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निशुम्भ शुम्भ गर्जनी,
प्रचण्ड मुण्ड खण्डिनी ।
बनेरणे प्रकाशिनी,
भजामि विन्ध्यवासिनी ॥

त्रिशूल मुण्ड धारिणी,
धरा विघात हारिणी ।
गृहे-गृहे निवासिनी,
भजामि विन्ध्यवासिनी ॥

दरिद्र दुःख हारिणी,
सदा विभूति कारिणी ।
वियोग शोक हारिणी,
भजामि विन्ध्यवासिनी ॥

लसत्सुलोल लोचनं,
लतासनं वरप्रदं ।
कपाल-शूल धारिणी,
भजामि विन्ध्यवासिनी ॥

कराब्जदानदाधरां,
शिवाशिवां प्रदायिनी ।
वरा-वराननां शुभां,
भजामि विन्ध्यवासिनी ॥

कपीन्द्न जामिनीप्रदां,
त्रिधा स्वरूप धारिणी ।
जले-थले निवासिनी,
भजामि विन्ध्यवासिनी ॥

विशिष्ट शिष्ट कारिणी,
विशाल रूप धारिणी ।
महोदरे विलासिनी,
भजामि विन्ध्यवासिनी ॥

पुंरदरादि सेवितां,
पुरादिवंशखण्डितम्‌ ।
विशुद्ध बुद्धिकारिणीं,
भजामि विन्ध्यवासिनीं ॥

विन्ध्यवासिनी स्तुति का विस्तार

यह स्तुति माँ विन्ध्यवासिनी की महिमा का गुणगान करती है। इसमें माँ के विभिन्न रूपों, गुणों और शक्तियों का वर्णन किया गया है। प्रत्येक चौपाई में माँ विन्ध्यवासिनी की अद्भुत शक्ति, कृपा और उनके आशीर्वाद का विस्तार से वर्णन किया गया है। इस स्तुति को पढ़कर भक्त माँ विन्ध्यवासिनी की कृपा प्राप्त कर सकते हैं, जो सभी प्रकार के दुखों और कष्टों को हरने वाली हैं।

निशुम्भ शुम्भ गर्जनी, प्रचण्ड मुण्ड खण्डिनी ।

अर्थ:
माँ विन्ध्यवासिनी को यहां निशुम्भ और शुम्भ को पराजित करने वाली देवी के रूप में बताया गया है। उन्होंने राक्षसों का संहार किया और अपने शक्तिशाली रूप से इन बुराईयों का अंत किया। ‘प्रचण्ड मुण्ड खण्डिनी’ का अर्थ है कि माँ ने प्रचण्ड मुण्ड जैसे दानवों का भी वध किया।

व्याख्या:
इस चौपाई में यह संकेत मिलता है कि माँ विन्ध्यवासिनी दुष्टों का नाश करने वाली और अधर्म का अंत करने वाली शक्ति हैं। जब भी संसार में असुरों का अत्याचार बढ़ता है, माँ अपने प्रचण्ड रूप में आकर उनकी समाप्ति करती हैं। शुम्भ और निशुम्भ का वध इस बात का प्रतीक है कि माँ ने सदा अधर्म का विनाश किया है।

बनेरणे प्रकाशिनी, भजामि विन्ध्यवासिनी ॥

अर्थ:
माँ विन्ध्यवासिनी अपने भक्तों के जीवन में प्रकाश फैलाने वाली हैं। वे अज्ञानता के अंधकार को मिटाकर ज्ञान का प्रकाश फैलाती हैं। ‘भजामि विन्ध्यवासिनी’ का अर्थ है कि मैं माँ विन्ध्यवासिनी की आराधना करता हूँ।

व्याख्या:
माँ का प्रकाश सभी अंधकारों को मिटाने वाला है। जो भी उनके चरणों में शरणागत होता है, उसकी सभी समस्याएं और अज्ञानता समाप्त हो जाती हैं। विन्ध्यवासिनी माँ सदा अपने भक्तों के जीवन में रोशनी लाती हैं और उन्हें सही दिशा दिखाती हैं।

त्रिशूल मुण्ड धारिणी, धरा विघात हारिणी ।

अर्थ:
यहां माँ के त्रिशूल को धारण करने का वर्णन किया गया है। त्रिशूल माँ की शक्ति का प्रतीक है, जो तीनों लोकों में व्याप्त है। ‘धरा विघात हारिणी’ का अर्थ है कि माँ इस पृथ्वी पर आने वाली सभी विपत्तियों को समाप्त करने वाली हैं।

व्याख्या:
माँ विन्ध्यवासिनी त्रिशूल के रूप में तीनों लोकों पर अपना शासन करती हैं। उनका त्रिशूल त्रिगुणों (सत्त्व, रज, तम) का प्रतीक है। वे अपने त्रिशूल से सारे संसार के कष्टों का नाश करती हैं। धरा (पृथ्वी) पर आने वाली प्राकृतिक आपदाएं, व्यक्तिगत संकट आदि सब माँ की कृपा से समाप्त हो जाते हैं।

गृहे-गृहे निवासिनी, भजामि विन्ध्यवासिनी ॥

अर्थ:
माँ विन्ध्यवासिनी प्रत्येक घर में निवास करती हैं। वे सभी के जीवन में उपस्थित होती हैं और उनकी समस्याओं को हल करती हैं।

व्याख्या:
इस चौपाई में बताया गया है कि माँ किसी एक स्थान या सीमित क्षेत्र में नहीं बंधी हैं। वे सर्वत्र व्याप्त हैं और प्रत्येक भक्त के घर में विराजमान रहती हैं। माँ विन्ध्यवासिनी की पूजा करने से हर घर में सुख, शांति और समृद्धि आती है।

दरिद्र दुःख हारिणी, सदा विभूति कारिणी ।

अर्थ:
माँ दरिद्रता और दुखों का नाश करने वाली हैं। वे अपने भक्तों को सदा विभूति (धन-वैभव, सफलता) प्रदान करती हैं।

व्याख्या:
यहां माँ विन्ध्यवासिनी की विशेष कृपा का वर्णन किया गया है कि वे अपने भक्तों को गरीबी और दुखों से मुक्त करती हैं। जो भक्त सच्चे मन से उनकी आराधना करते हैं, उन्हें माँ दरिद्रता से बचाती हैं और सदा संपन्नता प्रदान करती हैं।

वियोग शोक हारिणी, भजामि विन्ध्यवासिनी ॥

अर्थ:
माँ वियोग और शोक को समाप्त करने वाली हैं।

व्याख्या:
माँ विन्ध्यवासिनी की आराधना करने से जीवन के सभी दुखों और वियोगों का अंत होता है। चाहे वह किसी प्रियजन से बिछुड़ने का शोक हो या किसी प्रकार का मानसिक दुख, माँ की कृपा से सब समाप्त हो जाता है।

लसत्सुलोल लोचनं, लतासनं वरप्रदं ।

अर्थ:
माँ की आंखें सजीव और सुंदर हैं, और वे लताओं की आसनी पर विराजमान हैं। वे अपने भक्तों को वरदान प्रदान करती हैं।

व्याख्या:
माँ विन्ध्यवासिनी की रूप सौंदर्यता का वर्णन इस चौपाई में किया गया है। उनकी आंखें जीवंत और आकर्षक हैं, जिससे उनकी दयालुता और कृपा झलकती है। वे प्राकृतिक स्वरूप में लताओं पर विराजमान रहती हैं और अपने भक्तों को वरदान देने वाली हैं।

कपाल-शूल धारिणी, भजामि विन्ध्यवासिनी ॥

अर्थ:
माँ अपने हाथ में कपाल और शूल धारण करती हैं। वे अपने भयावह रूप से दुष्टों का संहार करती हैं।

व्याख्या:
माँ विन्ध्यवासिनी का यह रूप उनके भक्तों के लिए रक्षा कवच है। वे अपने कपाल और शूल से दुष्टों का अंत करती हैं और अधर्म का नाश करती हैं। भक्तों के लिए वे सदा कृपालु हैं और उनकी सुरक्षा करती हैं।

कराब्जदानदाधरां, शिवाशिवां प्रदायिनी ।

अर्थ:
माँ के कमल के समान हाथ दान और आशीर्वाद प्रदान करने वाले हैं। वे शिव (कल्याण) और अशिव (विनाश) दोनों की दात्री हैं।

व्याख्या:
माँ विन्ध्यवासिनी अपने भक्तों को आशीर्वाद देती हैं, जो उन्हें जीवन में सुख और शांति प्रदान करता है। वे एक ओर कल्याणकारी हैं तो दूसरी ओर दुष्टों का नाश करने वाली भी हैं। उनके हाथ से प्राप्त आशीर्वाद से जीवन में समृद्धि और सफलता आती है।

वरा-वराननां शुभां, भजामि विन्ध्यवासिनी ॥

अर्थ:
माँ का मुख अत्यंत सुंदर और शुभ है।

व्याख्या:
इस चौपाई में माँ के मुखमंडल की सुंदरता का वर्णन किया गया है। उनका मुख अत्यंत मनमोहक और कल्याणकारी है। उनकी शुभ दृष्टि से भक्तों का जीवन सुखमय हो जाता है।

अभी तक वर्णित चौपाइयों में माँ विन्ध्यवासिनी की महिमा का विस्तार से वर्णन किया गया है। अगली चौपाइयों के विस्तार हेतु आगे की जानकारी दी जाएगी।

कपीन्द्न जामिनीप्रदां, त्रिधा स्वरूप धारिणी ।

अर्थ:
माँ विन्ध्यवासिनी, जो कपीन्द्र (वानर राज) को रात का वरदान देने वाली हैं और त्रिधा (तीन रूपों) को धारण करने वाली हैं।

व्याख्या:
इस चौपाई में माँ के तीन स्वरूपों का उल्लेख किया गया है, जो त्रिगुणात्मक शक्तियों का प्रतिनिधित्व करते हैं – सत्त्व, रज और तम। ये तीन शक्तियाँ संसार को संतुलन प्रदान करती हैं। ‘कपीन्द्न जामिनीप्रदां’ का अर्थ हनुमान जी को विशेष शक्तियाँ प्रदान करने से है, जो माँ की असीम कृपा का प्रतीक है। माँ हर जीव के जीवन में अंधकार को समाप्त कर प्रकाश लाती हैं।

जले-थले निवासिनी, भजामि विन्ध्यवासिनी ॥

अर्थ:
माँ जल और थल दोनों में निवास करती हैं, यानी वे सर्वत्र व्याप्त हैं।

व्याख्या:
इस चौपाई में माँ के सर्वव्यापी रूप का वर्णन किया गया है। माँ विन्ध्यवासिनी केवल एक स्थान या एक विशेष क्षेत्र में सीमित नहीं हैं। वे जल और थल, दोनों में निवास करती हैं, जो यह दर्शाता है कि वे हर जगह, हर तत्व में उपस्थित हैं। भक्त जहां भी जाएं, माँ का सान्निध्य और संरक्षण उन्हें प्राप्त होता है।

विशिष्ट शिष्ट कारिणी, विशाल रूप धारिणी ।

अर्थ:
माँ विन्ध्यवासिनी विशिष्ट कार्य करने वाली और विशाल रूप धारण करने वाली देवी हैं।

व्याख्या:
यहां माँ के अद्वितीय कार्यों और उनके विशाल स्वरूप का वर्णन किया गया है। ‘विशिष्ट शिष्ट कारिणी’ का अर्थ है कि माँ अपने भक्तों के लिए विशेष कार्य करती हैं, जो उन्हें कष्टों से मुक्ति दिलाता है। उनका विशाल रूप इस बात का प्रतीक है कि उनकी शक्ति और कृपा असीमित है। उनके दर्शन मात्र से भक्तों को अपार शांति और सुख की प्राप्ति होती है।

महोदरे विलासिनी, भजामि विन्ध्यवासिनी ॥

अर्थ:
माँ का निवास महोदरी (विशाल उदर) में है, और वे उसमें अपनी शक्ति से विलास करती हैं।

व्याख्या:
यहां माँ के ‘महोदरे’ स्वरूप का वर्णन है, जिसका अर्थ है कि वे समस्त संसार को अपने अंदर समाहित करने वाली हैं। उनका विशाल उदर समस्त सृष्टि को धारण करता है, और वे उसमें अपनी माया और शक्ति से सृष्टि का संचालन करती हैं। माँ की यह शक्ति असीम है, जो यह बताती है कि वे संपूर्ण जगत की जननी हैं और सारा संसार उनके अधीन है।

पुंरदरादि सेवितां, पुरादिवंशखण्डितम्‌ ।

अर्थ:
माँ विन्ध्यवासिनी की पूजा इन्द्र जैसे देवता भी करते हैं। उन्होंने पुरा (पुराणकालीन) के वंशों का नाश किया है।

व्याख्या:
इस चौपाई में यह बताया गया है कि माँ विन्ध्यवासिनी की पूजा इन्द्र और अन्य देवताओं ने भी की है। जब भी संसार में अत्याचारियों और दुष्टों का आतंक बढ़ा है, माँ ने उन्हें नष्ट कर धर्म की पुनर्स्थापना की है। ‘पुरादिवंशखण्डितम्‌’ का अर्थ है कि उन्होंने पुराणकालीन दुष्ट वंशों का अंत किया है, जो उनकी अद्भुत शक्ति और धर्म की रक्षा के प्रति उनकी निष्ठा को दर्शाता है।

विशुद्ध बुद्धिकारिणीं, भजामि विन्ध्यवासिनीं ॥

अर्थ:
माँ विशुद्ध (शुद्ध) बुद्धि प्रदान करने वाली हैं।

व्याख्या:
यहां माँ विन्ध्यवासिनी के ज्ञानस्वरूप का वर्णन किया गया है। वे अपने भक्तों को शुद्ध बुद्धि और विवेक प्रदान करती हैं, जिससे भक्त सही और गलत के बीच अंतर कर सकें। उनकी कृपा से भक्तों को सत्य का मार्ग दिखता है, और वे जीवन में सदा सही निर्णय लेने में सक्षम होते हैं। माँ की आराधना करने से मानसिक शांति और आध्यात्मिक जागृति प्राप्त होती है।

माँ विन्ध्यवासिनी का महत्व

माँ विन्ध्यवासिनी को शक्तिशाली देवी के रूप में पूजा जाता है, जो विन्ध्याचल पर्वत में स्थित हैं। उनका यह स्वरूप दुर्गा के नौ रूपों में से एक है। विन्ध्यवासिनी देवी को आदिशक्ति के रूप में माना जाता है, जिनके बिना यह संसार अधूरा है। विन्ध्यवासिनी देवी को ‘माँ’ कहकर संबोधित करना इस बात का प्रतीक है कि वे सभी के लिए पालनकर्ता, रक्षक और जगतजननी हैं।

माँ के नाम का अर्थ

विन्ध्यवासिनी नाम का तात्पर्य है “वह जो विन्ध्य पर्वत में वास करती हैं”। विन्ध्य पर्वत पर स्थित यह देवी पूरी सृष्टि की संरक्षिका मानी जाती हैं। देवी के इस रूप को शक्ति का प्रतीक माना जाता है, और यह भी माना जाता है कि जो व्यक्ति सच्चे ह्रदय से उनकी उपासना करता है, उसे जीवन में हर प्रकार की सफलता और कष्टों से मुक्ति प्राप्त होती है।

चौपाइयों के आध्यात्मिक संदेश

इस स्तुति की चौपाइयों में माँ के विभिन्न गुणों और रूपों का वर्णन करते हुए, यह बताया गया है कि माँ न केवल दानवों और असुरों का नाश करती हैं, बल्कि वे अपने भक्तों को भौतिक और आध्यात्मिक रूप से भी लाभान्वित करती हैं। उदाहरण के लिए, ‘दरिद्र दुःख हारिणी’ का अर्थ है कि माँ दरिद्रता, कष्ट, और दुखों का नाश करती हैं। यह दर्शाता है कि भक्त को आर्थिक और मानसिक संताप से मुक्ति मिलती है।

माँ का दुष्टों का नाश करना

शुम्भ और निशुम्भ जैसे असुरों का वध करके माँ ने अपने शक्तिशाली और रौद्र रूप का प्रदर्शन किया। इससे यह सिद्ध होता है कि जब भी संसार में अधर्म, अत्याचार और अन्याय बढ़ता है, माँ विन्ध्यवासिनी अपने भक्तों की रक्षा करने के लिए अपने भयंकर रूप धारण करती हैं। उनका त्रिशूल और शूल प्रतीक है उन शक्तियों का, जो दुष्टों का विनाश करती हैं और धर्म की पुनर्स्थापना करती हैं।

सर्वव्यापी रूप

माँ विन्ध्यवासिनी का सर्वव्यापी स्वरूप दर्शाता है कि वे कहीं भी सीमित नहीं हैं। ‘जले-थले निवासिनी’ से यह स्पष्ट होता है कि माँ जल और थल, दोनों में निवास करती हैं। इसका गहरा आध्यात्मिक अर्थ यह है कि माँ हर स्थान और हर स्थिति में अपने भक्तों के साथ हैं। चाहे भक्त किसी भी परिस्थिति में हों, माँ की कृपा सदा उनके साथ रहती है।

भक्तों पर कृपा

माँ विन्ध्यवासिनी अपने भक्तों को वरदान और आशीर्वाद प्रदान करने वाली हैं। वे दान, आशीर्वाद, और हर प्रकार की शुभता की देवी हैं। उनके कृपा से भक्तों को जीवन में सही मार्गदर्शन, मानसिक शांति, और भौतिक सुख की प्राप्ति होती है। वे वियोग और शोक को दूर करती हैं, जिससे जीवन में आनंद और संतोष बना रहता है।

माँ के त्रिगुणात्मक रूप

त्रिगुण (सत्त्व, रज और तम) का भी विशेष वर्णन किया गया है। यह तीनों गुण माँ की सृष्टि के संचालन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। सत्त्व गुण से शांति और पवित्रता आती है, रज से सक्रियता और ऊर्जा, और तम से विनाश और नवीनीकरण। माँ विन्ध्यवासिनी इन तीनों गुणों की अधिष्ठात्री देवी हैं, और संसार में इनका संतुलन बनाए रखती हैं।

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