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॥ दोहा॥
शीश नवा अरिहन्त को,सिद्धन करूँ प्रणाम।
उपाध्याय आचार्य का,ले सुखकारी नाम॥

सर्व साधु और सरस्वती,जिन मन्दिर सुखकार।
महावीर भगवान को,मन-मन्दिर में धार॥

॥ चौपाई ॥
जय महावीर दयालु स्वामी।वीर प्रभु तुम जग में नामी॥
वर्धमान है नाम तुम्हारा।लगे हृदय को प्यारा प्यारा॥

शांति छवि और मोहनी मूरत।शान हँसीली सोहनी सूरत॥
तुमने वेश दिगम्बर धारा।कर्म-शत्रु भी तुम से हारा॥

क्रोध मान अरु लोभ भगाया।महा-मोह तमसे डर खाया॥
तू सर्वज्ञ सर्व का ज्ञाता।तुझको दुनिया से क्या नाता॥

तुझमें नहीं राग और द्वेश।वीर रण राग तू हितोपदेश॥
तेरा नाम जगत में सच्चा।जिसको जाने बच्चा बच्चा॥

भूत प्रेत तुम से भय खावें।व्यन्तर राक्षस सब भग जावें॥
महा व्याध मारी न सतावे।महा विकराल काल डर खावे॥

काला नाग होय फन-धारी।या हो शेर भयंकर भारी॥
ना हो कोई बचाने वाला।स्वामी तुम्हीं करो प्रतिपाला॥

अग्नि दावानल सुलग रही हो।तेज हवा से भड़क रही हो॥
नाम तुम्हारा सब दुख खोवे।आग एकदम ठण्डी होवे॥

हिंसामय था भारत सारा।तब तुमने कीना निस्तारा॥
जन्म लिया कुण्डलपुर नगरी।हुई सुखी तब प्रजा सगरी॥

सिद्धारथ जी पिता तुम्हारे।त्रिशला के आँखों के तारे॥
छोड़ सभी झंझट संसारी।स्वामी हुए बाल-ब्रह्मचारी॥

पंचम काल महा-दुखदाई।चाँदनपुर महिमा दिखलाई॥
टीले में अतिशय दिखलाया।एक गाय का दूध गिराया॥

सोच हुआ मन में ग्वाले के।पहुँचा एक फावड़ा लेके॥
सारा टीला खोद बगाया।तब तुमने दर्शन दिखलाया॥

जोधराज को दुख ने घेरा।उसने नाम जपा जब तेरा॥
ठंडा हुआ तोप का गोला।तब सब ने जयकारा बोला॥

मन्त्री ने मन्दिर बनवाया।राजा ने भी द्रव्य लगाया॥
बड़ी धर्मशाला बनवाई।तुमको लाने को ठहराई॥

तुमने तोड़ी बीसों गाड़ी।पहिया खसका नहीं अगाड़ी॥
ग्वाले ने जो हाथ लगाया।फिर तो रथ चलता ही पाया॥

पहिले दिन बैशाख वदी के।रथ जाता है तीर नदी के॥
मीना गूजर सब ही आते।नाच-कूद सब चित उमगाते॥

स्वामी तुमने प्रेम निभाया।ग्वाले का बहु मान बढ़ाया॥
हाथ लगे ग्वाले का जब ही।स्वामी रथ चलता है तब ही॥

मेरी है टूटी सी नैया।तुम बिन कोई नहीं खिवैया॥
मुझ पर स्वामी जरा कृपा कर।मैं हूँ प्रभु तुम्हारा चाकर॥

तुम से मैं अरु कछु नहीं चाहूँ।जन्म-जन्म तेरे दर्शन पाऊँ॥
चालीसे को चन्द्र बनावे।बीर प्रभु को शीश नवावे॥

॥ सोरठा ॥
नित चालीसहि बार,पाठ करे चालीस दिन।
खेय सुगन्ध अपार,वर्धमान के सामने।

होय कुबेर समान,जन्म दरिद्री होय जो।
जिसके नहिं सन्तान,नाम वंश जग में चले।

महावीर भगवान की स्तुति

दोहा

अरिहंत, सिद्ध, उपाध्याय, और आचार्य की वंदना

शीश नवा अरिहन्त को, सिद्धन करूँ प्रणाम।
उपाध्याय आचार्य का, ले सुखकारी नाम॥

इस दोहे में महावीर भगवान की वंदना की गई है। सर्वप्रथम अरिहंत को सिर नवाने की बात की गई है, क्योंकि वे अपने कर्मों को जीत चुके हैं। सिद्ध भगवान को प्रणाम किया गया है, जो कर्मों से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त कर चुके हैं। इसके बाद, उपाध्याय और आचार्य की वंदना की गई है, जो धर्म और ज्ञान का मार्गदर्शन करते हैं। ये सभी हमारे जीवन में सुख और शांति का कारण होते हैं।

जिन मंदिर और साधु की महिमा

सर्व साधु और सरस्वती, जिन मन्दिर सुखकार।
महावीर भगवान को, मन-मन्दिर में धार॥

इस दोहे में साधुओं और सरस्वती (ज्ञान की देवी) की महिमा का वर्णन किया गया है। जिन मंदिर में विराजमान भगवान महावीर और साधु सभी के लिए सुखकारक होते हैं। अंततः भगवान महावीर को अपने मन-मंदिर में धारण करने की सलाह दी जाती है, जिससे आत्मिक शांति और मोक्ष की प्राप्ति हो सके।

चौपाई

महावीर स्वामी की जय

जय महावीर दयालु स्वामी। वीर प्रभु तुम जग में नामी॥
वर्धमान है नाम तुम्हारा। लगे हृदय को प्यारा प्यारा॥

यह चौपाई महावीर स्वामी की स्तुति में गाई गई है। भगवान महावीर, जिन्हें वर्धमान भी कहा जाता है, अपनी दया और करुणा के लिए विख्यात हैं। उनका नाम संसार में प्रसिद्ध है और उनके अनुयायियों के लिए उनका नाम हृदय को प्रिय लगता है।

शांत और मोहक स्वरूप

शांति छवि और मोहनी मूरत। शान हँसीली सोहनी सूरत॥
तुमने वेश दिगम्बर धारा। कर्म-शत्रु भी तुम से हारा॥

महावीर स्वामी का शांत और मोहक स्वरूप मन को शांति प्रदान करता है। उनका दिगंबर वेश साधना और तप का प्रतीक है, जिसने उन्हें कर्मों के शत्रु पर विजय दिलाई।

कर्मों का विनाश और आत्मज्ञान

क्रोध मान अरु लोभ भगाया। महा-मोह तमसे डर खाया॥
तू सर्वज्ञ सर्व का ज्ञाता। तुझको दुनिया से क्या नाता॥

भगवान महावीर ने क्रोध, मान, और लोभ जैसे विकारों को दूर किया और मोह के अंधकार को समाप्त किया। वे सर्वज्ञ हैं और सभी चीज़ों का ज्ञान रखते हैं। उनका संसार से कोई नाता नहीं है क्योंकि उन्होंने सांसारिक बंधनों को त्याग दिया है।

सत्य और निर्लेपता

तुझमें नहीं राग और द्वेश। वीर रण राग तू हितोपदेश॥
तेरा नाम जगत में सच्चा। जिसको जाने बच्चा बच्चा॥

महावीर स्वामी में राग और द्वेष जैसी भावनाएँ नहीं हैं। वे सत्य और निर्लेप हैं और उनके उपदेश सभी के लिए हितकारी हैं। उनका नाम संसार में सच्चा और अमर है, जिसे हर बच्चा-बच्चा जानता है।

भय और संकटों से मुक्ति

भूत प्रेत तुम से भय खावें। व्यन्तर राक्षस सब भग जावें॥
महा व्याध मारी न सतावे। महा विकराल काल डर खावे॥

महावीर स्वामी के नाम से भूत-प्रेत और राक्षस सभी भयभीत होकर भाग जाते हैं। यहाँ तक कि महाव्याधि और मृत्यु भी उनके भक्तों को नहीं सताती। उनके नाम का जप करने से सबसे विकराल संकट भी दूर हो जाते हैं।

विष और संकटों से रक्षा

काला नाग होय फन-धारी। या हो शेर भयंकर भारी॥
ना हो कोई बचाने वाला। स्वामी तुम्हीं करो प्रतिपाला॥

महावीर स्वामी के नाम से विषैले सर्प और भयंकर शेर जैसे खतरों से भी रक्षा हो जाती है। चाहे कोई संकट हो, भगवान महावीर ही हमारी रक्षा करने वाले हैं।

अग्नि से मुक्ति

अग्नि दावानल सुलग रही हो। तेज हवा से भड़क रही हो॥
नाम तुम्हारा सब दुख खोवे। आग एकदम ठण्डी होवे॥

यदि जंगल की आग भी भड़के, तो भगवान महावीर के नाम का स्मरण करने से सभी दुख समाप्त हो जाते हैं और अग्नि भी ठंडी हो जाती है। यह उनके नाम की शक्ति को दर्शाता है।

महावीर स्वामी की जीवन कथा

महावीर स्वामी का जन्म

हिंसामय था भारत सारा। तब तुमने कीना निस्तारा॥
जन्म लिया कुण्डलपुर नगरी। हुई सुखी तब प्रजा सगरी॥

भगवान महावीर का जन्म कुण्डलपुर नगरी में हुआ था। उस समय भारत हिंसा और अधर्म से भरा हुआ था, लेकिन उनके जन्म से समस्त प्रजा सुखी हो गई।

भगवान महावीर के माता-पिता

सिद्धारथ जी पिता तुम्हारे। त्रिशला के आँखों के तारे॥
छोड़ सभी झंझट संसारी। स्वामी हुए बाल-ब्रह्मचारी॥

महावीर स्वामी के पिता सिद्धार्थ जी और माता त्रिशला देवी थीं। उन्होंने संसार के सभी झंझटों को छोड़कर बाल्यावस्था में ही ब्रह्मचर्य धारण कर लिया था और साधना के पथ पर अग्रसर हुए।

पंचम काल और चाँदनपुर का अतिशय

पंचम काल महा-दुखदाई। चाँदनपुर महिमा दिखलाई॥
टीले में अतिशय दिखलाया। एक गाय का दूध गिराया॥

भगवान महावीर ने पंचम काल (दुख और अधर्म से भरे समय) में चाँदनपुर में अपना अतिशय दिखाया। एक गाय का दूध टीले पर गिरा, जिससे वहाँ अद्भुत चमत्कार हुआ।

ग्वाले की भक्ति

स्वामी तुमने प्रेम निभाया। ग्वाले का बहु मान बढ़ाया॥
हाथ लगे ग्वाले का जब ही। स्वामी रथ चलता है तब ही॥

भगवान महावीर ने ग्वाले के प्रति अपनी भक्ति का प्रमाण दिया और उसका मान बढ़ाया। जब ग्वाले ने रथ को छुआ, तभी रथ आगे बढ़ा। यह घटना उनकी करुणा और भक्तिप्रेम को दर्शाती है।

सोरठा

महावीर चालीसा का महत्व

नित चालीसहि बार, पाठ करे चालीस दिन।
खेय सुगन्ध अपार, वर्धमान के सामने॥

महावीर चालीसा का नियमित पाठ करने से अद्भुत सुगंध और सुख की प्राप्ति होती है। इसे वर्धमान (महावीर स्वामी) के सामने करने से जीवन की सभी बाधाएँ दूर हो जाती हैं।

दरिद्रता से मुक्ति

होय कुबेर समान, जन्म दरिद्री होय जो।
जिसके नहिं सन्तान, नाम वंश जग में चले॥

जो व्यक्ति जन्म से दरिद्र होता है, वह महावीर स्वामी के नाम से कुबेर के समान धनवान हो जाता है। जिनके संतान नहीं है, उनके वंश का नाम भी संसार में चलता है। यह महावीर स्वामी की कृपा का प्रभाव है।

महावीर स्वामी की स्तुति और महिमा का विस्तार

महावीर स्वामी के जीवन के आदर्श

महावीर स्वामी, जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर, का जीवन संघर्ष, तपस्या, और अहिंसा का प्रतीक है। उन्होंने समाज को शांति, अहिंसा और आत्म-ज्ञान का मार्ग दिखाया। उनका जीवन उन सभी के लिए प्रेरणा का स्रोत है जो सत्य और धर्म के मार्ग पर चलने का प्रयास करते हैं। महावीर स्वामी का संदेश केवल जैन धर्म तक सीमित नहीं है, बल्कि यह मानवता के हर व्यक्ति के लिए महत्वपूर्ण है।

महावीर स्वामी का जन्म और बाल्यकाल

महावीर स्वामी का जन्म कुण्डलपुर में हुआ, जो वर्तमान में बिहार राज्य के अंतर्गत आता है। उनके पिता राजा सिद्धार्थ और माता त्रिशला देवी थीं। उनका जन्म ऐसे समय में हुआ जब समाज में हिंसा और अधर्म व्याप्त था। बाल्यकाल से ही वे तपस्वी स्वभाव के थे और सांसारिक भोगों से विरक्त थे। यह उनके अद्भुत व्यक्तित्व का प्रमाण था कि उन्होंने अल्पायु में ही सभी राजसी सुखों को त्याग कर साधना का मार्ग चुना।

भगवान महावीर की तपस्या

महावीर स्वामी ने 30 वर्ष की आयु में सभी सांसारिक मोह-माया का त्याग कर साधु जीवन धारण किया। 12 वर्षों की कठोर तपस्या के बाद उन्होंने केवलज्ञान (सर्वज्ञता) प्राप्त की। इस दौरान उन्होंने अनेक कठिनाइयों का सामना किया, किंतु उनकी तपस्या की शक्ति के कारण वे कभी विचलित नहीं हुए। तपस्या के माध्यम से उन्होंने अपने कर्मों का नाश किया और आत्मज्ञान प्राप्त किया।

महावीर स्वामी का उपदेश

भगवान महावीर ने अपने जीवन में अहिंसा, सत्य, अस्तेय (चोरी न करना), ब्रह्मचर्य, और अपरिग्रह (संपत्ति का त्याग) के सिद्धांतों को अपनाया और इन्हें अपने अनुयायियों को सिखाया। उन्होंने कहा कि आत्मा के शुद्धिकरण के लिए कर्मों का नाश आवश्यक है, और यह केवल तप, त्याग, और साधना के माध्यम से ही संभव है। महावीर स्वामी के उपदेशों में अहिंसा का प्रमुख स्थान था। उनका मानना था कि हर जीव में आत्मा होती है, और इसलिए किसी भी प्रकार की हिंसा पाप है।

महावीर स्वामी की निर्वाण प्राप्ति

भगवान महावीर ने अपने जीवन के अंतिम वर्ष बिहार के पावापुरी में बिताए, जहाँ उन्हें मोक्ष प्राप्त हुआ। उनकी निर्वाण प्राप्ति का दिन दीपावली के रूप में मनाया जाता है। यह दिन जैन धर्म के अनुयायियों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह दिन महावीर स्वामी की आत्मा के मोक्ष प्राप्ति का प्रतीक है। उन्होंने अपने जीवन के माध्यम से यह संदेश दिया कि मोक्ष की प्राप्ति किसी विशेष जाति, धर्म या समाज के लोगों के लिए सीमित नहीं है, बल्कि यह हर व्यक्ति के लिए संभव है जो सच्चाई और धर्म के मार्ग पर चलता है।

महावीर चालीसा का महत्व

महावीर चालीसा, महावीर स्वामी की स्तुति में लिखे गए 40 श्लोकों का एक संग्रह है। इसमें उनके जीवन, तपस्या, उपदेश, और चमत्कारों का वर्णन किया गया है। यह चालीसा जैन धर्म के अनुयायियों के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह न केवल महावीर स्वामी की महिमा का गुणगान करता है, बल्कि इसे पढ़ने और सुनने से मानसिक शांति और आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार होता है।

महावीर चालीसा का नियमित पाठ

महावीर चालीसा का नियमित पाठ करने से मानसिक शांति प्राप्त होती है और जीवन के संकटों से मुक्ति मिलती है। ऐसा माना जाता है कि चालीस दिनों तक इसका नियमित पाठ करने से सभी प्रकार की बाधाएँ दूर होती हैं। यह न केवल जैन धर्म के अनुयायियों के लिए, बल्कि उन सभी के लिए फायदेमंद होता है जो अपने जीवन में शांति और सकारात्मक ऊर्जा की तलाश में होते हैं।

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