अहोई अष्टमी: महत्वपूर्ण तिथि और वार
अहोई अष्टमी हिंदू धर्म में एक पवित्र पर्व और उपवास का दिन है, जिसे विशेष रूप से माताओं द्वारा अपने बच्चों की लंबी आयु और खुशहाल जीवन के लिए रखा जाता है। यह त्योहार हर साल हिंदू पंचांग के अनुसार कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है।
अहोई अष्टमी 2025 की तिथि और समय
वर्ष 2025 में अहोई अष्टमी का व्रत 13 अक्टूबर, सोमवार को रखा जाएगा।
- अष्टमी तिथि प्रारंभ: 13 अक्टूबर 2025 को दोपहर 12:24 बजे
- अष्टमी तिथि समाप्त: 14 अक्टूबर 2025 को सुबह 11:09 बजे
- पूजा का शुभ मुहूर्त: 13 अक्टूबर को शाम 5:40 बजे से 6:54 बजे तक
- तारों के दर्शन का समय: शाम 6:17 बजे
- चंद्रोदय का समय: रात 11:54 बजे
व्रत से संबंधित सामान्य प्रश्न
- अहोई अष्टमी का व्रत कब है?
वर्ष 2025 में अहोई अष्टमी का व्रत 13 अक्टूबर, सोमवार को है। - अहोई अष्टमी कितनी तारीख को है?
अहोई अष्टमी 13 अक्टूबर 2025 को मनाई जाएगी। - क्या अहोई अष्टमी का व्रत निर्जला रखा जाता है?
हां, अधिकांश महिलाएं इस दिन निर्जला व्रत रखती हैं और तारों के दर्शन के बाद ही जल ग्रहण करती हैं।
अहोई अष्टमी का महत्व
अहोई अष्टमी का व्रत और पूजा का उद्देश्य संतान की लंबी आयु और सुख-समृद्धि के लिए देवी अहोई माता की आराधना करना है। इस दिन महिलाएं सूर्योदय से चंद्रोदय तक उपवास करती हैं और संध्या के समय अहोई माता की मूर्ति या चित्र के सामने दीप जलाकर पूजा-अर्चना करती हैं।
पौराणिक मान्यता के अनुसार, यह व्रत उन माताओं के लिए अत्यंत फलदायी माना जाता है जो अपनी संतान की सुरक्षा और खुशहाली के लिए समर्पित होती हैं।
अहोई अष्टमी पूजा विधि
- व्रत का संकल्प: प्रातःकाल स्नान के बाद अहोई माता की पूजा का संकल्प लें।
- पूजा स्थल की तैयारी: पूजा स्थल को साफ करें और अहोई माता की तस्वीर या प्रतीकात्मक चित्र स्थापित करें।
- भोग और सामग्री: पूजा के लिए फल, मिठाई, रोली, चावल और विशेष भोग तैयार करें।
- दीप प्रज्वलन: संध्या के समय दीपक जलाकर पूजा करें और अहोई माता के साथ सप्त ऋषियों का स्मरण करें।
- चंद्र दर्शन: पूजा के बाद चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत का समापन करें।
2025 में अहोई अष्टमी कब है?
अगर आप 2025 में अहोई अष्टमी की तिथि के बारे में जानना चाहते हैं, तो यह त्योहार 13 अक्टूबर 2025 को मनाया जाएगा। यह पर्व माताओं के लिए उतना ही महत्वपूर्ण रहेगा जितना हर साल होता है।
अहोई अष्टमी केवल एक उपवास का दिन नहीं है, बल्कि यह दिन मातृत्व के प्रति समर्पण और संतान के प्रति स्नेह को दर्शाता है। यह पर्व हमारी संस्कृति और परंपराओं का एक अभिन्न हिस्सा है, जो हर साल बड़ी श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है।