ॐ जय जानकीनाथा,
जय श्री रघुनाथा ।
दोउ कर जोरें बिनवौं,
प्रभु! सुनिये बाता ॥ ॐ जय..॥
तुम रघुनाथ हमारे,
प्राण पिता माता ।
तुम ही सज्जन-संगी,
भक्ति मुक्ति दाता ॥ ॐ जय..॥
लख चौरासी काटो,
मेटो यम त्रासा ।
निशदिन प्रभु मोहि रखिये,
अपने ही पासा ॥ ॐ जय..॥
राम भरत लछिमन,
सँग शत्रुहन भैया ।
जगमग ज्योति विराजै,
शोभा अति लहिया ॥ ॐ जय..॥
हनुमत नाद बजावत,
नेवर झमकाता ।
स्वर्णथाल कर आरती,
करत कौशल्या माता ॥ ॐ जय..॥
सुभग मुकुट सिर, धनु सर,
कर शोभा भारी ।
मनीराम दर्शन करि,
पल-पल बलिहारी ॥ ॐ जय..॥
जय जानकिनाथा,
हो प्रभु जय श्री रघुनाथा ।
हो प्रभु जय सीता माता,
हो प्रभु जय लक्ष्मण भ्राता ॥ ॐ जय..॥
हो प्रभु जय चारौं भ्राता,
हो प्रभु जय हनुमत दासा ।
दोउ कर जोड़े विनवौं,
प्रभु मेरी सुनो बाता ॥ ॐ जय..॥
श्री जानकीनाथ की आरती का संपूर्ण अर्थ
ॐ जय जानकीनाथा, जय श्री रघुनाथा
इस पंक्ति में भगवान राम और माता सीता का गुणगान करते हुए उनकी महिमा का वर्णन किया गया है। “जय जानकीनाथ” का अर्थ है “माता सीता के स्वामी की जय हो” और “जय श्री रघुनाथ” का अर्थ है “रघुकुल के स्वामी भगवान राम की जय हो।”
दोउ कर जोरें बिनवौं, प्रभु! सुनिये बाता
इस पंक्ति में भक्त अपने दोनों हाथ जोड़कर भगवान राम से विनती कर रहा है और उनसे अपनी प्रार्थना सुनने का आग्रह कर रहा है।
तुम रघुनाथ हमारे, प्राण पिता माता
यहां भक्त भगवान राम को अपना रक्षक और माता-पिता के समान मानता है, जो उसे जीवन की हर आवश्यकता प्रदान करते हैं और उसकी रक्षा करते हैं।
तुम ही सज्जन-संगी, भक्ति मुक्ति दाता
इस पंक्ति में भगवान राम को सज्जनों का साथी और भक्ति तथा मुक्ति के दाता के रूप में स्वीकार किया गया है। भक्त मानता है कि केवल भगवान राम ही उसे सच्ची भक्ति और अंततः मोक्ष दे सकते हैं।
लख चौरासी काटो, मेटो यम त्रासा
यहां भक्त भगवान से आग्रह कर रहा है कि वह उसे पुनर्जन्म के 84 लाख योनियों से मुक्त कर दें और मृत्यु के भय को समाप्त कर दें।
निशदिन प्रभु मोहि रखिये, अपने ही पासा
इस पंक्ति में भक्त भगवान से अनुरोध करता है कि वे हर दिन, हर समय, उसे अपनी निकटता में रखें और उसकी रक्षा करें।
राम भरत लछिमन, सँग शत्रुहन भैया
इस पंक्ति में राम, भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न भाईयों का उल्लेख करते हुए उनकी महिमा का गुणगान किया गया है। भक्त सभी भाईयों की एकता और प्रेम से प्रभावित है और उन्हें पूजनीय मानता है।
जगमग ज्योति विराजै, शोभा अति लहिया
इस पंक्ति में भगवान राम के तेजस्वी स्वरूप की प्रशंसा की गई है। यह बताया गया है कि उनकी ज्योति चारों ओर जगमगाती है और उनकी शोभा अद्वितीय है।
हनुमत नाद बजावत, नेवर झमकाता
यहां भगवान हनुमान का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि वह भगवान राम की स्तुति में घंटी बजा रहे हैं और उनके प्रति भक्ति दिखा रहे हैं।
स्वर्णथाल कर आरती, करत कौशल्या माता
इस पंक्ति में माता कौशल्या का उल्लेख किया गया है, जो सोने की थाली में भगवान राम की आरती कर रही हैं। यह भगवान राम के प्रति उनकी गहन प्रेम और भक्ति को दर्शाता है।
सुभग मुकुट सिर, धनु सर, कर शोभा भारी
इस पंक्ति में भगवान राम के सुंदर मुकुट, धनुष और बाण की शोभा का वर्णन है, जो उनके वीर और अद्वितीय रूप को प्रकट करते हैं।
मनीराम दर्शन करि, पल-पल बलिहारी
यहां भक्त भगवान राम के दर्शन करके अपने आप को धन्य मानता है और बार-बार उनके ऊपर बलिहारी होने की इच्छा व्यक्त करता है।
जय जानकिनाथा, हो प्रभु जय श्री रघुनाथा
यह पंक्ति फिर से भगवान राम और माता सीता के प्रति श्रद्धा प्रकट करते हुए उनकी जय-जयकार करती है।
हो प्रभु जय सीता माता, हो प्रभु जय लक्ष्मण भ्राता
यहां भक्त भगवान राम के साथ माता सीता और लक्ष्मण के प्रति भी श्रद्धा प्रकट कर रहा है, जो भगवान के साथ हर समय रहते हैं।
हो प्रभु जय चारौं भ्राता, हो प्रभु जय हनुमत दासा
इस पंक्ति में चारों भाईयों और भगवान हनुमान के प्रति श्रद्धा व्यक्त की गई है। भक्त का मानना है कि ये सभी भगवान के सच्चे और प्रिय साथी हैं।
दोउ कर जोड़े विनवौं, प्रभु मेरी सुनो बाता
अंतिम पंक्ति में भक्त अपने दोनों हाथ जोड़कर भगवान से प्रार्थना कर रहा है कि उसकी प्रार्थना सुनें और उसका मार्गदर्शन करें।
इस आरती में भगवान राम के प्रति श्रद्धा, प्रेम, भक्ति और उनके दिव्य गुणों का संपूर्ण वर्णन किया गया है। भक्त अपने आप को भगवान के चरणों में समर्पित करता है और उनसे सदा उनके निकट रहने की प्रार्थना करता है।