रामदेव चालीसा in Hindi/Sanskrit
॥ दोहा ॥
श्री गुरु पद नमन करि,गिरा गनेश मनाय ।
कथूं रामदेव विमल यश,सुने पाप विनशाय ॥
द्वार केश से आय कर,लिया मनुज अवतार ।
अजमल गेह बधावणा,जग में जय जयकार ॥
॥ चौपाई ॥
जय जय रामदेव सुर राया।अजमल पुत्र अनोखी माया॥
विष्णु रूप सुर नर के स्वामी।परम प्रतापी अन्तर्यामी॥
ले अवतार अवनि पर आये।तंवर वंश अवतंश कहाये॥
संत जनों के कारज सारे।दानव दैत्य दुष्ट संहारे॥
परच्या प्रथम पिता को दीन्हा।दूध परीण्डा मांही कीन्हा॥
कुमकुम पद पोली दर्शाये।ज्योंही प्रभु पलने प्रगटाये॥
परचा दूजा जननी पाया।दूध उफणता चरा उठाया॥
परचा तीजा पुरजन पाया।चिथड़ों का घोड़ा ही साया॥
परच्या चौथा भैरव मारा।भक्त जनों का कष्ट निवारा॥
पंचम परच्या रतना पाया।पुंगल जा प्रभु फंद छुड़ाया॥
परच्या छठा विजयसिंह पाया।जला नगर शरणागत आया॥
परच्या सप्तम् सुगना पाया।मुवा पुत्र हंसता भग आया॥
परच्या अष्टम् बौहित पाया।जा परदेश द्रव्य बहु लाया॥
भंवर डूबती नाव उबारी।प्रगत टेर पहुँचे अवतारी॥
नवमां परच्या वीरम पाया।बनियां आ जब हाल सुनाया॥
दसवां परच्या पा बिनजारा।मिश्री बनी नमक सब खारा॥
परच्या ग्यारह किरपा थारी।नमक हुआ मिश्री फिर सारी॥
परच्या द्वादश ठोकर मारी।निकलंग नाड़ी सिरजी प्यारी॥
परच्या तेरहवां पीर परी पधारया।ल्याय कटोरा कारज सारा॥
चौदहवां परच्या जाभो पाया।निजसर जल खारा करवाया॥
परच्या पन्द्रह फिर बतलाया।राम सरोवर प्रभु खुदवाया॥
परच्या सोलह हरबू पाया।दर्श पाय अतिशय हरषाया॥
परच्या सत्रह हर जी पाया।दूध थणा बकरया के आया॥
सुखी नाडी पानी कीन्हों।आत्म ज्ञान हरजी ने दीन्हों॥
परच्या अठारहवां हाकिम पाया।सूते को धरती लुढ़काया॥
परच्या उन्नीसवां दल जी पाया।पुत्र पाय मन में हरषाया॥
परच्या बीसवां पाया सेठाणी।आये प्रभु सुन गदगद वाणी॥
तुरंत सेठ सरजीवण कीन्हा।उक्त उजागर अभय वर दीन्हा॥
परच्या इक्कीसवां चोर जो पाया।हो अन्धा करनी फल पाया॥
परच्या बाईसवां मिर्जो चीहां।सातो तवा बेध प्रभु दीन्हां॥
परच्या तेईसवां बादशाह पाया।फेर भक्त को नहीं सताया॥
परच्या चैबीसवां बख्शी पाया।मुवा पुत्र पल में उठ धाया॥
जब-जब जिसने सुमरण कीन्हां।तब-तब आ तुम दर्शन दीन्हां॥
भक्त टेर सुन आतुर धाते।चढ़ लीले पर जल्दी आते॥
जो जन प्रभु की लीला गावें।मनवांछित कारज फल पावें॥
यह चालीसा सुने सुनावे।ताके कष्ट सकल कट जावे॥
जय जय जय प्रभु लीला धारी।तेरी महिमा अपरम्पारी॥
मैं मूरख क्या गुण तब गाऊँ।कहाँ बुद्धि शारद सी लाऊँ॥
नहीं बुद्धि बल घट लव लेशा।मती अनुसार रची चालीसा॥
दास सभी शरण में तेरी।रखियों प्रभु लज्जा मेरी॥
Ramdev Chalisa in English
॥ Doha ॥
Shri Guru pad naman kari, gira Ganesh manay.
Kathoon Ramdev vimal yash, sune paap vinashay.
Dwar Kesh se aay kar, liya manuj avatar.
Ajmal geh badhawna, jag mein jai jaykaar.
॥ Chaupai ॥
Jai Jai Ramdev sur raya. Ajmal putra anokhi maya.
Vishnu roop sur nar ke swami. Param pratapi antaryami.
Le avatar avani par aaye. Tamvar vans avtansh kahaye.
Sant janon ke karaj saare. Danav daitya dusht sanhare.
Parchya pratham pita ko deenha. Doodh parinda maahin keenha.
Kumkum pad poli darshaye. Jyonhi Prabhu palne pragataye.
Parcha dooja janani paya. Doodh ufanta chara uthaya.
Parcha teeja purjan paya. Chithdon ka ghoda hi saya.
Parchya choutha Bhairav maara. Bhakt janon ka kasht nivara.
Pancham parcha Ratna paya. Pungal ja Prabhu phand chhudaya.
Parchya chhatha Vijay Singh paya. Jala nagar sharanagat aaya.
Parchya saptam Sugna paya. Muva putra hansata bhag aaya.
Parchya ashtam Bouhit paya. Ja pardesh dravya bahu laya.
Bhanwar doobti naav ubari. Pragat ter pahunche avtari.
Navman parcha Veeram paya. Baniya aa jab haal sunaya.
Dasvan parcha pa Binjara. Mishri bani namak sab khara.
Parchya gyaarah Kripa thari. Namak hua mishri fir saari.
Parchya dwadash thokar maari. Niklang naadi sirji pyari.
Parchya terahwan Peer pari padharaya. Lyay katora karaj saara.
Chaudahwan parcha Jabho paya. Nij sar jal khara karvaya.
Parchya pandrah fir batlaya. Ram sarovar Prabhu khudvaya.
Parchya solah Harbu paya. Darsh paay atishay harshaya.
Parchya satrah Harji paya. Doodh thana bakraya ke aaya.
Sukhi naadi paani keenho. Aatma gyaan Harji ne deenho.
Parchya atharahwan Hakim paya. Soote ko dharti ludhkaya.
Parchya unniswan Dalji paya. Putra paay man mein harshaya.
Parchya beeswan paya Sethani. Aaye Prabhu sun gadgad vaani.
Turant Seth Sarjeevan keenha. Ukt ujagar abhay var deenha.
Parchya ikkiswaan chor jo paya. Ho andha karni phal paya.
Parchya baiswan Mirjo chiha. Sato tawa bedh Prabhu deenha.
Parchya teiswan Badshah paya. Fer bhakt ko nahin sataya.
Parchya chaubeeswan Bakshi paya. Muva putra pal mein uth dhaya.
Jab-jab jisne sumran keenha. Tab-tab aa tum darshan deenha.
Bhakt ter sun aatur dhaate. Chad leele par jaldi aate.
Jo jan Prabhu ki leela gaave. Manvanchhit karaj phal paave.
Yah chalisah sune sunaave. Take kasht sakal kat jaave.
Jai Jai Jai Prabhu Leela Dhaari. Teri mahima aparmparari.
Main moorakh kya gun tab gaaoon. Kahan buddhi Sharad si laaoon.
Nahin buddhi bal ghat lav lesha. Mati anusaar rachi chalisah.
Daas sabhi sharan mein teri. Rakhiho Prabhu lajja meri.
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रामदेव चालीसा का अर्थ
दोहा
श्री गुरु पद नमन करि,गिरा गनेश मनाय।
कथूं रामदेव विमल यश,सुने पाप विनशाय॥
इस दोहे में, श्री गुरु रामदेवजी के चरणों में नमन करते हुए गणेशजी का स्मरण किया गया है। जो भी रामदेवजी के विमल यश को सुनता है, उसके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। यह इस बात को दर्शाता है कि रामदेवजी की महिमा को सुनने से मनुष्य के समस्त दोष और कष्ट समाप्त हो जाते हैं।
चौपाई
रामदेवजी के अवतार की महिमा
जय जय रामदेव सुर राया।अजमल पुत्र अनोखी माया॥
विष्णु रूप सुर नर के स्वामी।परम प्रतापी अन्तर्यामी॥
यहाँ रामदेवजी की जयकार करते हुए कहा गया है कि वे राजा अजमल के पुत्र हैं और विष्णु के अवतार हैं। वे सभी देवताओं और मनुष्यों के स्वामी हैं और अत्यंत प्रतापी तथा अंतर्यामी हैं। उनकी लीला और अवतार को समझना साधारण मनुष्यों के लिए कठिन है।
रामदेवजी का तंवर वंश में जन्म
ले अवतार अवनि पर आये।तंवर वंश अवतंश कहाये॥
संत जनों के कारज सारे।दानव दैत्य दुष्ट संहारे॥
रामदेवजी का तंवर वंश में जन्म हुआ और उन्हें वंश का आभूषण कहा गया। वे संतजनों के सभी कार्यों को सिद्ध करते हैं और दानवों, दैत्यों तथा दुष्टों का नाश करते हैं। उनका अवतार धरती पर धर्म की रक्षा और अधर्म का नाश करने के लिए हुआ।
रामदेवजी के विभिन्न चमत्कार (परचों की गाथा)
पहला परचा – पिता को दिया
परच्या प्रथम पिता को दीन्हा।दूध परीण्डा मांही कीन्हा॥
कुमकुम पद पोली दर्शाये।ज्योंही प्रभु पलने प्रगटाये॥
पहला परचा उनके पिता के सामने हुआ, जब रामदेवजी ने दूध से भरा परिंडा बनाया और अपने दिव्य कुमकुम पद चिन्ह दिखाए। जब उन्हें पालने में रखा गया, तब उनका दिव्य स्वरूप प्रकट हुआ।
दूसरा परचा – जननी को दिया
परचा दूजा जननी पाया।दूध उफणता चरा उठाया॥
दूसरा परचा उनकी माता के सामने हुआ, जब उफनते दूध को उन्होंने केवल एक स्पर्श से शांत कर दिया और माता को चमत्कार दिखाया।
तीसरा परचा – पुरजन को दिया
परचा तीजा पुरजन पाया।चिथड़ों का घोड़ा ही साया॥
तीसरा परचा उनके नगरवासियों को मिला, जब उन्होंने चिथड़ों का घोड़ा बनाया जो असल में चलता हुआ प्रतीत हुआ।
चौथा परचा – भैरव का वध
परच्या चौथा भैरव मारा।भक्त जनों का कष्ट निवारा॥
चौथा परचा भैरव का वध करके दिखाया, जो भक्तजनों को कष्ट दे रहा था। रामदेवजी ने उसे मारकर भक्तों को मुक्ति दिलाई।
पंचम परचा – रतना की मुक्ति
पंचम परच्या रतना पाया।पुंगल जा प्रभु फंद छुड़ाया॥
पांचवा परचा रतना नामक व्यक्ति की मुक्ति से जुड़ा है, जिसमें रामदेवजी ने उसे पुंगल राज्य के बंधनों से मुक्त कराया।
रामदेवजी की लीला और भक्तों के उद्धार
विभिन्न परचों का उल्लेख
रामदेवजी ने कई परचों (चमत्कारों) के माध्यम से भक्तों का उद्धार किया। उनके हर परचे से भक्तों को प्रेरणा और आस्था मिली। जैसे कि छठे परचे में विजयसिंह की रक्षा की और उसके नगर को जलने से बचाया। सातवें परचे में सुगना को पुत्र का आशीर्वाद दिया, और अष्टम परचे में एक नाव को डूबने से बचाया। हर परचा उनके दिव्य स्वरूप और करुणा को प्रकट करता है।
रामदेवजी का भक्तों के लिए आना
रामदेवजी जब-जब भक्तों ने स्मरण किया, तब-तब उन्होंने दर्शन देकर उनके कष्ट दूर किए। भक्तों की आवाज सुनते ही वे शीघ्रता से उनकी मदद करने के लिए प्रकट होते थे। जो भक्त उनकी लीला गाते हैं, वे सभी मनवांछित फल प्राप्त करते हैं और उनके सारे कष्ट कट जाते हैं।
रामदेवजी की चालीसा का महत्व
यह चालीसा सुने सुनावे।ताके कष्ट सकल कट जावे॥
जय जय जय प्रभु लीला धारी।तेरी महिमा अपरम्पारी॥
यह चालीसा जो भी भक्त श्रद्धा से सुनता है या सुनाता है, उसके समस्त कष्ट समाप्त हो जाते हैं। रामदेवजी की महिमा अपरम्पार है और उनकी कृपा से भक्त को सभी प्रकार की सुख-सुविधाएं प्राप्त होती हैं।
विनती और समर्पण
मैं मूरख क्या गुण तब गाऊँ।कहाँ बुद्धि शारद सी लाऊँ॥
नहीं बुद्धि बल घट लव लेशा।मती अनुसार रची चालीसा॥
यहाँ रचनाकार अपनी अल्प बुद्धि का उल्लेख करते हुए रामदेवजी से प्रार्थना करते हैं कि वे उनकी इस चालीसा को स्वीकार करें, जो उन्होंने अपनी मति और श्रद्धा के अनुसार रची है। अंत में, वे प्रभु से उनकी लज्जा की रक्षा करने की प्रार्थना करते हैं और खुद को उनकी शरण में समर्पित करते हैं।
दास सभी शरण में तेरी।रखियों प्रभु लज्जा मेरी॥
इस प्रकार यह चालीसा रामदेवजी के चमत्कारों और उनकी करुणा का विस्तार से वर्णन करती है और भक्तों को उनके आशीर्वाद की ओर प्रेरित करती है।
श्री रामदेवजी के अवतार का उद्देश्य
श्री रामदेवजी के अवतार का उद्देश्य धर्म की स्थापना, सत्य का प्रचार और दुष्टों का विनाश करना था। उन्होंने समाज में फैली बुराइयों को समाप्त करने के लिए तंवर वंश में जन्म लिया। उनके जीवन का हर क्षण चमत्कारों और धर्म की रक्षा के कार्यों से भरा हुआ था। रामदेवजी के जन्म से ही लोगों को उनके दिव्य स्वरूप का आभास हो गया था, और उन्हें विष्णु के अवतार के रूप में पूजा जाने लगा। वे समाज के हर वर्ग, विशेषकर गरीब और दलित वर्ग के उद्धारकर्ता माने जाते हैं।
संतों और भक्तों का संरक्षण
रामदेवजी संतों और भक्तों के सच्चे रक्षक थे। वे जब भी किसी भक्त को संकट में देखते थे, तुरंत उसकी सहायता के लिए प्रकट हो जाते थे। उनकी लीला इतनी अद्भुत थी कि वे भक्तों के मन की बात बिना कहे ही जान लेते थे। चाहे किसी भक्त का संकट कितना ही बड़ा क्यों न हो, रामदेवजी के आशीर्वाद से सब संकट समाप्त हो जाते थे।
दानवों और दैत्यों का नाश
रामदेवजी ने अपने चमत्कारों के माध्यम से केवल भक्तों की रक्षा नहीं की, बल्कि दुष्ट दानवों और दैत्यों का भी संहार किया। उनकी लीला में भैरव का वध विशेष रूप से उल्लेखनीय है, जहाँ उन्होंने भक्तों के कष्टों को दूर करने के लिए भैरव जैसे राक्षस का अंत किया। इसी प्रकार, उन्होंने अनेक दुष्ट शक्तियों को धरती से समाप्त कर धर्म की स्थापना की।
रामदेवजी के प्रमुख चमत्कार (परचों) का विस्तृत विवरण
अजमल के घर जन्म और प्रारंभिक चमत्कार
जब रामदेवजी का जन्म हुआ, तभी से उनके चमत्कार दिखने लगे थे। उनका पहला चमत्कार उनके पिता अजमल के सामने प्रकट हुआ, जिसमें उन्होंने दूध से भरे परिंडे का निर्माण किया। यह चमत्कार उनकी अलौकिक शक्ति को दर्शाता है। इसके बाद उन्होंने कई अन्य चमत्कार दिखाए, जैसे कि दूध उफानने का शांत होना और चिथड़े के घोड़े का जीवन्त होना, जो उनके दिव्यता के संकेत थे।
भैरव का वध और भक्तों की रक्षा
रामदेवजी का चौथा परचा भैरव राक्षस के वध से संबंधित है। भैरव एक राक्षस था जो भक्तजनों को कष्ट दे रहा था। रामदेवजी ने भैरव का वध कर भक्तों को उसकी यातना से मुक्त किया। यह घटना दिखाती है कि वे धर्म की रक्षा और अधर्म के विनाश के लिए तत्पर रहते थे।
रतना की मुक्ति और पुंगल राज्य की रक्षा
पंचम परचा रतना नामक व्यक्ति की मुक्ति से जुड़ा है। रतना एक भक्त था जिसे पुंगल राज्य के बंधनों में जकड़ा गया था। रामदेवजी ने उसे इन बंधनों से मुक्त कराया और पुंगल राज्य के भक्तों की रक्षा की। यह चमत्कार उनकी करुणा और न्यायप्रियता को दर्शाता है।
अन्य प्रमुख चमत्कार
रामदेवजी के जीवन में ऐसे कई और चमत्कार घटित हुए जो उनके दिव्य स्वरूप और भक्तों के प्रति उनकी करुणा को दर्शाते हैं:
- सप्तम परचा: जिसमें उन्होंने सुगना नामक भक्त को पुत्र का आशीर्वाद दिया।
- अष्टम परचा: जिसमें उन्होंने एक डूबती हुई नाव को सुरक्षित किनारे तक पहुँचाया और भक्तों को मृत्यु से बचाया।
- दसवां परचा: जिसमें बिनजारा नामक व्यक्ति की नमक को मिश्री में बदलने की इच्छा पूरी की और उसे जीवन में सुख का आशीर्वाद दिया।
- चौदहवां परचा: जिसमें उन्होंने खारे जल को मीठा कर दिया और लोगों की प्यास बुझाई।
रामदेवजी के चमत्कारों का महत्व
रामदेवजी के चमत्कार केवल एक चमत्कार नहीं थे, वे समाज को यह संदेश देते थे कि सत्य, धर्म और करुणा की विजय सदा होती है। उनके प्रत्येक चमत्कार में एक गहरा आध्यात्मिक संदेश छिपा हुआ था। उनके भक्तों का विश्वास था कि रामदेवजी के स्मरण मात्र से सारे दुख और कष्ट समाप्त हो जाते हैं।
रामदेवजी की लीला की महिमा
प्रभु की लीला अपरम्पार है, और उनकी महिमा अनंत है। रामदेवजी की लीला को समझना मनुष्य की समझ से परे है। उनकी प्रत्येक लीला हमें यह सिखाती है कि कठिन समय में भी हमें सच्चाई और धर्म के मार्ग पर चलना चाहिए। जो भक्त सच्चे मन से उनकी चालीसा का पाठ करते हैं, उनके जीवन के सारे संकट दूर हो जाते हैं। रामदेवजी की चालीसा का पाठ न केवल आध्यात्मिक लाभ देता है, बल्कि जीवन में सुख-शांति भी लाता है।
रामदेवजी की भक्ति और चालीसा का पाठ करने वाले व्यक्ति को क्या लाभ होता है?
- व्यक्ति के जीवन में सुख-शांति आती है।
- सारे कष्ट और संकट दूर हो जाते हैं।
- मनोवांछित फल प्राप्त होता है।
- जीवन में आध्यात्मिक उन्नति होती है।
रामदेवजी के भक्तों को संदेश
जय जय जय प्रभु लीला धारी।तेरी महिमा अपरम्पारी॥
इस पंक्ति में भक्त यह स्वीकार करता है कि प्रभु रामदेवजी की महिमा का कोई अंत नहीं है। प्रभु की कृपा से ही व्यक्ति जीवन के कठिनतम पलों को आसानी से पार कर सकता है। भक्त इस बात को समझता है कि उसकी बुद्धि सीमित है, और रामदेवजी की महिमा अनंत है।
निष्कर्ष
रामदेवजी केवल एक संत नहीं, बल्कि दिव्यता के प्रतीक थे। उनके जीवन और चमत्कारों से यह सिखने को मिलता है कि यदि हम धर्म, सत्य और करुणा के मार्ग पर चलें तो जीवन के हर संकट को पार कर सकते हैं। उनका जीवन हमें सिखाता है कि ईश्वर सदा अपने भक्तों के साथ होते हैं और जब भी भक्त उन्हें पुकारते हैं, वे उनकी मदद करने आते हैं।