धर्म दर्शन वॉट्स्ऐप चैनल फॉलो करें Join Now

शेयर, लाइक या कॉमेंट जरूर करें!

जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले
गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्गतुङ्गमालिकाम् ।
डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वयं
चकार चण्डताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम् ॥१॥

जटाकटाहसम्भ्रमभ्रमन्निलिम्पनिर्झरी
विलोलवीचिवल्लरीविराजमानमूर्धनि ।
धगद्धगद्धगज्ज्वलल्ललाटपट्टपावके
किशोरचन्द्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम ॥२॥

धराधरेन्द्रनंदिनीविलासबन्धुबन्धुर
स्फुरद्दिगन्तसन्ततिप्रमोदमानमानसे ।
कृपाकटाक्षधोरणीनिरुद्धदुर्धरापदि
क्वचिद्दिगम्बरे(क्वचिच्चिदम्बरे) मनो विनोदमेतु वस्तुनि ॥३॥

जटाभुजङ्गपिङ्गलस्फुरत्फणामणिप्रभा
कदम्बकुङ्कुमद्रवप्रलिप्तदिग्वधूमुखे ।
मदान्धसिन्धुरस्फुरत्त्वगुत्तरीयमेदुरे
मनो विनोदमद्भुतं बिभर्तु भूतभर्तरि ॥४॥

सहस्रलोचनप्रभृत्यशेषलेखशेखर
प्रसूनधूलिधोरणी विधूसराङ्घ्रिपीठभूः ।
भुजङ्गराजमालया निबद्धजाटजूटक
श्रियै चिराय जायतां चकोरबन्धुशेखरः ॥५॥

ललाटचत्वरज्वलद्धनञ्जयस्फुलिङ्गभा
निपीतपञ्चसायकं नमन्निलिम्पनायकम् ।
सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं
महाकपालिसम्पदेशिरोजटालमस्तु नः ॥६॥

करालभालपट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वल
द्धनञ्जयाहुतीकृतप्रचण्डपञ्चसायके ।
धराधरेन्द्रनन्दिनीकुचाग्रचित्रपत्रक
प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचने रतिर्मम ॥७॥

नवीनमेघमण्डली निरुद्धदुर्धरस्फुरत्
कुहूनिशीथिनीतमः प्रबन्धबद्धकन्धरः ।
निलिम्पनिर्झरीधरस्तनोतु कृत्तिसिन्धुरः
कलानिधानबन्धुरः श्रियं जगद्धुरंधरः ॥८॥

प्रफुल्लनीलपङ्कजप्रपञ्चकालिमप्रभा
वलम्बिकण्ठकन्दलीरुचिप्रबद्धकन्धरम् ।
स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं
गजच्छिदांधकच्छिदं तमन्तकच्छिदं भजे ॥९॥

अगर्व सर्वमङ्गलाकलाकदम्बमञ्जरी
रसप्रवाहमाधुरी विजृम्भणामधुव्रतम् ।
स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं
गजान्तकान्धकान्तकं तमन्तकान्तकं भजे ॥१०॥

जयत्वदभ्रविभ्रमभ्रमद्भुजङ्गमश्वस
द्विनिर्गमत्क्रमस्फुरत्करालभालहव्यवाट् ।
धिमिद्धिमिद्धिमिध्वनन्मृदङ्गतुङ्गमङ्गल
ध्वनिक्रमप्रवर्तित प्रचण्डताण्डवः शिवः ॥११॥

दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजङ्गमौक्तिकस्रजोर्
गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः ।
तृणारविन्दचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः
समं प्रव्रितिक: कदा सदाशिवं भजाम्यहम ॥१२॥

कदा निलिम्पनिर्झरीनिकुञ्जकोटरे वसन्
विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरः स्थमञ्जलिं वहन् ।
विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः
शिवेति मंत्रमुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम् ॥१३॥

निलिम्प नाथनागरी कदम्ब मौलमल्लिका-
निगुम्फनिर्भक्षरन्म धूष्णिकामनोहरः ।
तनोतु नो मनोमुदं विनोदिनींमहनिशं
परिश्रय परं पदं तदङ्गजत्विषां चयः ॥१४॥

प्रचण्ड वाडवानल प्रभाशुभप्रचारणी
महाष्टसिद्धिकामिनी जनावहूत जल्पना ।
विमुक्त वाम लोचनो विवाहकालिकध्वनिः
शिवेति मन्त्रभूषगो जगज्जयाय जायताम् ॥१५॥

इमं हि नित्यमेवमुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं
पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुद्धिमेतिसंततम् ।
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथा गतिं
विमोहनं हि देहिनां सुशङ्करस्य चिंतनम् ॥१६॥

पूजावसानसमये दशवक्त्रगीतं
यः शम्भुपूजनपरं पठति प्रदोषे ।
तस्य स्थिरां रथगजेन्द्रतुरङ्गयुक्तां
लक्ष्मीं सदैव सुमुखिं प्रददाति शम्भुः ॥१७॥

इति श्रीरावण कृतम्
शिव ताण्डव स्तोत्रम्स म्पूर्णम्

शिव ताण्डव स्तोत्र के बारे में और जानकारी

रावण द्वारा रचित: शिव ताण्डव स्तोत्र की रचना लंकापति रावण ने की थी। ऐसा कहा जाता है कि रावण भगवान शिव के परम भक्त थे और उन्होंने इस स्तोत्र की रचना तब की थी जब वे शिव को प्रसन्न करने के लिए हिमालय पर गए थे।

यह भी जानें:  सूर्य अष्टकम (Surya Ashtakam)

ताण्डव नृत्य: इस स्तोत्र में भगवान शिव के ताण्डव नृत्य का वर्णन किया गया है। ताण्डव नृत्य भगवान शिव का एक नृत्य रूप है, जिसे वे ब्रह्मांड के संहार और पुनर्सृजन के प्रतीक के रूप में करते हैं। यह नृत्य विनाश और पुनर्जन्म का प्रतीक माना जाता है।

भावार्थ: इस स्तोत्र में भगवान शिव की शक्ति, उनकी महिमा, और उनकी दिव्यता का वर्णन किया गया है। हर श्लोक में शिव के विभिन्न स्वरूपों और उनके द्वारा की जाने वाली लीलाओं का विस्तार से वर्णन किया गया है।

पाठ के लाभ

  1. आध्यात्मिक शांति: इस स्तोत्र का पाठ करने से मन को शांति मिलती है और आत्मिक शांति प्राप्त होती है।
  2. कठिनाइयों से मुक्ति: शिव ताण्डव स्तोत्र का नियमित पाठ व्यक्ति को जीवन की कठिनाइयों और समस्याओं से मुक्त करता है।
  3. भक्ति और ध्यान: इस स्तोत्र का पाठ व्यक्ति के भीतर शिव भक्ति और ध्यान को प्रगाढ़ बनाता है।
  4. संपूर्ण सुख: कहा जाता है कि इस स्तोत्र का पाठ करने से भगवान शिव की कृपा से व्यक्ति को सम्पूर्ण सुख और समृद्धि की प्राप्ति होती है।

शिव की विभिन्न लीलाएँ: इस स्तोत्र में शिव के विभिन्न लीलाओं का वर्णन है, जैसे कि:

  • शिव का गंगा धारण: शिव के जटाओं से गंगा की धारा बहती है।
  • त्रिनेत्र: शिव के तीसरे नेत्र से अग्नि प्रज्वलित होती है।
  • नटराज रूप: शिव का नटराज रूप, जिसमें वे नृत्य करते हैं।
  • कामदेव का संहार: शिव के तीसरे नेत्र से कामदेव का भस्म होना।

ध्यान और साधना: इस स्तोत्र का पाठ करने से ध्यान और साधना में गहराई आती है। यह व्यक्ति को भगवान शिव के निकट लाने में मदद करता है और उसके आत्मिक विकास को प्रोत्साहित करता है।

यह भी जानें:  नीलसरस्वती स्तोत्रम् - मंत्र (Neel Saraswati Stotram)

संस्कृत भाषा की महत्ता: इस स्तोत्र का पाठ संस्कृत भाषा में करने से व्यक्ति को भाषा की शुद्धता और उसकी ध्वनि का विशेष अनुभव होता है, जो मानसिक शांति और ध्यान के लिए अत्यंत लाभकारी है।

श्लोकों का गहराई से विश्लेषण

श्लोक 1: शिव के जटाओं से गंगा की पावन धारा प्रवाहित होती है, जिससे उनके गले में लटकती सर्पों की माला धुल जाती है। डमरू की ध्वनि शिव के ताण्डव नृत्य की शक्ति को प्रकट करती है।

श्लोक 2: शिव के मस्तक पर गंगा की लहरें और बालचंद्र शोभायमान हैं। उनके ललाट से अग्नि की ज्वाला प्रज्वलित होती है, जो उनकी दिव्यता को दर्शाती है।

श्लोक 3: धराधर (पर्वतराज) की कन्या पार्वती के साथ शिव की लीला अद्भुत है। उनकी कृपा दृष्टि से व्यक्ति के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं।

श्लोक 4: शिव के गले में सर्पों की माला है और उनके मुख पर कुमकुम से सजी सुंदरता है। उनका अद्भुत स्वरूप हमें आनंद और शांति प्रदान करता है।

श्लोक 5: हजार आंखों वाले इंद्र और अन्य देवताओं के फूलों की धूल से शिव के चरण पवित्र होते हैं। शिव की जटाओं में सर्पों की माला है, जो उनकी महिमा को दर्शाती है।

श्लोक 6: शिव के ललाट की ज्वाला से कामदेव भस्म हो गया। उनके मस्तक पर चंद्रमा शोभायमान है, जो उनके शांति और शीतलता का प्रतीक है।

श्लोक 7: धराधर की कन्या पार्वती के कंठ में शिव के हाथ की शोभा बढ़ती है। शिव के तांडव नृत्य से संपूर्ण ब्रह्मांड गुंजायमान हो उठता है।

श्लोक 8: शिव का श्यामल स्वरूप और उनके गले में चंद्रमा की किरणें शोभायमान हैं। वे हमें सुख और समृद्धि प्रदान करें।

यह भी जानें:  माँ तुलसी अष्टोत्तर-शतनाम-नामावली (Tulsi Ashtottara Shatnam Namavali)

श्लोक 9: शिव के गले में लटकते नीले कमल के समान नीलकंठ हैं। वे कामदेव, त्रिपुर, संसार, यज्ञ, हाथी और अंधकासुर का संहार करने वाले हैं।

श्लोक 10: शिव सर्व मंगलकारी हैं, वे हमारी हर प्रकार की कठिनाइयों को दूर करें और हमें सुख-शांति प्रदान करें।

श्लोक 11: शिव के तांडव नृत्य की ध्वनि से संपूर्ण ब्रह्मांड गुंजायमान हो उठता है। वे अपने नृत्य से हमारे जीवन में मंगलकारी घटनाओं की वृद्धि करें।

श्लोक 12: शिव के साथ के सभी भेद समान हैं, चाहे वे रत्नों से सुशोभित हों या साधारण। मैं सदा शिव की भक्ति करता हूँ।

श्लोक 13: कब मैं गंगा के किनारे उनके निकुंज में निवास करूँगा, अपने हाथ में अंजलि में शिव का नाम जपते हुए। शिव का ध्यान करते हुए कब मैं मुक्त होऊँगा?

श्लोक 14: नागों से सजी उनकी जटा, और उनके मस्तक पर शोभायमान चंद्रमा। वे हमें हर दिन आनंद प्रदान करें।

श्लोक 15: शिव के तांडव नृत्य से सम्पूर्ण ब्रह्मांड प्रज्वलित होता है। वे हमें आठों सिद्धियों की प्राप्ति करें।

श्लोक 16: इस उत्तम स्तोत्र का नित्य पाठ करने से व्यक्ति पवित्रता प्राप्त करता है और भगवान शिव की कृपा से सभी दुखों से मुक्त होता है।

श्लोक 17: रात्रि के समय शिव पूजा के अंत में इस स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति को स्थाई समृद्धि और सुख प्राप्त होता है।

इस प्रकार, शिव ताण्डव स्तोत्र भगवान शिव की महिमा और उनकी अद्भुत शक्तियों का गान करता है, जिससे भक्तों को असीम शांति और सुख प्राप्त होता है।

शेयर, लाइक या कॉमेंट जरूर करें!

अस्वीकरण (Disclaimer) : नुस्खे, योग, धर्म, ज्योतिष आदि विषयों पर HinduismFAQ में प्रकाशित/प्रसारित वीडियो, आलेख एवं समाचार सिर्फ आपकी जानकारी के लिए हैं। 'HinduismFAQ' इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती है।