- – यह गीत माँ की दया और आशीर्वाद की महिमा को दर्शाता है, जो हमेशा साथ रहती है और संकटों में सहायता करती है।
- – “ऊँची चढ़ाई” तिरकुट पर्वत पर बसे महामाई के द्वार तक पहुंचने की कठिन यात्रा का प्रतीक है।
- – भक्त सर्दी, गर्मी और बारिश के बावजूद माँ के द्वार तक पहुँचने के लिए निरंतर प्रयास करते हैं।
- – माँ की कृपा से सभी दुख दूर होते हैं और जीवन खुशियों से भर जाता है।
- – गीत में माँ के चरणों की धूल माथे पर लगाने का महत्व बताया गया है, जो भक्तों के लिए आशीर्वाद का स्रोत है।
- – यह गीत श्रद्धा, भक्ति और माँ के प्रति गहरी आस्था को प्रकट करता है।
ऊँची चढ़ाई,
तर्ज – लंबी जुदाई
श्लोक
है रेहमत तेरी माँ,
पल पल बरसे,
जाए नही खाली,
कभी सवाली दर से।
हुई है सदा ही मेरी मात सहाई,
ऊंची चढ़ाई,
आया जो चढ़के,
द्वार मैया के ये ऊँची चढ़ाई,
ऊंची चढ़ाई,
तिरकुट पर्वत पर बसे महामाई,
ऊंची चढ़ाई, ऊंची चढ़ाई।।
सर्दी हो गर्मी चाहे, बारिश का मौसम,
रुकते नही है, आगे बढ़ते कदम,
जय जयकार पुरे रस्ते, देती सुनाई,
द्वार मैया के आया जो चढ़के,
ऊंची चढ़ाई, ऊंची चढ़ाई।।
आते है दूर दूर से नाम दिवाने,
सबके दिलो की इक्छा मैया ही जाने,
आशा की पूरी नही देर लगाई,
आया जो चढ़के,
द्वार मैया के ये ऊँची चढ़ाई,
ऊंची चढ़ाई, ऊंची चढ़ाई।।
भाग सँवर गए माँ की कृपा से,
खुशियो से झोली भरी सब दुःख नाशे,
चरणों की धूलि जो माथे लगाई,
आया जो चढ़के,
द्वार मैया के ये ऊँची चढ़ाई,
ऊंची चढ़ाई, ऊंची चढ़ाई।।
हुई है सदा ही मेरी मात,
सहाई,
ऊंची चढ़ाई,
आया जो चढ़के,
द्वार मैया के ये ऊंची चढ़ाई,
ऊंची चढ़ाई,
तिरकुट पर्वत पर बसे महामाई,
ऊंची चढ़ाई, ऊंची चढ़ाई।।