- – यह भजन भगवान शिव की स्तुति और भक्ति में लिखा गया है, जिसमें भक्त उनकी शरण में आने और कृपा पाने की प्रार्थना करता है।
- – भजन में शिव के विभिन्न रूपों और उनके प्रतीकों जैसे डमरू, त्रिशूल, भस्म, नागमाला आदि का वर्णन किया गया है।
- – भक्त भगवान शिव से अपने जीवन में दया, रक्षा और मोक्ष की कामना करता है।
- – भजन में शिव को कैलाश पर्वत का निवासी, अविनाशी और गिरिजा पति के रूप में पूजा गया है।
- – यह भजन शिव की छवि को मन में बसा लेने और उनकी भक्ति में लीन होने का संदेश देता है।
- – भजन के लेखक श्री शिवनारायण वर्मा हैं और इसे चांदनी सरगम स्वर में प्रस्तुत किया गया है।

शिव शिव भोले,
नाथ अरज सुन लेना,
हे डमरू धर हे गिरिजापति,
भक्ति अपनी देना,
शिव शिव भोलें,
नाथ अरज सुन लेना।।
तर्ज – मूरख बन्दे क्या है रे जग में।
जो तेरे दर पर आया,
वो कृपा तेरी पाया,
नाम तेरा जो ध्याया,
वो तुझको प्रभु है भाया,
मुझको भी हे भोले बाबा,
अपनी शरण में लेना,
शिव शिव भोलें,
नाथ अरज सुन लेना।।
तुम कैलाशी घट घट वासी,
डमरूधर अविनाशी,
गौरा जी सँग छवि तुम्हारी,
सबके मन को भाती,
मै भी देखूँ छवि तुम्हारी,
इतना वर मुझे देना,
शिव शिव भोलें,
नाथ अरज सुन लेना।।
तन पर भस्म है साजे,
हाथ त्रिशूल विराजे,
कानो में कुण्डल सोहे,
सिर पे चँदा राजे,
मृगछाला है तन पे लपेटी,
हार नाग का पहना,
शिव शिव भोलें,
नाथ अरज सुन लेना।।
दुनिया से मैं हार के भोले,
तेरी शरण में आया,
दिनों के हो नाथ दया तुम,
अब मुझपे बरसाना,
नैया भव से पार हे भोले,
‘शिव’ की भी कर देना
शिव शिव भोलें,
नाथ अरज सुन लेना।।
शिव शिव भोले,
नाथ अरज सुन लेना,
हे डमरू धर हे गिरिजापति,
भक्ति अपनी देना,
शिव शिव भोलें,
नाथ अरज सुन लेना।।
स्वर – चांदनी सरगम।
भजन लेखक एवं प्रेषक –
श्री शिवनारायण वर्मा,
मोबा.न. 8818932923
