धर्म दर्शन वॉट्स्ऐप चैनल फॉलो करें Join Now

शेयर, लाइक या कॉमेंट जरूर करें!

॥दोहा॥
श्री रामचन्द्र कृपालु भजुमन
हरण भवभय दारुणं ।
नव कंज लोचन कंज मुख
कर कंज पद कंजारुणं ॥१॥

कन्दर्प अगणित अमित छवि
नव नील नीरद सुन्दरं ।
पटपीत मानहुँ तडित रुचि शुचि
नोमि जनक सुतावरं ॥२॥

भजु दीनबन्धु दिनेश दानव
दैत्य वंश निकन्दनं ।
रघुनन्द आनन्द कन्द कोशल
चन्द दशरथ नन्दनं ॥३॥

शिर मुकुट कुंडल तिलक
चारु उदारु अङ्ग विभूषणं ।
आजानु भुज शर चाप धर
संग्राम जित खरदूषणं ॥४॥

इति वदति तुलसीदास शंकर
शेष मुनि मन रंजनं ।
मम् हृदय कंज निवास कुरु
कामादि खलदल गंजनं ॥५॥

मन जाहि राच्यो मिलहि सो
वर सहज सुन्दर सांवरो ।
करुणा निधान सुजान शील
स्नेह जानत रावरो ॥६॥

एहि भांति गौरी असीस सुन सिय
सहित हिय हरषित अली।
तुलसी भवानिहि पूजी पुनि-पुनि
मुदित मन मन्दिर चली ॥७॥

॥सोरठा॥
जानी गौरी अनुकूल सिय
हिय हरषु न जाइ कहि ।
मंजुल मंगल मूल वाम
अङ्ग फरकन लगे।

श्री राम स्तुति

दोहा

श्री रामचन्द्र कृपालु भजुमन

भावार्थ: श्रीरामचन्द्रजी की कृपा का भजन करो, हे मन! जो संसार के दुःखों और भय को हरते हैं।

इस पंक्ति में संत तुलसीदासजी भगवान श्रीराम की महिमा का वर्णन करते हुए कहते हैं कि उनका भजन करने से जीवन के सारे कष्ट और भवसागर के भय दूर हो जाते हैं।

हरण भवभय दारुणं

भावार्थ: जो भवसागर (जीवन-मरण के चक्र) के भयंकर भय को हरते हैं।

यहाँ “भवभय” का अर्थ जीवन-मरण के चक्र के भय से है, और “दारुण” का मतलब अत्यंत भयानक से है। तुलसीदासजी बताते हैं कि श्रीराम का स्मरण हर तरह के भय और दुख को हर लेता है।

नव कंज लोचन कंज मुख कर कंज पद कंजारुणं

भावार्थ: जिनके नेत्र, मुख, हाथ और चरण कमल के समान सुंदर और लालिमा लिए हुए हैं।

इस पंक्ति में भगवान श्रीराम के शारीरिक स्वरूप का वर्णन है। उनके नेत्र, मुख, हाथ, और चरण कमल के समान सुंदर और लाल रंग के हैं, जो उनकी कोमलता और सौम्यता का प्रतीक है।

कन्दर्प अगणित अमित छवि

भावार्थ: जिनकी छवि अनगिनत कामदेवों के सौंदर्य से भी अधिक है।

यहाँ “कन्दर्प” का अर्थ कामदेव से है। तुलसीदासजी कहते हैं कि भगवान श्रीराम की छवि इतनी मोहक है कि अनगिनत कामदेव भी उनके सामने फीके लगते हैं।

नव नील नीरद सुन्दरं

भावार्थ: जो नवनील मेघ के समान सुंदर हैं।

श्रीराम का वर्ण नवनील (गहरे नीले) बादलों के समान बताया गया है, जो उनकी शीतलता और मोहकता का प्रतीक है।

पटपीत मानहुँ तडित रुचि शुचि नोमि जनक सुतावरं

भावार्थ: जिनका पीला वस्त्र मानो बिजली की चमक की तरह उज्जवल और शुद्ध है, मैं उन्हें प्रणाम करता हूँ, जो जनक की पुत्री (सीता) के पति हैं।

तुलसीदासजी भगवान श्रीराम का वर्णन करते हुए कहते हैं कि उनका वस्त्र बिजली की तरह चमकता है। वह श्री सीता के पति के रूप में पूजनीय हैं।

भजु दीनबन्धु दिनेश दानव दैत्य वंश निकन्दनं

भावार्थ: जो दीनों के बंधु और सूर्य के समान दानवों के वंश का नाश करने वाले हैं।

“दीनबन्धु” का अर्थ दीनों का सखा और सहारा है, और “दिनेश” सूर्य के समान तेजस्वी। श्रीराम दानवों और दैत्यों का विनाश करने वाले, दीनों का सहारा और सूर्य की भांति चमकने वाले हैं।

रघुनन्द आनन्द कन्द कोशल चन्द दशरथ नन्दनं

भावार्थ: जो रघुकुल के आनंदकंद, कोशल के चंद्रमा और दशरथ के पुत्र हैं।

यहाँ श्रीराम को रघुकुल का आनंदकंद (आनंद का स्रोत), कोशल प्रदेश के चंद्रमा और महाराज दशरथ के पुत्र के रूप में वर्णित किया गया है।

शिर मुकुट कुंडल तिलक चारु उदारु अङ्ग विभूषणं

भावार्थ: जिनके सिर पर मुकुट, कानों में कुंडल, और भाल पर तिलक है। उनका शरीर सुंदर और उदारता से विभूषित है।

इस पंक्ति में श्रीराम की अलंकारिक शोभा का वर्णन है। उनके सिर पर मुकुट, कानों में कुंडल, और मस्तक पर तिलक उनके राजसी स्वरूप को प्रकट करता है।

आजानु भुज शर चाप धर संग्राम जित खरदूषणं

भावार्थ: जिनकी बाहें घुटनों तक लंबी हैं, जो बाण और धनुष धारण करते हैं और जिन्होंने युद्ध में खर-दूषण को जीता है।

तुलसीदासजी भगवान श्रीराम के शौर्य का वर्णन करते हैं। “आजानु भुज” का अर्थ है लंबी बाहें, और उन्होंने अपनी वीरता से कई युद्ध जीते हैं, जिनमें खर और दूषण का वध भी शामिल है।

इति वदति तुलसीदास शंकर शेष मुनि मन रंजनं

भावार्थ: इस प्रकार तुलसीदास कहते हैं कि भगवान श्रीराम शिव, शेषनाग और मुनियों के मन को आनंदित करने वाले हैं।

तुलसीदासजी भगवान श्रीराम की महिमा का बखान करते हुए कहते हैं कि श्रीराम का स्मरण शिव, शेषनाग, और सभी मुनियों के मन को भी प्रसन्न करता है।

मम् हृदय कंज निवास कुरु कामादि खलदल गंजनं

भावार्थ: मेरे हृदय-कमल में निवास करो और काम आदि दुर्गुणों का नाश करो।

कवि अपने हृदय में श्रीराम का वास चाहते हैं और उनसे प्रार्थना करते हैं कि वे उनके मन के सारे दुर्गुणों का नाश करें।

मन जाहि राच्यो मिलहि सो वर सहज सुन्दर सांवरो

भावार्थ: जिन पर मेरा मन रमा हुआ है, वही स्वाभाविक रूप से सुंदर सांवला वर मुझे मिले।

तुलसीदासजी यहाँ ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि वे उन्हें वही मिलें, जिन पर उनका मन रमा हुआ है, अर्थात भगवान श्रीराम, जो अत्यंत सुंदर और सांवले हैं।

करुणा निधान सुजान शील स्नेह जानत रावरो

भावार्थ: जो करुणा के भंडार हैं, सुजान हैं, शीलवान हैं और प्रेम के महत्व को जानते हैं।

श्रीराम को करुणा का भंडार, गुणी, शीलवान और प्रेम का महत्व जानने वाले भगवान के रूप में दर्शाया गया है।

एहि भांति गौरी असीस सुन सिय सहित हिय हरषित अली

भावार्थ: इस प्रकार माता गौरी का आशीर्वाद सुनकर सीता सहित सभी सखियाँ हृदय में हर्षित हो उठीं।

यहाँ वर्णन है कि माता गौरी द्वारा सीता को श्रीराम के प्रति प्रेम और वरदान का आशीर्वाद मिलने के बाद सीता और उनकी सभी सखियाँ प्रसन्न हो गईं। यह आशीर्वाद उनके मन की इच्छाओं के पूर्ण होने का प्रतीक था।

तुलसी भवानिहि पूजी पुनि-पुनि मुदित मन मन्दिर चली

भावार्थ: तुलसीदास कहते हैं कि सीता ने गौरीजी का बार-बार पूजन किया और प्रसन्न मन से मंदिर से लौटीं।

इस पंक्ति में तुलसीदासजी बताते हैं कि सीता माता गौरी का पूजन कर बार-बार उन्हें प्रणाम करती हैं और प्रसन्न मन से मंदिर से लौटती हैं। यह उनकी भक्ति और श्रद्धा का प्रतीक है।

सोरठा

जानी गौरी अनुकूल सिय हिय हरषु न जाइ कहि

भावार्थ: गौरीजी को अनुकूल देखकर सीता के हृदय में जो हर्ष हुआ, वह वर्णन करने में नहीं आता।

इस सोरठा में तुलसीदासजी ने कहा है कि माता सीता का हृदय गौरीजी का आशीर्वाद पाकर इतना प्रसन्न हो उठा कि उसे शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता।

मंजुल मंगल मूल वाम अङ्ग फरकन लगे

भावार्थ: सुंदर और मंगल का मूल स्वरूप श्रीराम का वाम अंग फड़कने लगा।

यहाँ संकेत दिया गया है कि श्रीराम के वाम अंग का फड़कना एक शुभ शकुन है, जो शुभ और मंगलमय घटनाओं का आगमन बताता है।

संपूर्ण स्तुति का सार

भगवान श्रीराम की इस स्तुति में संत तुलसीदासजी ने उनके सौंदर्य, शील, और शौर्य का गान किया है। उन्होंने भगवान को सभी प्रकार के दुखों, दारुण भय और विकारों को हरने वाले के रूप में बताया है। इस स्तुति में भगवान राम के विभिन्न रूपों और गुणों का विस्तार से वर्णन करते हुए तुलसीदासजी ने भगवान से अपने हृदय में वास करने और अपने मन को सभी दोषों और विकारों से मुक्त करने की प्रार्थना की है।

शेयर, लाइक या कॉमेंट जरूर करें!

अस्वीकरण (Disclaimer) : नुस्खे, योग, धर्म, ज्योतिष आदि विषयों पर HinduismFAQ में प्रकाशित/प्रसारित वीडियो, आलेख एवं समाचार सिर्फ आपकी जानकारी के लिए हैं। 'HinduismFAQ' इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *