राधा के प्रसन्न-मुखमंडल की तुलना कमल के फूल से की गई है। उनका मुखमंडल कमल के फूल की तरह कोमल और सुंदर है। यह दर्शाता है कि वे हमेशा अपने भक्तों पर प्रसन्न रहती हैं और उनकी मुस्कान ही भक्तों के सभी कष्टों को समाप्त करने वाली होती है।

व्रजेन्द्र–भानु–नन्दिनि

यहां देवी राधा को व्रज के राजा के पुत्र श्रीकृष्ण के साथ जुड़ा हुआ बताया गया है। व्रजेन्द्र–भानु–नन्दिनि का अर्थ है, वे व्रज की महारानी हैं और श्रीकृष्ण के साथ उनकी दिव्य लीला होती है। वे श्रीकृष्ण की अनुगामिनी हैं और उनके बिना उनकी लीला अधूरी है।

कृपा-कटाक्ष की विनती

श्लोक के अंत में भक्त विनती करता है कि देवी राधा उन पर कृपा-कटाक्ष करें, यानी उनकी दृष्टि कृपा और दया से भरी हुई हो। भक्त उनकी दयालु दृष्टि के पात्र बनने की प्रार्थना करता है। यह दयालु दृष्टि ही भक्त के जीवन में सभी प्रकार के दुखों को हरने में सक्षम होती है।

अशोक–वृक्ष–वल्लरी वितान–मण्डप–स्थिते

देवी राधा का प्राकृतिक सौंदर्य

इस श्लोक में देवी राधा को अशोक वृक्ष की वल्लरी के नीचे बैठे हुए चित्रित किया गया है। उनके चरण अत्यंत कोमल और लालिमा से युक्त होते हैं, जिनकी तुलना प्रवाल (मूंगे के छोटे पौधे) के नए अंकुर से की गई है।

प्रभूतसम्पदालये

यह पंक्ति देवी राधा की अनंत समृद्धि का संकेत करती है। उन्हें सम्पदालय यानी समृद्धि का घर कहा गया है। उनके कर कमलों में वर और अभय की मुद्रा होती है, जिससे वे अपने भक्तों को आशीर्वाद और सुरक्षा प्रदान करती हैं।

कृपा की प्रार्थना

भक्त पुनः देवी राधा से कृपा की प्रार्थना करता है कि वे उन पर अपनी दयालु दृष्टि डालें। कृपा-कटाक्ष का अर्थ है कि भक्तों की ओर एक कृपापूर्ण नजर डालना, जिससे वे सभी प्रकार की आध्यात्मिक और भौतिक समस्याओं से मुक्त हो सकें।

अनङ्ग-रण्ग मङ्गल-प्रसङ्ग-भङ्गुर-भ्रुवां

भावपूर्ण दृष्टि का वर्णन

इस श्लोक में देवी राधा की भावपूर्ण दृष्टि का वर्णन किया गया है, जो उनके प्रेम और आनंद से भरी हुई होती है। उनके भ्रू-कटाक्ष अर्थात भौंहों के इशारे ऐसे होते हैं जैसे वे अनंग (कामदेव) के तीर चला रही हों। यह दर्शाता है कि उनकी दृष्टि से भक्तों के हृदय में प्रेम का संचार होता है।

सविभ्रमं ससम्भ्रमं

यहां उनके सविभ्रम और ससम्भ्रम रूप की बात की गई है, जिसका अर्थ है उनकी चंचल और प्रेमपूर्ण दृष्टि। यह दृष्टि विशेष रूप से श्रीकृष्ण को आकर्षित करती है, जिससे वे भी उनकी ओर खिंच जाते हैं। उनकी दृष्टि हमेशा श्रीकृष्ण को अपनी ओर वशीकृत कर लेती है।

श्रीकृष्ण को वशीकरण

श्रीकृष्ण हमेशा राधा की इस दृष्टि से मोहित रहते हैं। इसीलिए, भक्त इस श्लोक के माध्यम से यह कामना करता है कि राधा भी उन पर अपनी ऐसी ही दृष्टि डालें, जिससे उनका भी आध्यात्मिक विकास हो सके और वे श्रीकृष्ण के प्रिय हो सकें।

तडित्–सुवर्ण–चम्पक –प्रदीप्त–गौर–विग्रहे

देवी राधा के गौरवर्ण का वर्णन

इस श्लोक में देवी राधा के गौरवर्ण का वर्णन किया गया है, जो कि तड़ित् (बिजली) की तरह चमकता हुआ और चंपा के फूल के समान सुनहरा होता है। उनका दिव्य शरीर तेजस्वी और अद्वितीय होता है, जिससे सभी देवता और मुनि मोहित हो जाते हैं।

मुख की चंद्रमा से तुलना

देवी राधा का मुखमंडल कोटि चंद्रमाओं से भी अधिक सुंदर और तेजस्वी होता है। उनके मुख की चमक देखकर चंद्रमा भी म्लान पड़ जाता है। यह दर्शाता है कि उनकी सुंदरता अलौकिक और अद्वितीय है।

दृष्टि की आकर्षण शक्ति

उनकी दृष्टि को चकोर पक्षी की तरह बताया गया है, जो सदैव उनके मुख की ओर देखता रहता है। यह दृष्टांत राधा की आकर्षक आंखों को दर्शाता है, जो भक्तों को मोहित करती हैं और उनके हृदय में प्रेम का संचार करती हैं।

भक्त की प्रार्थना

भक्त फिर से देवी राधा से कृपा-कटाक्ष की प्रार्थना करता है, जिससे वह उनके अनुग्रह का पात्र बन सके और उसकी साधना सफल हो सके।

मदोन्मदाति–यौवने प्रमोद–मान–मण्डिते

देवी राधा की अद्वितीय यौवनता

इस श्लोक में देवी राधा की यौवनता और उनके आनंद से परिपूर्ण स्वरूप का वर्णन किया गया है। वे मदोन्मद यौवन से परिपूर्ण होती हैं, अर्थात उनका यौवन इतना आकर्षक होता है कि देवता भी मोहित हो जाते हैं।

प्रेम और कलाओं की मर्मज्ञ

वे प्रेम की कला में पारंगत हैं और श्रीकृष्ण के प्रति उनका प्रेम अनन्य होता है। उनकी लीला और प्रेम का वर्णन करते हुए बताया गया है कि वे प्रेम की हर कला में निपुण होती हैं और श्रीकृष्ण के साथ उनकी प्रेमलीला दिव्य और अद्वितीय होती है।

कुञ्जराज्य की मर्मज्ञ

देवी राधा कुञ्जराज्य की अद्वितीय रानी हैं, जहां वे और श्रीकृष्ण अपनी प्रेमलीलाओं में संलग्न होते हैं। उनका प्रेम अद्वितीय होता है, और इस श्लोक में भक्त कामना करता है कि देवी राधा उसे भी अपने अनुग्रह का पात्र बनाएं।

अशेष–हावभाव–धीरहीरहार–भूषिते

देवी राधा का अलंकरण

इस श्लोक में देवी राधा के अलंकरण का विस्तृत वर्णन किया गया है। उन्हें अशेष हावभाव यानी विभिन्न मुद्राओं और भावनाओं से सुसज्जित बताया गया है, जो उनके दिव्य स्वरूप को और भी मनोहारी बनाते हैं। उनकी शृंगार कला अद्वितीय है, और उनके गले में धीरहीरहार सुशोभित है, जिसका अर्थ है एक अत्यंत कीमती और आकर्षक हार। यह दर्शाता है कि देवी राधा न केवल बाह्य सौंदर्य में अपार हैं, बल्कि उनके हावभाव भी अत्यंत मोहक और प्रेमपूर्ण होते हैं।

प्रशस्तमन्द–हास्यचूर्ण

देवी राधा के मधुर मंद हास्य का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि उनका मुस्कान भव्यता से भरी होती है। उनका यह मंद हास्य अपने आप में एक सौख्य-सागर (आनंद का महासागर) होता है। यह उनके प्रेम और दया से भरे हुए हृदय का प्रतीक है। उनकी मुस्कान भक्तों के मन को शांति और संतोष प्रदान करती है।

कृपा की आशा

भक्त फिर से देवी राधा से कृपा-कटाक्ष की प्रार्थना करता है। यह विनती बार-बार की जाती है क्योंकि भक्त जानता है कि उनकी एक नजर भी उसके जीवन में असंख्य आशीर्वाद लेकर आएगी। यह उनके प्रेम, भक्ति और कृपा की गहरी आशा को दर्शाता है।

मृणाल-वाल-वल्लरी तरङ्ग-रङ्ग-दोर्लते

कोमलता और लचीलापन

इस श्लोक में देवी राधा की भुजाओं को मृणाल की वल्लरी (कमल की डंडी की लता) के समान कोमल और लचीला बताया गया है। उनकी भुजाओं में लता का तरंग यानी लचीलापन और कोमलता है, जो उनके दिव्य रूप की सुंदरता को और भी बढ़ाता है। यह उनके सौम्य और कोमल स्वभाव को दर्शाता है।

नीली आँखों का आकर्षण

उनकी आंखें लास्यपूर्ण और नीले रंग की होती हैं, जो सदैव लता की फुनगी की तरह चंचल होती हैं। उनके ये नेत्र अपनी सुंदरता और चंचलता से हर किसी को मोहित कर लेते हैं। उनकी आंखों की एक झलक से भक्त अपने सभी दुखों और चिंताओं को भूल जाता है।

प्रेम और मोहन शक्ति

देवी राधा के नेत्रों की आकर्षण शक्ति का वर्णन करते हुए बताया गया है कि वे मनोज्ञ और मोहिनी हैं। उनकी दृष्टि हर किसी के मन को मोह लेती है। भक्त उनके इसी मोहक रूप से प्रभावित होकर उनकी कृपा-कटाक्ष की कामना करता है।

सुवर्णमलिकाञ्चित –त्रिरेख–कम्बु–कण्ठगे

देवी राधा का स्वर्णाभूषण

इस श्लोक में देवी राधा के गले को त्रिरेख-कम्बु-कण्ठ (तीन रेखाओं वाला शंख के समान कंठ) के रूप में वर्णित किया गया है, जो उनकी सुंदरता को और भी बढ़ाता है। उनके गले में सुवर्णमलिका यानी सोने की माला सुशोभित है, जो उनके दिव्य स्वरूप को अलौकिक आभा प्रदान करती है। यह उनके सौंदर्य और दिव्यता का प्रतीक है।

त्रिरत्न-दीप्ति का वर्णन

उनके गले में तीन प्रकार के रत्नों की माला होती है, जो उनके दिव्य स्वरूप की अद्वितीयता को दर्शाती है। इस माला की दीप्ति इतनी तेजस्वी होती है कि भक्त उनके सौंदर्य में खो जाता है। यह अलंकरण देवी राधा की उच्चतम स्थिति और उनकी दिव्यता का प्रतीक है।

लहराते हुए केशों का सौंदर्य

उनके केश नीले रंग के होते हैं और सलोल यानी लहराते हुए होते हैं। उनके केशों में फूलों के गुच्छे सजाए जाते हैं, जो उनके सिर पर सुशोभित होते हैं। यह श्लोक देवी राधा के समग्र रूप को एक अद्वितीय और सुंदर रूप में प्रस्तुत करता है, जिसे देखकर भक्त मंत्रमुग्ध हो जाता है।

नितम्ब–बिम्ब–लम्बमान–पुष्पमेखलागुणे

देवी राधा के नितम्ब का सौंदर्य

इस श्लोक में देवी राधा के नितम्ब (कूल्हों) का वर्णन किया गया है, जो अत्यंत सुंदर और सुडौल होते हैं। उनके नितम्बों पर पुष्पों की मेखला यानी फूलों की माला सजाई गई है, जो उनकी सुंदरता को और भी आकर्षक बनाती है। यह दर्शाता है कि वे दिव्यता और सौंदर्य की मूरत हैं।

किङ्किणी की मधुर ध्वनि

उनके नितम्बों के चारों ओर रत्नों से सजी किङ्किणी (छोटे घंटियों का समूह) होती है, जो चलने पर मधुर ध्वनि करती है। यह उनकी क्रीड़ा और लीला के समय उत्पन्न होने वाली ध्वनि का वर्णन है, जो वातावरण को भी आनंदमय कर देती है।

श्रीराधा की कृपा

भक्त यहां भी देवी राधा से कृपा-कटाक्ष की याचना करता है, जिससे वह उनकी दिव्य कृपा का पात्र बन सके और जीवन में समस्त प्रकार की सिद्धियों को प्राप्त कर सके।

अनेक–मन्त्रनाद–मञ्जु नूपुरारव–स्खलत्

नूपुर की मधुर ध्वनि

इस श्लोक में देवी राधा के पैरों में पहने गए नूपुरों की मधुर ध्वनि का वर्णन किया गया है। उनके पैरों से निकलने वाली यह ध्वनि इतनी मधुर और मृदु होती है कि इसे सुनने वाले समाज के राजहंसों (उत्तम लोगों) का हृदय भी आनंद से भर जाता है। यह ध्वनि भक्तों को उनकी ओर खींच लेती है और उनके मन को शांति और संतोष प्रदान करती है।

राजहंस की तुलना

इस श्लोक में उनके पैरों की नूपुर ध्वनि को राजहंसों की वंशी ध्वनि से भी अधिक मधुर बताया गया है। यह ध्वनि भक्तों के मन को मोहित कर लेने वाली होती है। उनके चलने का तरीका भी ऐसा होता है कि उसमें सोने की लता की तरह लचक होती है, जो उनकी क्रीड़ा को और भी मनोरम बना देती है।

कृपा की प्रार्थना

भक्त पुनः देवी राधा से कृपा-कटाक्ष की प्रार्थना करता है, ताकि उसकी साधना सफल हो सके और उसे उनके दिव्य प्रेम का अनुभव हो सके। उनकी कृपा दृष्टि से भक्त का जीवन न केवल आध्यात्मिक रूप से समृद्ध होता है, बल्कि उसमें सभी प्रकार की सिद्धियां प्राप्त होती हैं।

अनन्त–कोटि–विष्णुलोक–नम्र–पद्मजार्चिते

अनंत लोकों की देवी

इस श्लोक में देवी राधा की महिमा का वर्णन किया गया है, जिन्हें अनंत कोटि विष्णु लोकों के निवासी देवता और ऋषि नम्र होकर पूजा करते हैं। वे समस्त लोकों की देवी हैं और उनकी महिमा इतनी विस्तृत है कि पद्मजा (लक्ष्मी) भी उनकी पूजा करती हैं।

वरप्रदा देवी

वे न केवल अपने भक्तों की पूजा स्वीकार करती हैं, बल्कि वरप्रदा भी हैं, अर्थात वे अपने भक्तों को इच्छित वरदान प्रदान करती हैं। यह दर्शाता है कि उनके चरणों की पूजा करने वाले भक्त समस्त इच्छाओं की पूर्ति कर सकते हैं।

दिव्य पदांगुलियों का वर्णन

उनकी दिव्य पदांगुलियों से भी अपार सिद्धियां और ऋद्धियां प्रकट होती हैं। उनके नखों से निकलने वाली दिव्यता और प्रकाश भक्तों को मुक्ति का मार्ग प्रदान करती है।

कृपा की याचना

भक्त एक बार फिर से देवी राधा से कृपा-कटाक्ष की याचना करता है ताकि वह उनके अनंत आशीर्वादों का पात्र बन सके और अपनी साधना को पूर्णता की ओर ले जा सके।

मखेश्वरि क्रियेश्वरि स्वधेश्वरि सुरेश्वरि

देवी राधा की विविध रूपों में महिमा

इस श्लोक में देवी राधा के विभिन्न रूपों और शक्तियों का वर्णन किया गया है। उन्हें मखेश्वरि कहा गया है, जिसका अर्थ है कि वे यज्ञों की अधिष्ठात्री देवी हैं। वे क्रियेश्वरि भी हैं, अर्थात समस्त क्रियाओं की अधिपति। वे स्वधेश्वरि (अपनी भूमि की अधिपति) और सुरेश्वरि (देवताओं की अधिपति) भी हैं।

त्रिवेद–भारतीश्वरि

देवी राधा त्रिवेद-भारतीश्वरि यानी तीनों वेदों की अधिपति कही गई हैं। वे समस्त ज्ञान और शास्त्रों की अधिष्ठात्री हैं। प्रमाण-शासनेश्वरि के रूप में वे सभी शास्त्रों और नियमों की अंतिम निर्णायक हैं।

रामेश्वरी और क्षमेश्वरी

उन्हें रामेश्वरी (लक्ष्मी का रूप) और क्षमेश्वरी (क्षमाशीलता की देवी) भी कहा गया है। वे प्रमोद-काननेश्वरि भी हैं, जो आनंद के उपवन की रानी हैं।

व्रजाधिपे और राधा को नमस्कार

अंत में, भक्त व्रजाधिपे (व्रज की अधिपति) श्रीराधा को नमस्कार करता है और उनसे अनुग्रह की कामना करता है। भक्त उनकी शरण में आकर उनके कृपा-कटाक्ष का पात्र बनने की याचना करता है।

इती ममद्भुतं-स्तवं निशम्य भानुनन्दिनी

भानुनंदिनी की स्तुति

इस श्लोक में भक्त अपने द्वारा की गई स्तुति का उल्लेख करता है। वह कहता है कि यह अद्भुत स्तुति भानुनंदिनी (राधा रानी) के लिए है। भानुनंदिनी का अर्थ है सूर्य देवता की पुत्री, जो राधा रानी का दूसरा नाम है। भक्त यह कामना करता है कि राधा रानी इस स्तुति को सुनकर हमेशा उसकी ओर कृपा-कटाक्ष बनाए रखें।

कृपा-कटाक्ष का महत्व

भक्त की सबसे बड़ी आशा यह है कि राधा रानी का कृपा-कटाक्ष उसे प्राप्त हो जाए। कृपा-कटाक्ष का अर्थ केवल उनके प्रेमपूर्ण दृष्टि से ही नहीं है, बल्कि यह भी है कि उनकी कृपा दृष्टि से भक्त को समस्त सिद्धियां और आशीर्वाद प्राप्त होंगे। भक्त जानता है कि केवल उनकी एक कृपा दृष्टि ही उसके समस्त दुखों और कष्टों को समाप्त कर सकती है।

त्रिरूप कर्म का नाश

श्लोक में कहा गया है कि राधा रानी की कृपा दृष्टि से त्रिरूप कर्म यानी तीन प्रकार के कर्म (संचित, प्रारब्ध और क्रियमाण) का नाश हो जाएगा। यह कर्म सिद्धांत बताता है कि व्यक्ति के सभी जीवन के कर्म उसकी जीवन यात्रा को निर्धारित करते हैं, लेकिन राधा रानी की कृपा से इन सभी कर्मों का नाश संभव है।

व्रजेन्द्र-सूनु के मंडल में प्रवेश

इस श्लोक के अंत में भक्त कामना करता है कि राधा रानी की कृपा से उसे व्रजेन्द्र-सूनु यानी श्रीकृष्ण के मंडल (वृंदावन और उनकी दिव्य लीलाओं) में प्रवेश मिल सके। यह दर्शाता है कि भक्त का अंतिम लक्ष्य भगवान श्रीकृष्ण की दिव्य सेवा में शामिल होना है, और यह केवल राधा रानी की कृपा से ही संभव है।

राकायां च सिताष्टम्यां दशम्यां च विशुद्धधीः

विशेष दिनों में पाठ की महिमा

इस श्लोक में भक्त यह कहता है कि जो व्यक्ति राकायां, अर्थात पूर्णिमा या अमावस्या की रात में, सिताष्टमी, दशमी, एकादशी या त्रयोदशी के पवित्र दिनों में इस स्तुति का पाठ करता है, उसकी बुद्धि शुद्ध हो जाती है। ये दिन विशेष रूप से पवित्र और शक्तिशाली माने जाते हैं, इसलिए इन दिनों में इस स्तुति का पाठ करने से भक्त को विशेष आशीर्वाद प्राप्त होते हैं।

सधक की उन्नति

यह श्लोक इस बात को भी दर्शाता है कि जो साधक इस स्तुति का श्रद्धापूर्वक पाठ करता है, उसे आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त होती है। उसकी साधना में प्रगति होती है और उसे सभी इच्छाओं की पूर्ति मिलती है। इसका अर्थ यह है कि भक्त इस स्तुति के माध्यम से अपनी सभी इच्छाओं को पूर्ण कर सकता है और उसकी भक्ति में वृद्धि होती है।

यं यं कामयते कामं तं तमाप्नोति साधकः

इच्छाओं की पूर्ति

इस श्लोक में कहा गया है कि जो साधक इस स्तुति का पाठ करता है, उसे जो भी इच्छाएं होती हैं, वे सभी पूरी होती हैं। यह दर्शाता है कि राधा रानी की कृपा इतनी प्रभावशाली है कि उनके भक्त की हर इच्छा पूरी हो जाती है।

प्रेमभक्ति की प्राप्ति

साधक को न केवल उसकी इच्छाओं की पूर्ति मिलती है, बल्कि उसे प्रेम भक्ति का भी अनुभव होता है। यह प्रेम भक्ति राधा रानी की कृपा से प्राप्त होती है, और इसका स्वरूप अत्यंत पवित्र और दिव्य होता है। प्रेम की यह भक्ति साधक को श्रीकृष्ण के प्रेम में पूरी तरह से लीन कर देती है।

ऊरुदघ्ने नाभिदघ्ने हृद्दघ्ने कण्ठदघ्नके

राधाकुंड में स्नान करने का महत्व

इस श्लोक में राधाकुंड के जल का महत्व बताया गया है। भक्त कहता है कि जो व्यक्ति ऊरुदघ्ने (जांघों तक), नाभिदघ्ने (नाभि तक), हृद्दघ्ने (हृदय तक) या कण्ठदघ्न (गले तक) राधाकुंड के जल में स्नान करता है और इस स्तुति का पाठ करता है, उसे अद्भुत आशीर्वाद मिलते हैं।

शत बार पाठ करने का महत्व

यदि कोई भक्त राधाकुंड के पवित्र जल में स्नान करते हुए शत बार (100 बार) इस स्तुति का पाठ करता है, तो उसे समस्त सिद्धियों की प्राप्ति होती है। यह श्लोक यह बताता है कि राधाकुंड का जल अत्यंत पवित्र और शक्तिशाली होता है, और राधा रानी की स्तुति के साथ इसका संयोजन भक्त के जीवन में अद्वितीय आशीर्वाद लाता है।

तस्य सर्वार्थ सिद्धिः स्याद् वाक्सामर्थ्यं तथा लभेत्

सिद्धियों की प्राप्ति

इस श्लोक में यह कहा गया है कि जो भक्त राधाकुंड में स्नान करते हुए स्तुति का पाठ करता है, उसे सर्वार्थ सिद्धि यानी सभी प्रकार की सिद्धियां प्राप्त होती हैं। इसका अर्थ यह है कि भक्त को उसके जीवन की सभी समस्याओं का समाधान मिल जाता है और वह अपनी साधना में पूर्णता प्राप्त करता है।

वाक् सामर्थ्य की प्राप्ति

साथ ही, भक्त को वाक् सामर्थ्य (वाणी का बल) भी प्राप्त होता है। इसका अर्थ है कि भक्त की वाणी में इतनी शक्ति आ जाती है कि उसकी कही हुई बात तुरंत सत्य हो जाती है। उसकी वाणी में प्रभाव और आशीर्वाद का ऐसा बल होता है कि लोग उसकी बातों से प्रभावित होते हैं।

ऐश्वर्यं च लभेत् साक्षाद्दृशा पश्यति राधिकाम्

ऐश्वर्य की प्राप्ति

भक्त को ऐश्वर्य (धन, समृद्धि और शक्तियों) की प्राप्ति होती है। यह ऐश्वर्य भौतिक और आध्यात्मिक दोनों स्तरों पर होता है। भक्त को न केवल भौतिक धन की प्राप्ति होती है, बल्कि उसे आध्यात्मिक धन भी मिलता है, जो उसे मोक्ष और भगवान की कृपा प्राप्त करने में सहायता करता है।

श्रीराधा के साक्षात दर्शन

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि भक्त को श्रीराधा के साक्षात दर्शन प्राप्त होते हैं। यह उनके जीवन का सबसे बड़ा आशीर्वाद होता है, क्योंकि श्रीराधा के दर्शन से भक्त को मोक्ष प्राप्ति होती है। उनकी एक झलक ही भक्त के जीवन को पूर्णता की ओर ले जाती है।

तेन स तत्क्षणादेव तुष्टा दत्ते महावरम्

तत्काल वरदान की प्राप्ति

इस श्लोक में कहा गया है कि जो भक्त इस स्तुति का पाठ करता है और श्रीराधा के साक्षात दर्शन करता है, उसे श्रीराधा तत्क्षण (तुरंत) प्रसन्न होकर वरदान देती हैं। यह वरदान अत्यंत शक्तिशाली होता है और भक्त की सभी इच्छाओं की पूर्ति करता है।

प्रिय श्यामसुंदर के दर्शन

राधा रानी के दर्शन के बाद भक्त को श्यामसुंदर यानी श्रीकृष्ण के भी दर्शन प्राप्त होते हैं। यह भक्त के जीवन की सबसे बड़ी सिद्धि होती है, क्योंकि श्रीकृष्ण और राधा के प्रेम का अद्वितीय अनुभव उसे मिलता है।

नित्यलीला–प्रवेशं च ददाति श्री-व्रजाधिपः

नित्यलीला में प्रवेश

इस श्लोक में कहा गया है कि श्रीव्रजाधिपति (श्रीकृष्ण) भक्त को नित्यलीला में प्रवेश का आशीर्वाद देते हैं। इसका अर्थ है कि भक्त श्रीकृष्ण और राधा की दिव्य लीलाओं में हमेशा के लिए सम्मिलित हो जाता है। यह मोक्ष की प्राप्ति का प्रतीक है, जहां भक्त को जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति मिलती है।

वैष्णव के लिए इससे बड़ा कुछ नहीं

अंत में, यह कहा गया है कि वैष्णव (भक्त) के लिए इससे बड़ा कोई आशीर्वाद नहीं है। नित्यलीला में प्रवेश प्राप्त करने के बाद, भक्त को किसी अन्य चीज की आवश्यकता नहीं होती है, क्योंकि उसे राधा और कृष्ण की सेवा में अमरत्व प्राप्त होता है।

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