अपने भगत की,
आँख में आँसू,
देख ना पाएगा,
जब जब भी श्याम दिवानों के,
सर पे संकट मंडराएगा,
कन्हैया दौड़ा आएगा,
अपने भगतों के लिए,
कुछ भी कर जाएगा,
कन्हैया दौडा आएगा ॥
जब दूर सवेरा हो,
घनघोर अंधेरा हो,
मेरे श्याम की आस लगाए जा,
तू छोड़ दे नैया को,
बस श्याम भरोसे पर,
बस श्याम नाम गुण गाये जा,
बनकर के माझी साँवरिया,
भव सागर पार करायेगा,
कन्हैया दौडा आएगा
कन्हैया दौडा आएगा ॥
हर एक मुसीबत ही,
खुद हल हो जाएगी,
जब मोरछड़ी लहरायेगा,
गोदी में बैठाकर के,
सीने से लगाकर के,
तेरे सिर पर हाथ फिरायेगा,
जितने भी अश्क बहे तेरे,
हर एक का मोल चुकाएगा,
कन्हैया दौडा आएगा
कन्हैया दौडा आएगा ॥
विश्वास की डोरी को,
तू थाम ले कस कर के,
बाँका ना होगा बाल तेरा,
साये सा ‘तरुण’ तेरे,
संग चलता जाएगा,
ये बनकर के रखवाल तेरा,
संकट पे संकट बनकर के,
मेरा श्याम स्वयं चढ़ जाएगा,
कन्हैया दौडा आएगा
कन्हैया दौडा आएगा ॥
अपने भगत की,
आँख में आँसू,
देख ना पाएगा,
जब जब भी श्याम दिवानों के,
सर पे संकट मंडराएगा,
कन्हैया दौड़ा आएगा,
अपने भगतों के लिए,
कुछ भी कर जाएगा,
कन्हैया दौडा आएगा ॥
कन्हैया दौड़ा आएगा – गहन अर्थ और विस्तृत व्याख्या
भजन का गहराई से परिचय
यह भजन भगवान श्रीकृष्ण के प्रति भक्तों के अटूट विश्वास और प्रेम को दर्शाता है। इसे लिखते समय कवि ने गहरे भावनात्मक और दार्शनिक विचारों को अभिव्यक्त किया है। इस भजन में न केवल श्रीकृष्ण के व्यक्तित्व को उजागर किया गया है, बल्कि यह भी बताया गया है कि उनकी सहायता उनके भक्तों को किस प्रकार संकटों से उबारती है।
इस व्याख्या में हम प्रत्येक पंक्ति के गहरे आध्यात्मिक और सांस्कृतिक अर्थ को समझने का प्रयास करेंगे।
अपने भगत की, आँख में आँसू, देख ना पाएगा
गहन अर्थ:
भगवान श्रीकृष्ण की दयालुता और करुणा इस पंक्ति में स्पष्ट रूप से झलकती है। भक्त और भगवान का संबंध केवल एक साधारण संबंध नहीं है; यह हृदय से हृदय का जुड़ाव है। जब भक्त के आँखों में आँसू आते हैं, तो यह भगवान के लिए असहनीय हो जाता है। यह पंक्ति कृष्ण के “करुणावतार” स्वरूप को उजागर करती है।
आध्यात्मिक संदर्भ:
श्रीमद्भगवद्गीता और अन्य वैष्णव ग्रंथों में बार-बार यह कहा गया है कि भगवान अपने भक्तों की पीड़ा को दूर करने के लिए तुरंत सक्रिय हो जाते हैं। आँसू उनकी पुकार का सबसे प्रभावशाली माध्यम बनते हैं।
जीवन से जुड़ा संदेश:
यह हमें सिखाता है कि भगवान से सच्चा और सरल संवाद करना चाहिए। आँसू उस सच्चाई और समर्पण का प्रतीक हैं, जो भक्त और भगवान के बीच के संबंध को मजबूत बनाता है।
जब जब भी श्याम दिवानों के, सर पे संकट मंडराएगा, कन्हैया दौड़ा आएगा
गहन अर्थ:
यह पंक्ति कृष्ण की अनंत दया और उनकी संकटहरण शक्ति को स्पष्ट करती है। यहाँ “श्याम दिवाने” का अर्थ है वे लोग जो श्रीकृष्ण की भक्ति में पूरी तरह डूबे हुए हैं। उनके जीवन में जब भी कठिनाइयाँ आती हैं, तो भगवान उन्हें संभालने और संकट से उबारने के लिए दौड़ पड़ते हैं।
सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य:
यह पंक्ति श्रीकृष्ण की लीला के अनेक प्रसंगों की याद दिलाती है, जैसे द्रौपदी चीरहरण के समय उनकी सहायता, गोवर्धन पर्वत उठाना, और सुदामा के प्रति उनकी करुणा। ये सभी प्रसंग दर्शाते हैं कि वे अपने भक्तों के रक्षक और पालक हैं।
संदेश:
यह पंक्ति यह सिखाती है कि जब तक हम भगवान के प्रति पूर्ण समर्पण रखते हैं, तब तक किसी भी संकट से घबराने की आवश्यकता नहीं है।
जब दूर सवेरा हो, घनघोर अंधेरा हो
गहन अर्थ:
यह पंक्ति जीवन के सबसे कठिन समय की ओर इशारा करती है, जब भविष्य अनिश्चित और अंधकारमय लगता है। ऐसे समय में भगवान श्रीकृष्ण का स्मरण और उनकी आस लगाना ही सबसे बड़ा सहारा है।
गीता से संदर्भ:
श्रीमद्भगवद्गीता में कृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि “मैं उन लोगों के लिए आशा का स्रोत हूँ, जो मुझमें विश्वास रखते हैं।” यह पंक्ति उसी दर्शन को प्रतिध्वनित करती है।
संदेश:
यह पंक्ति हमें सिखाती है कि जीवन में कितना भी कठिन समय क्यों न आए, भगवान पर विश्वास कभी कमजोर नहीं होना चाहिए। कठिन समय हमें उनकी ओर और गहराई से जुड़ने का अवसर देता है।
मेरे श्याम की आस लगाए जा, तू छोड़ दे नैया को, बस श्याम भरोसे पर
गहन अर्थ:
यहाँ “नैया” का अर्थ जीवन के संघर्षों और जिम्मेदारियों से है। इस पंक्ति में यह कहा गया है कि अपनी समस्याओं और चिंताओं को श्रीकृष्ण के भरोसे छोड़ देना चाहिए। “श्याम भरोसा” का अर्थ है कि भगवान पर पूर्ण विश्वास रखो और स्वयं को उनकी इच्छा के अनुसार समर्पित करो।
जीवन से जुड़ी सीख:
जब हम अपनी जिम्मेदारियों को भगवान की इच्छा के साथ जोड़ते हैं, तो वे हमें उचित मार्ग दिखाते हैं। यहाँ, “छोड़ दे नैया” का तात्पर्य निष्क्रियता से नहीं, बल्कि अडिग विश्वास से है।
आध्यात्मिक प्रेरणा:
यह भाग “निष्काम कर्म” की अवधारणा को स्पष्ट करता है, जिसमें कहा गया है कि हमें अपना कार्य करना चाहिए, लेकिन फल की चिंता श्रीकृष्ण पर छोड़ देनी चाहिए।
बनकर के माझी साँवरिया, भव सागर पार करायेगा
गहन अर्थ:
यहाँ भव सागर जीवन की कठिनाइयों और माया के जाल को दर्शाता है। श्रीकृष्ण को “माझी” (नाविक) कहकर यह बताया गया है कि वे भक्त के जीवन की नैया को इस सागर से पार करवा सकते हैं।
सांस्कृतिक पृष्ठभूमि:
“भव सागर” भारतीय दर्शन में एक प्रतीकात्मक विचार है, जहाँ जीवन को एक सागर के रूप में देखा जाता है। श्रीकृष्ण की भूमिका यहाँ एक मार्गदर्शक की है, जो भक्त को सही दिशा में ले जाते हैं।
गहरी सीख:
यह पंक्ति हमें यह विश्वास दिलाती है कि जीवन में कठिनाई कितनी भी बड़ी क्यों न हो, भगवान पर भरोसा रखने से हम हर परिस्थिति का समाधान पा सकते हैं।
हर एक मुसीबत ही, खुद हल हो जाएगी, जब मोरछड़ी लहरायेगा
गहन अर्थ:
मोरछड़ी श्रीकृष्ण की दिव्यता और उनकी विशेषता का प्रतीक है। जब श्रीकृष्ण अपनी मोरछड़ी को लहराते हैं, तो यह संकेत है कि उनकी कृपा से सभी समस्याएँ अपने आप समाप्त हो जाती हैं।
सांस्कृतिक दृष्टिकोण:
श्रीकृष्ण का मोर मुकुट और मोरछड़ी उनकी लीला का अभिन्न हिस्सा हैं। यह दर्शाता है कि वे सरलता और दैवीय शक्ति का संगम हैं।
संदेश:
यह पंक्ति हमें सिखाती है कि हमें अपनी समस्याओं को हल करने का प्रयास करते हुए भगवान की कृपा पर विश्वास रखना चाहिए। उनकी दिव्यता किसी भी बाधा को हल करने में सक्षम है।
गोदी में बैठाकर के, सीने से लगाकर के, तेरे सिर पर हाथ फिरायेगा
गहन अर्थ:
यह पंक्ति भगवान की ममता और प्रेम का प्रतीक है। गोदी में बैठाना और सिर पर हाथ फेरना दर्शाता है कि भगवान अपने भक्त को सांत्वना और सुरक्षा प्रदान करते हैं।
आध्यात्मिक दृष्टिकोण:
यह पंक्ति श्रीकृष्ण के बालरूप और उनके बाल-भक्तों के प्रति प्रेम को भी उजागर करती है। “स्नेह” और “ममता” उनके भक्तों के प्रति उनके आचरण का अभिन्न अंग है।
संदेश:
यह पंक्ति हमें यह सिखाती है कि भगवान का प्रेम असीम है। वह प्रेम हमें न केवल मानसिक शांति देता है, बल्कि हमें आत्मिक रूप से भी सशक्त करता है।
जितने भी अश्क बहे तेरे, हर एक का मोल चुकाएगा
गहन अर्थ:
भक्त के आँसू भगवान के लिए अनमोल हैं। यहाँ यह दिखाया गया है कि भगवान न केवल उनके आँसुओं की पीड़ा को समझते हैं, बल्कि उनकी हर पीड़ा का प्रतिकार भी करते हैं।
दार्शनिक संदेश:
यह जीवन में कर्म और फल के गहरे दर्शन को उजागर करता है। भगवान भक्त के हर दुख का हिसाब रखते हैं और उसे अपनी कृपा से संतुलित करते हैं।
निष्कर्ष:
यह भजन श्रीकृष्ण की करुणा, उनकी संकटहरण शक्ति और भक्तों के प्रति उनके अटूट प्रेम का सजीव चित्रण है। यह हमें सिखाता है कि भगवान पर सच्चा विश्वास रखना, उनके नाम का जाप करना, और उनकी ममता का अनुभव करना ही जीवन को आनंदमय बनाता है।
यह भजन हमें हर परिस्थिति में यह विश्वास देता है कि श्रीकृष्ण हमेशा हमारे साथ हैं और जब भी हम उन्हें पुकारेंगे, वे दौड़े चले आएंगे।