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श्री चण्डी-ध्वज स्तोत्रम् in Hindi/Sanskrit

॥ विनियोग ॥
अस्य श्री चण्डी-ध्वज स्तोत्र मन्त्रस्य मार्कण्डेय ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, श्रीमहालक्ष्मीर्देवता, श्रां बीजं, श्रीं शक्तिः, श्रूं कीलकं मम वाञ्छितार्थ फल सिद्धयर्थे विनियोगः.

॥ अंगन्यास ॥
श्रां, श्रीं, श्रूं, श्रैं, श्रौं, श्रः ।

॥ मूल पाठ ॥
ॐ श्रीं नमो जगत्प्रतिष्ठायै देव्यै भूत्त्यै नमो नमः ।
परमानन्दरुपिण्यै नित्यायै सततं नमः॥१॥

नमस्तेऽस्तु महादेवि परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा॥२॥

रक्ष मां शरण्ये देवि धन-धान्य-प्रदायिनि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा॥३॥

नमस्तेऽस्तु महाकाली पर-ब्रह्म-स्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा॥४॥

नमस्तेऽस्तु महालक्ष्मी परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा॥५॥

नमस्तेऽस्तु महासरस्वती परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा॥६॥

नमस्तेऽस्तु ब्राह्मी परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥७॥

नमस्तेऽस्तु माहेश्वरी देवि परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥८॥

नमस्तेऽस्तु च कौमारी परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥९॥

नमस्ते वैष्णवी देवि परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥१०॥

नमस्तेऽस्तु च वाराही परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥११॥

नारसिंही नमस्तेऽस्तु परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥१२॥

नमो नमस्ते इन्द्राणी परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥१३॥

नमो नमस्ते चामुण्डे परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥१४॥

नमो नमस्ते नन्दायै परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥१५॥

रक्तदन्ते नमस्तेऽस्तु परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥१६॥

नमस्तेऽस्तु महादुर्गे परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥१७॥

शाकम्भरी नमस्तेऽस्तु परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥१८॥

शिवदूति नमस्तेऽस्तु परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥१९॥

नमस्ते भ्रामरी देवि परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥२०॥

नमो नवग्रहरुपे परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥२१॥

नवकूट महादेवि परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥२२॥

स्वर्णपूर्णे नमस्तेऽस्तु परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥२३॥

श्रीसुन्दरी नमस्तेऽस्तु परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥२४॥

नमो भगवती देवि परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥२५॥

दिव्ययोगिनी नमस्ते परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥२६॥

नमस्तेऽस्तु महादेवि परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥२७॥

नमो नमस्ते सावित्री परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥२८॥

जयलक्ष्मी नमस्तेऽस्तु परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥२९॥

मोक्षलक्ष्मी नमस्तेऽस्तु परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥३०॥

चण्डीध्वजमिदं स्तोत्रं सर्वकामफलप्रदम् ।
राजते सर्वजन्तूनां वशीकरण साधनम् ॥३१॥

सर्वमङ्गलमाङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके ।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तुते॥

Shri Chandi Dhwaj Stotram in English

॥ Viniyoga ॥
Asya Shri Chandi-Dhvaja Stotra Mantrasya Markandeya Rishih, Anushtup Chandah, Shri Mahalakshmird Devata, Shraam Bijam, Shreem Shaktih, Shroom Keelakam, Mama Vanchhitartha Phala Siddhyarthe Viniyogah.

॥ Anganyasa ॥
Shraam, Shreem, Shroom, Shraim, Shraum, Shrah.

॥ Moola Patha ॥
Om Shreem Namo Jagatpratishthayai Devyai Bhootyai Namo Namah.
Parmananda Rupinyai Nityayai Satatam Namah॥1॥

Namaste’stu Mahadevi Parabrahma Svarupini.
Rajyam Dehi Dhanam Dehi Samrajyam Dehi Me Sada॥2॥

Raksha Mam Sharanye Devi Dhana-Dhanya-Pradayini.
Rajyam Dehi Dhanam Dehi Samrajyam Dehi Me Sada॥3॥

Namaste’stu Mahakali Parabrahma Svarupini.
Rajyam Dehi Dhanam Dehi Samrajyam Dehi Me Sada॥4॥

Namaste’stu Mahalakshmi Parabrahma Svarupini.
Rajyam Dehi Dhanam Dehi Samrajyam Dehi Me Sada॥5॥

Namaste’stu Mahasaraswati Parabrahma Svarupini.
Rajyam Dehi Dhanam Dehi Samrajyam Dehi Me Sada॥6॥

Namaste’stu Brahmi Parabrahma Svarupini.
Rajyam Dehi Dhanam Dehi Samrajyam Dehi Me Sada॥7॥

Namaste’stu Maheshwari Devi Parabrahma Svarupini.
Rajyam Dehi Dhanam Dehi Samrajyam Dehi Me Sada॥8॥

Namaste’stu Cha Kaumari Parabrahma Svarupini.
Rajyam Dehi Dhanam Dehi Samrajyam Dehi Me Sada॥9॥

Namaste Vaishnavi Devi Parabrahma Svarupini.
Rajyam Dehi Dhanam Dehi Samrajyam Dehi Me Sada॥10॥

Namaste’stu Cha Varahi Parabrahma Svarupini.
Rajyam Dehi Dhanam Dehi Samrajyam Dehi Me Sada॥11॥

Narasimhi Namaste’stu Parabrahma Svarupini.
Rajyam Dehi Dhanam Dehi Samrajyam Dehi Me Sada॥12॥

Namo Namaste Indrani Parabrahma Svarupini.
Rajyam Dehi Dhanam Dehi Samrajyam Dehi Me Sada॥13॥

Namo Namaste Chamunde Parabrahma Svarupini.
Rajyam Dehi Dhanam Dehi Samrajyam Dehi Me Sada॥14॥

Namo Namaste Nandayai Parabrahma Svarupini.
Rajyam Dehi Dhanam Dehi Samrajyam Dehi Me Sada॥15॥

Raktadante Namaste’stu Parabrahma Svarupini.
Rajyam Dehi Dhanam Dehi Samrajyam Dehi Me Sada॥16॥

Namaste’stu Mahadurge Parabrahma Svarupini.
Rajyam Dehi Dhanam Dehi Samrajyam Dehi Me Sada॥17॥

Shakambhari Namaste’stu Parabrahma Svarupini.
Rajyam Dehi Dhanam Dehi Samrajyam Dehi Me Sada॥18॥

Shivaduti Namaste’stu Parabrahma Svarupini.
Rajyam Dehi Dhanam Dehi Samrajyam Dehi Me Sada॥19॥

Namaste Bhramari Devi Parabrahma Svarupini.
Rajyam Dehi Dhanam Dehi Samrajyam Dehi Me Sada॥20॥

Namo Navagraha Rupe Parabrahma Svarupini.
Rajyam Dehi Dhanam Dehi Samrajyam Dehi Me Sada॥21॥

Navakoota Mahadevi Parabrahma Svarupini.
Rajyam Dehi Dhanam Dehi Samrajyam Dehi Me Sada॥22॥

Swarnapoornay Namaste’stu Parabrahma Svarupini.
Rajyam Dehi Dhanam Dehi Samrajyam Dehi Me Sada॥23॥

Shri Sundari Namaste’stu Parabrahma Svarupini.
Rajyam Dehi Dhanam Dehi Samrajyam Dehi Me Sada॥24॥

Namo Bhagavati Devi Parabrahma Svarupini.
Rajyam Dehi Dhanam Dehi Samrajyam Dehi Me Sada॥25॥

Divyayogini Namaste Parabrahma Svarupini.
Rajyam Dehi Dhanam Dehi Samrajyam Dehi Me Sada॥26॥

Namaste’stu Mahadevi Parabrahma Svarupini.
Rajyam Dehi Dhanam Dehi Samrajyam Dehi Me Sada॥27॥

Namo Namaste Savitri Parabrahma Svarupini.
Rajyam Dehi Dhanam Dehi Samrajyam Dehi Me Sada॥28॥

Jaya Lakshmi Namaste’stu Parabrahma Svarupini.
Rajyam Dehi Dhanam Dehi Samrajyam Dehi Me Sada॥29॥

Moksha Lakshmi Namaste’stu Parabrahma Svarupini.
Rajyam Dehi Dhanam Dehi Samrajyam Dehi Me Sada॥30॥

Chandi-Dhvajam Idam Stotram Sarvakamaphalapradam.
Rajate Sarvajantunam Vashikaran Sadhanam॥31॥

Sarvamangala-Mangalye Shive Sarvarthasadhike.
Sharanye Tryambake Gauri Narayani Namostute॥

श्री चण्डी-ध्वज स्तोत्रम् PDF Download

श्री चण्डी-ध्वज स्तोत्रम् का अर्थ

यह स्तोत्र देवी चण्डी की महिमा का वर्णन करता है। इसमें भक्त देवी से राज्य, धन, समृद्धि और साम्राज्य प्राप्ति की प्रार्थना करते हैं। इस स्तोत्र का पाठ करने से समस्त इच्छाओं की पूर्ति होती है और जीवन में विजय तथा सफलता प्राप्त होती है।

विनियोग

अस्य श्री चण्डी-ध्वज स्तोत्र मन्त्रस्य मार्कण्डेय ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, श्रीमहालक्ष्मीर्देवता, श्रां बीजं, श्रीं शक्तिः, श्रूं कीलकं मम वाञ्छितार्थ फल सिद्धयर्थे विनियोगः।

अर्थ: इस चण्डी-ध्वज स्तोत्र के ऋषि मार्कण्डेय हैं, छंद अनुष्टुप है, देवता महालक्ष्मी हैं। इसका बीज मंत्र “श्रां” है, शक्ति “श्रीं” है और कीलक “श्रूं” है। यह स्तोत्र मेरी इच्छाओं की पूर्ति के लिए है।

अंगन्यास

श्रां, श्रीं, श्रूं, श्रैं, श्रौं, श्रः ।

अर्थ: ये ध्वनियां देवी के विभिन्न शक्तिपूर्ण बीज मंत्र हैं, जिनसे शरीर के विभिन्न अंगों की शुद्धि होती है और ऊर्जा प्राप्त होती है।

1. प्रथम श्लोक

ॐ श्रीं नमो जगत्प्रतिष्ठायै देव्यै भूत्त्यै नमो नमः ।
परमानन्दरुपिण्यै नित्यायै सततं नमः ॥१॥

अर्थ: “ॐ” से शुरू करते हुए, मैं उस देवी को नमस्कार करता हूँ जो जगत की आधार हैं और समृद्धि की देवी हैं। जो परम आनन्द स्वरूपा हैं, उन्हें मैं सदा नमन करता हूँ।

2. द्वितीय श्लोक

नमस्तेऽस्तु महादेवि परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥२॥

अर्थ: हे महादेवी, जो परब्रह्म का स्वरूप हैं, आपको नमस्कार। मुझे राज्य, धन और साम्राज्य प्रदान करें।

3. तृतीय श्लोक

रक्ष मां शरण्ये देवि धन-धान्य-प्रदायिनि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥३॥

अर्थ: हे देवी, आप मेरी रक्षा करें। जो धन-धान्य की दात्री हैं, मुझे राज्य, धन और साम्राज्य प्रदान करें।

4. चतुर्थ श्लोक

नमस्तेऽस्तु महाकाली पर-ब्रह्म-स्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥४॥

अर्थ: हे महाकाली, जो परब्रह्म का स्वरूप हैं, आपको नमस्कार। मुझे राज्य, धन और साम्राज्य प्रदान करें।

5. पंचम श्लोक

नमस्तेऽस्तु महालक्ष्मी परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥५॥

अर्थ: हे महालक्ष्मी, जो परब्रह्म का स्वरूप हैं, आपको नमस्कार। मुझे राज्य, धन और साम्राज्य प्रदान करें।

6. षष्ठ श्लोक

नमस्तेऽस्तु महासरस्वती परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥६॥

अर्थ: हे महासरस्वती, जो परब्रह्म का स्वरूप हैं, आपको नमस्कार। मुझे राज्य, धन और साम्राज्य प्रदान करें।

7. सप्तम श्लोक

नमस्तेऽस्तु ब्राह्मी परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥७॥

अर्थ: हे ब्राह्मी देवी, जो परब्रह्म का स्वरूप हैं, आपको नमस्कार। मुझे राज्य, धन और साम्राज्य प्रदान करें।

8. अष्टम श्लोक

नमस्तेऽस्तु माहेश्वरी देवि परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥८॥

अर्थ: हे माहेश्वरी देवी, जो परब्रह्म का स्वरूप हैं, आपको नमस्कार। मुझे राज्य, धन और साम्राज्य प्रदान करें।

9. नवम श्लोक

नमस्तेऽस्तु च कौमारी परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥९॥

अर्थ: हे कौमारी देवी, जो परब्रह्म का स्वरूप हैं, आपको नमस्कार। मुझे राज्य, धन और साम्राज्य प्रदान करें।

10. दशम श्लोक

नमस्ते वैष्णवी देवि परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥१०॥

अर्थ: हे वैष्णवी देवी, जो परब्रह्म का स्वरूप हैं, आपको नमस्कार। मुझे राज्य, धन और साम्राज्य प्रदान करें।

11. एकादश श्लोक

नमस्तेऽस्तु च वाराही परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥११॥

अर्थ: हे वाराही देवी, जो परब्रह्म का स्वरूप हैं, आपको नमस्कार। मुझे राज्य, धन और साम्राज्य प्रदान करें।

12. द्वादश श्लोक

नारसिंही नमस्तेऽस्तु परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥१२॥

अर्थ: हे नारसिंही देवी, जो परब्रह्म का स्वरूप हैं, आपको नमस्कार। मुझे राज्य, धन और साम्राज्य प्रदान करें।

13. त्रयोदश श्लोक

नमो नमस्ते इन्द्राणी परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥१३॥

अर्थ: हे इन्द्राणी देवी, जो परब्रह्म का स्वरूप हैं, आपको नमस्कार। मुझे राज्य, धन और साम्राज्य प्रदान करें।

14. चतुर्दश श्लोक

नमो नमस्ते चामुण्डे परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥१४॥

अर्थ: हे चामुण्डा देवी, जो परब्रह्म का स्वरूप हैं, आपको नमस्कार। मुझे राज्य, धन और साम्राज्य प्रदान करें।

15. पंचदश श्लोक

नमो नमस्ते नन्दायै परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥१५॥

अर्थ: हे नन्दा देवी, जो परब्रह्म का स्वरूप हैं, आपको नमस्कार। मुझे राज्य, धन और साम्राज्य प्रदान करें।

16. षोडश श्लोक

रक्तदन्ते नमस्तेऽस्तु परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥१६॥

अर्थ: हे रक्तदंता देवी, जो परब्रह्म का स्वरूप हैं, आपको नमस्कार। मुझे राज्य, धन और साम्राज्य प्रदान करें।

17. सप्तदश श्लोक

नमस्तेऽस्तु महादुर्गे परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥१७॥

अर्थ: हे महादुर्गा देवी, जो परब्रह्म का स्वरूप हैं, आपको नमस्कार। मुझे राज्य, धन और साम्राज्य प्रदान करें।

18. अष्टादश श्लोक

शाकम्भरी नमस्तेऽस्तु परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥१८॥

अर्थ: हे शाकम्भरी देवी, जो परब्रह्म का स्वरूप हैं, आपको नमस्कार। मुझे राज्य, धन और साम्राज्य प्रदान करें।

19. उन्नविंश श्लोक

शिवदूति नमस्तेऽस्तु परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥१९॥

अर्थ: हे शिवदूति देवी, जो परब्रह्म का स्वरूप हैं, आपको नमस्कार। मुझे राज्य, धन और साम्राज्य प्रदान करें।

20. विंश श्लोक

नमस्ते भ्रामरी देवि परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥२०॥

अर्थ: हे भ्रामरी देवी, जो परब्रह्म का स्वरूप हैं, आपको नमस्कार। मुझे राज्य, धन और साम्राज्य प्रदान करें।

21. एकविंश श्लोक

नमो नवग्रहरुपे परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥२१॥

अर्थ: हे नवग्रह रूपिणी देवी, जो परब्रह्म का स्वरूप हैं, आपको नमस्कार। मुझे राज्य, धन और साम्राज्य प्रदान करें।

22. द्वाविंश श्लोक

नवकूट महादेवि परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥२२॥

अर्थ: हे नवकूट महादेवी, जो परब्रह्म का स्वरूप हैं, आपको नमस्कार। मुझे राज्य, धन और साम्राज्य प्रदान करें।

23. त्रयोविंश श्लोक

स्वर्णपूर्णे नमस्तेऽस्तु परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥२३॥

अर्थ: हे स्वर्णपूर्णा देवी, जो परब्रह्म का स्वरूप हैं, आपको नमस्कार। मुझे राज्य, धन और साम्राज्य प्रदान करें।

24. चतुर्विंश श्लोक

श्रीसुन्दरी नमस्तेऽस्तु परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥२४॥

अर्थ: हे श्रीसुन्दरी देवी, जो परब्रह्म का स्वरूप हैं, आपको नमस्कार। मुझे राज्य, धन और साम्राज्य प्रदान करें।

25. पंचविंश श्लोक

नमो भगवती देवि परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥२५॥

अर्थ: हे भगवती देवी, जो परब्रह्म का स्वरूप हैं, आपको नमस्कार। मुझे राज्य, धन और साम्राज्य प्रदान करें।

26. षड्विंश श्लोक

दिव्ययोगिनी नमस्ते परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥२६॥

अर्थ: हे दिव्ययोगिनी देवी, जो परब्रह्म का स्वरूप हैं, आपको नमस्कार। मुझे राज्य, धन और साम्राज्य प्रदान करें।

27. सप्तविंश श्लोक

नमस्तेऽस्तु महादेवि परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥२७॥

अर्थ: हे महादेवी, जो परब्रह्म का स्वरूप हैं, आपको नमस्कार। मुझे राज्य, धन और साम्राज्य प्रदान करें।

28. अष्टविंश श्लोक

नमो नमस्ते सावित्री परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥२८॥

अर्थ: हे सावित्री देवी, जो परब्रह्म का स्वरूप हैं, आपको नमस्कार। मुझे राज्य, धन और साम्राज्य प्रदान करें।

29. नवविंश श्लोक

जयलक्ष्मी नमस्तेऽस्तु परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥२९॥

अर्थ: हे जयलक्ष्मी देवी, जो परब्रह्म का स्वरूप हैं, आपको नमस्कार। मुझे राज्य, धन और साम्राज्य प्रदान करें।

30. त्रिंश श्लोक

मोक्षलक्ष्मी नमस्तेऽस्तु परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥३०॥

अर्थ: हे मोक्षलक्ष्मी देवी, जो परब्रह्म का स्वरूप हैं, आपको नमस्कार। मुझे राज्य, धन और साम्राज्य प्रदान करें।

31. चण्डीध्वज स्तोत्र का फल

चण्डीध्वजमिदं स्तोत्रं सर्वकामफलप्रदम् ।
राजते सर्वजन्तूनां वशीकरण साधनम् ॥३१॥

अर्थ: यह चण्डीध्वज स्तोत्र सभी इच्छाओं को पूर्ण करने वाला है। यह सभी जीवों को वशीकरण (आकर्षण) का साधन है।

32. समापन श्लोक

सर्वमङ्गलमाङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके ।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तुते॥

अर्थ: हे सर्वमंगल मंगला, हे शिवा, जो सभी कार्यों को सिद्ध करती हैं। हे त्र्यंबका, हे गौरी, हे नारायणी, आपको नमस्कार।


यहाँ पर इस स्तोत्र के प्रत्येक श्लोक में देवी के विभिन्न रूपों को संबोधित किया गया है, और उनसे राज्य, धन और समृद्धि की प्राप्ति की प्रार्थना की गई है।

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