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आरती बाल कृष्ण की कीजै,
अपना जन्म सफल कर लीजै ॥

श्री यशोदा का परम दुलारा,
बाबा के अँखियन का तारा ।
गोपियन के प्राणन से प्यारा,
इन पर प्राण न्योछावर कीजै ॥
॥आरती बाल कृष्ण की कीजै…॥

बलदाऊ के छोटे भैया,
कनुआ कहि कहि बोले मैया ।
परम मुदित मन लेत बलैया,
अपना सरबस इनको दीजै ॥
॥आरती बाल कृष्ण की कीजै…॥

श्री राधावर कृष्ण कन्हैया,
ब्रज जन को नवनीत खवैया ।
देखत ही मन लेत चुरैया,
यह छवि नैनन में भरि लीजै ॥
॥आरती बाल कृष्ण की कीजै…॥

तोतली बोलन मधुर सुहावै,
सखन संग खेलत सुख पावै ।
सोई सुक्ति जो इनको ध्यावे,
अब इनको अपना करि लीजै ॥
॥आरती बाल कृष्ण की कीजै…॥

आरती बाल कृष्ण की कीजै,
अपना जन्म सफल कर लीजै ॥

श्री बाल कृष्ण जी आरती का विस्तृत विवरण

आरती बाल कृष्ण की कीजै, अपना जन्म सफल कर लीजै

इस पंक्ति में भक्त भगवान बाल कृष्ण की आरती करने के महत्व को दर्शाते हैं। भगवान कृष्ण को आरती करके वे अपने जीवन को सफल बनाने का संकेत देते हैं। आरती का अर्थ है भगवान की सेवा, पूजा और सम्मान, और इससे भक्त अपने जीवन को ईश्वर के प्रति समर्पित करते हैं।

श्री यशोदा का परम दुलारा, बाबा के अँखियन का तारा

भगवान कृष्ण को यहाँ माँ यशोदा का सबसे प्रिय पुत्र कहा गया है, जिन्हें देखकर उनके पिता नंद बाबा की आँखों में चमक आ जाती है। यह कृष्ण के माता-पिता के लिए उनके विशेष महत्व और प्रेम को दर्शाता है, जो उन पर अपनी पूरी ममता न्योछावर करते हैं।

गोपियन के प्राणन से प्यारा, इन पर प्राण न्योछावर कीजै

गोपियों के लिए कृष्ण उनकी आत्मा के समान प्रिय हैं। उनके प्रति गोपियों का अद्वितीय प्रेम यहाँ अभिव्यक्त होता है। यह पंक्ति दर्शाती है कि भक्त को भी कृष्ण पर अपने प्राणों का समर्पण करना चाहिए और उन्हें अपना आराध्य मानना चाहिए।

बलदाऊ के छोटे भैया, कनुआ कहि कहि बोले मैया

कृष्ण को यहाँ उनके बड़े भाई बलराम के छोटे भाई के रूप में वर्णित किया गया है। “कनुआ” कृष्ण का प्रिय नाम है, जिससे माँ यशोदा उन्हें स्नेहपूर्वक बुलाती हैं। यह पंक्ति भगवान कृष्ण के बाल रूप की प्यारी छवि को हमारे सामने रखती है, जिससे भक्त उन्हें अपने पुत्र के समान प्रेम करने लगते हैं।

परम मुदित मन लेत बलैया, अपना सरबस इनको दीजै

इस पंक्ति में यह बताया गया है कि माता यशोदा कृष्ण को देखकर बलैया लेती हैं, अर्थात् उन्हें किसी भी प्रकार की बुरी नज़र से बचाने के लिए उनके चारों ओर हाथ घुमाती हैं। इससे यह प्रेरणा मिलती है कि भक्त भी कृष्ण के प्रति अपनी पूरी भावनाएँ, समर्पण और प्रेम अर्पित करें।

श्री राधावर कृष्ण कन्हैया, ब्रज जन को नवनीत खवैया

भगवान कृष्ण को श्री राधा के प्रिय और कन्हैया के रूप में वर्णित किया गया है। वे ब्रजवासियों को अपनी चंचलता से प्रसन्न करते हैं और नवनीत (मक्खन) चुराने के खेल में उनकी भोली छवि को दर्शाया गया है। यह पंक्ति कृष्ण के बाल स्वरूप में उनकी प्यारी और चंचलता की याद दिलाती है।

देखत ही मन लेत चुरैया, यह छवि नैनन में भरि लीजै

इस पंक्ति में बताया गया है कि भगवान कृष्ण का बाल रूप ऐसा है कि जो भी उन्हें देखता है, उनका मन उनसे चुराया जाता है। भक्तों को सलाह दी जाती है कि वे कृष्ण की इस छवि को अपने नेत्रों में बसा लें, ताकि उनका ध्यान हमेशा कृष्ण पर ही केंद्रित रहे।

तोतली बोलन मधुर सुहावै, सखन संग खेलत सुख पावै

कृष्ण की तोतली बोली को यहाँ मधुर और सुहावना कहा गया है। उनका बाल स्वरूप और उनके सखाओं (मित्रों) के साथ खेलने का आनंद भक्तों के मन में गहरी भावनाओं को जगाता है।

सोई सुक्ति जो इनको ध्यावे, अब इनको अपना करि लीजै

जो व्यक्ति कृष्ण को सच्चे मन से याद करता है, वह अपने जीवन में सभी समस्याओं से मुक्त हो जाता है। भक्तों को यह सलाह दी गई है कि वे कृष्ण को अपने जीवन का अभिन्न अंग मानें और उन्हें अपना मानकर अपना जीवन सफल बनाएं।

आरती बाल कृष्ण की कीजै, अपना जन्म सफल कर लीजै

अंत में भक्तों से आग्रह किया गया है कि वे बाल कृष्ण की आरती करें, जिससे उनका जीवन सार्थक हो सके। यह पंक्ति भक्त को यह सिखाती है कि ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण और आराधना से जीवन में सच्चा सुख और शांति प्राप्त की जा सकती है।

यह आरती भगवान कृष्ण के बाल रूप में उनकी भोली छवि और उनकी लीला का सुंदर चित्रण करती है, और भक्तों को उनसे प्रेम और समर्पण की शिक्षा देती है।

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