अजा एकादशी के फल
अजा एकादशी, जो कि कृष्ण पक्ष की एकादशी है, हिंदू धर्म में महत्वपूर्ण एकदशियों में से एक है। इस व्रत को करने से कई धार्मिक और सांसारिक फल प्राप्त होते हैं।
धार्मिक फल
- अश्वमेध यज्ञ का फल: मान्यता है कि अजा एकादशी व्रत रखने और इसकी कथा सुनने से अश्वमेध यज्ञ के समान फल प्राप्त होते हैं।
- पापों से मुक्ति: ऐसा माना जाता है कि यह व्रत सभी प्रकार के पापों से मुक्ति दिलाता है।
- मोक्ष की प्राप्ति: कहा जाता है कि अजा एकादशी का व्रत नियमित रूप से करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।
- ग्रहों की शांति: यह व्रत ग्रहों की शांति के लिए भी बहुत उपयोगी माना जाता है।
सांसारिक फल
- सुख-समृद्धि: अजा एकादशी का व्रत सुख और समृद्धि लाता है।
- रोगों से मुक्ति: यह व्रत रोगों से मुक्ति दिलाता है और स्वास्थ्य प्रदान करता है।
- संतान प्राप्ति: संतानहीन दंपतियों के लिए यह व्रत संतान प्राप्ति का वरदान देने वाला माना जाता है।
- शत्रुओं पर विजय: यह व्रत शत्रुओं पर विजय दिलाता है और सभी कार्यों में सफलता प्रदान करता है।
अजा एकादशी व्रत का महत्त्व
धार्मिक महत्व
- पापों का नाश: अजा एकादशी व्रत सभी प्रकार के पापों का नाश करने वाला माना जाता है।
- मोक्ष की प्राप्ति: कहा जाता है कि जो व्यक्ति नियमित रूप से अजा एकादशी व्रत करता है, उसे मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है।
- भगवान विष्णु की कृपा: यह व्रत भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त करने का साधन है।
- अश्वमेध यज्ञ का फल: मान्यता है कि अजा एकादशी व्रत रखने से अश्वमेध यज्ञ के समान फल प्राप्त होते हैं।
- ग्रहों की शांति: यह व्रत ग्रहों की शांति के लिए भी बहुत लाभकारी माना जाता है।
सांसारिक महत्व
- सुख-समृद्धि: अजा एकादशी का व्रत सुख और समृद्धि लाता है।
- रोगों से मुक्ति: यह व्रत रोगों से मुक्ति दिलाता है और स्वास्थ्य प्रदान करता है।
- संतान प्राप्ति: संतानहीन दंपतियों के लिए यह व्रत संतान प्राप्ति का वरदान देने वाला माना जाता है।
- शत्रुओं पर विजय: यह व्रत शत्रुओं पर विजय दिलाता है और सभी कार्यों में सफलता प्रदान करता है।
अजा एकादशी कथा
इस कथा के अनुसार, एक राज्य में हरिश्चंद्र नाम का एक चक्रवर्ती राजा रहता था। अपने बच्चे की मृत्यु से दुखी होकर राजा मायूस रहने लगा। उससे उसका राजपाट भी छिन गया था। उसने अपना राज्य छोड़ दिया और अपनी पत्नी के साथ दूर राज्य के बाहर चला गया।
इसके बाद राजा हरिशचंद्र एक चांडाल के यहां काम करने लगा। यहां वो मृतकों के वस्त्र लेता था। राजा हमेशा सत्य के मार्ग पर चलता था। वो जब भी अकेला होता था तो अपने दुखों से मुक्ति पाने का रास्ता ढूंढता था। वह सोचता था कि क्या ऐसा करें, जिससे उसका उद्धार हो सके।
राजा सिर्फ अच्छे कर्म करता था। एक दिन जब वह चिंतित होकर बैठा था, तभी वहां गौतम ऋषि आए। राजा ने उनको प्रणाम किया और अपने दुखों से मुक्ति पाने का रास्ता पूछा।
राजा को परेशान देखकर ऋषि ने कहा, “कि तुम भाग्यशाली हो क्योंकि आज से 7 दिन बाद भाद्रपद कृष्ण एकादशी यानी अजा एकादशी व्रत आने वाली है। जो भी इस व्रत को विधि पूर्वक करता है उसका कल्याण जरूर होता है।”
इतना कहने के बाद गौतम ऋषि वहां से चले गए।
सात दिन के बाद राजा ने अजा एकादशी का व्रत रखा और ऋषि के बताए अनुसार ही भगवान विष्णु का पूरे विधि- विधान से पूजन किया। भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए उन्होंने पूरी रात जागरण किया और अगले दिन सुबह पारण करके व्रत को पूरा किया।
इसके बाद भगवान विष्णु की कृपा से राजा के सारे दुख समाप्त हो गए। उसने देखा कि उसकी पत्नी पहले की तरह रानी के समान दिखने लगी है। व्रत के फल से राजा को अपना खोया हुआ राजपाट भी दोबारा मिल गया।
अजा एकादशी पूजाविधि
सामग्री
- भगवान विष्णु की मूर्ति या तस्वीर
- चौकी
- लाल कपड़ा
- फल, फूल, नैवेद्य
- दीप
- धूप
- अगरबत्ती
- गंगाजल
- तिल
- रोली
- अक्षत
- चंदन
- घी
- कपूर
- पान
- सुपारी
- दक्षिणा
विधि
- प्रातः स्नान: सूर्योदय से पहले उठकर स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- वेदी स्थापन: घर के मंदिर या किसी स्वच्छ स्थान पर चौकी रखें। चौकी पर लाल कपड़ा बिछाएं और भगवान विष्णु की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें।
- घट स्थापन: एक मिट्टी का कलश लें और उसमें जल भरकर उस पर नारियल रखें। कलश को चौकी पर स्थापित करें और उसमें गंगाजल, तिल, रोली और अक्षत डालकर मंत्र मंत्रपूर्वक उसका पूजन करें।
- स्नान: भगवान विष्णु की मूर्ति को गंगाजल, दूध, दही, घी और शहद से स्नान कराएं।
- वस्त्र अर्पण: भगवान विष्णु को वस्त्र, आभूषण, सुगंधित तेल, फूल माला आदि अर्पित करें।
- दीप प्रज्वलन: दीप, धूप और अगरबत्ती जलाएं और भगवान विष्णु को नैवेद्य अर्पित करें।
- मंत्र जाप: भगवान विष्णु के मंत्रों का जाप करें।
- आरती: भगवान विष्णु की आरती गाएं।
- कथा श्रवण: अजा एकादशी व्रत की कथा पढ़ें या सुनें।
- व्रत का पालन: दिन भर व्रत रखें और केवल जल का सेवन करें।
- रात्रि जागरण: रात्रि में जागरण करें और भजन-कीर्तन करें।
- पारण: अगले दिन सुबह सूर्योदय के बाद ब्राह्मणों को भोजन कराएं और दक्षिणा दें। इसके बाद स्वयं फल का भोजन ग्रहण करें।