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श्री जगदीश जी की आरती – Shri Jagdish Ji Ki Aarti – Hinduism FAQ

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  • – यह आरती भगवान जगदीश जी की स्तुति में गाई जाती है, जो भक्तों के संकट दूर करने वाले हैं।
  • – भगवान जगदीश को पूर्ण परमात्मा, करुणा के सागर, पालनकर्ता और सभी प्राणियों के स्वामी के रूप में वर्णित किया गया है।
  • – आरती में भगवान से पापों के नाश, श्रद्धा-भक्ति में वृद्धि और संकटों से मुक्ति की प्रार्थना की गई है।
  • – भगवान जगदीश को माता-पिता, मित्र, रक्षक और संहारक के रूप में भी माना गया है।
  • – वे कालातीत, अनादि-अनंत, अविनाशी और सभी जगत के पालनहार हैं।
  • – भक्तों से कहा गया है कि वे भगवान की शरण लें, जो दीनबंधु और दुःखहर्ता हैं।

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श्री जगदीश जी की आरती

जय जगदीश हरे, प्रभु! जय जगदीश हरे।
भक्तजनों के संकट, छन में दूर करे॥ जय जगदीश हरे



जो ध्यावै फल पावै, दु:ख बिनसै मनका।

सुख सम्पत्ति घर आवै, कष्ट मिटै तनका॥ जय जगदीश हरे



मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूँ किसकी।

तुम बिन और न दूजा, आस करूँ जिसकी॥ जय जगदीश हरे



तुम पूरन परमात्मा, तुम अंतर्यामी।

पार ब्रह्म परमेश्वर, तुम सबके स्वामी॥ जय जगदीश हरे



तुम करुणा के सागर, तुम पालनकर्ता।

मैं मुरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥ जय जगदीश हरे



तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति।

किस विधि मिलूँ दयामय, तुमको मैं कुमती॥ जय जगदीश हरे



दीनबन्धु, दु:खहर्ता तुम ठाकुर मेरे।

अपने हाथ उठाओ, द्वार पडा तेरे॥ जय जगदीश हरे



विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा।

श्रद्धा-भक्ति बढाओ, संतन की सेवा॥ जय जगदीश हरे



जय जगदीश हरे, प्रभु! जय जगदीश हरे।

मायातीत, महेश्वर मन-वच-बुद्धि परे॥ जय जगदीश हरे



आदि, अनादि, अगोचर, अविचल, अविनाशी।

अतुल, अनन्त, अनामय, अमित, शक्ति-राशि॥ जय जगदीश हरे

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अमल, अकल, अज, अक्षय, अव्यय, अविकारी।

सत-चित-सुखमय, सुन्दर शिव सत्ताधारी॥ जय जगदीश हरे



विधि-हरि-शंकर-गणपति-सूर्य-शक्तिरूपा।

विश्व चराचर तुम ही, तुम ही विश्वभूपा॥ जय जगदीश हरे



माता-पिता-पितामह-स्वामि-सुहृद्-भर्ता।

विश्वोत्पादक पालक रक्षक संहर्ता॥ जय जगदीश हरे



साक्षी, शरण, सखा, प्रिय प्रियतम, पूर्ण प्रभो।

केवल-काल कलानिधि, कालातीत, विभो॥ जय जगदीश हरे



राम-कृष्ण करुणामय, प्रेमामृत-सागर।

मन-मोहन मुरलीधर नित-नव नटनागर॥ जय जगदीश हरे



सब विधि-हीन, मलिन-मति, हम अति पातकि-जन।

प्रभुपद-विमुख अभागी, कलि-कलुषित तन मन॥ जय जगदीश हरे



आश्रय-दान दयार्णव! हम सबको दीजै।

पाप-ताप हर हरि! सब, निज-जन कर लीजै॥ जय जगदीश हरे
श्री जगदीश भगवान की जय


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