राजा युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा, “हे प्रभो! ज्येष्ठ मास की कृष्ण पक्ष एकादशी का क्या महत्त्व है और उसे किस नाम से जाना जाता है? कृपया विस्तार से बताएं।” इसके उत्तर में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा, “हे नरेश! इस एकादशी को ‘अचला’ और ‘अपरा’ इन दो नामों से जाना जाता है। पुराणों के अनुसार, ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष की एकादशी अपरा एकादशी कहलाती है, क्योंकि यह अपार धन-संपदा प्रदान करती है। जो व्यक्ति इस व्रत को करते हैं, वे संसार में यशस्वी होते हैं। इस दिन भगवान त्रिविक्रम (वामन अवतार) की पूजा-अर्चना की जाती है।
अपरा एकादशी कथा in Hindi/Sanskrit
पौराणिक कथाओं के अनुसार, प्राचीन समय में महीध्वज नाम का एक धर्मपरायण राजा था। उसका छोटा भाई वज्रध्वज अत्यंत निष्ठुर, पापाचारी और अन्यायी था। वह अपने बड़े भाई से द्वेष रखता था। उस दुराचारी ने एक रात्रि में अपने बड़े भाई का वध करके उसके शव को एक बन्य पीपल वृक्ष के नीचे गाड़ दिया। इस अकाल मृत्यु के कारण, राजा उसी पीपल पर प्रेत रूप में निवास करने लगा और अनेक उत्पात मचाने लगा।
एक दिन संयोगवश धौम्य नामक ॠषि उधर से गुजरे। उन्होंने उस प्रेत को देखा और अपने तपोबल से उसके पूर्वजन्म को जान लिया। अपने तप के प्रभाव से उन्होंने प्रेत उत्पात का कारण समझा। ॠषि ने प्रसन्न होकर प्रेत को पीपल से नीचे उतारा और उसे परलोक विद्या का उपदेश दिया। कृपालु ॠषि ने राजा की प्रेत योनि से मुक्ति के लिए स्वयं अपरा (अचला) एकादशी का व्रत किया और उसे कुगति से उबारने के लिए अपना पुण्य प्रेत को अर्पित कर दिया। इस पुण्य के प्रभाव से राजा की प्रेत योनि से मुक्ति हो गई। वह ॠषि को धन्यवाद देता हुआ दिव्य शरीर धारण कर पुष्पक विमान में आरूढ़ होकर स्वर्ग सिधार गया।
उपसंहार
हे राजन्! मैंने जन-कल्याण के लिए अपरा एकादशी की यह कथा कही है। इसका पाठ या श्रवण करने से मनुष्य सर्व पापों से विमुक्त हो जाता है।
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Apara Ekadashi Vrat Katha in English
According to ancient legends, there was once a righteous king named Mahidhwaj. His younger brother, Vajradhwaj, was exceedingly cruel, sinful, and unjust. Filled with jealousy and hatred toward his elder brother, he harbored ill intentions. One night, in an act of treachery, Vajradhwaj murdered Mahidhwaj and buried his body under a wild Peepal tree. Due to this untimely death, Mahidhwaj’s spirit became trapped and began to haunt the Peepal tree, causing disturbances in the area.
One day, by divine chance, a sage named Dhaumya passed by. Using his spiritual power, he discerned the presence of the troubled spirit and understood the circumstances of its previous life. Through his insights, the sage realized the reasons behind the spirit’s restlessness. Moved by compassion, Sage Dhaumya used his powers to bring the spirit down from the Peepal tree and imparted teachings of the afterlife to it. In his benevolence, the sage observed the Apara (Achala) Ekadashi fast himself to free the king’s soul from its ghostly form. He then offered the spiritual merit (punya) he had earned from this fast to the spirit, thereby granting the king liberation from his ghostly existence. Freed from his suffering, the king expressed his gratitude to the sage, assumed a divine form, and ascended to heaven in a celestial vehicle.
Conclusion
O King, for the benefit of all beings, I have narrated the story of Apara Ekadashi. Those who recite or listen to this story are freed from all sins.
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अपरा एकादशी व्रत कब है
अपरा एकादशी, जिसे अचला एकादशी भी कहा जाता है, वर्ष 2025 में शुक्रवार, 23 मई को मनाई जाएगी। इस दिन भक्तजन भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना करते हैं और व्रत रखते हैं।
अपरा एकादशी 2025 की तिथियां:
- एकादशी तिथि प्रारंभ: 23 मई 2025 को प्रातः 01:12 बजे
- एकादशी तिथि समाप्त: 23 मई 2025 को रात्रि 10:29 बजे
अपरा एकादशी व्रत का पारण कब है
अपरा एकादशी व्रत 2025 में 23 मई, शुक्रवार को मनाया जाएगा। इस व्रत का पारण (व्रत तोड़ने का समय) 24 मई, शनिवार को प्रातः 5:26 बजे से 8:11 बजे तक है।
पारण करते समय, भगवान विष्णु की पूजा करके, ब्राह्मणों को भोजन कराना और दान-दक्षिणा देना शुभ माना जाता है। इसके पश्चात ही स्वयं भोजन ग्रहण करें।
अपरा एकादशी के फल
अपरा एकादशी का व्रत करने से ब्रह्महत्या, तिर्यक योनि, परनिंदा आदि सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। इस व्रत के प्रभाव से परस्त्री-गमन, मिथ्या साक्ष्य, असत्य भाषण, कूट शास्त्र-पठन या लेखन, कपट ज्योतिष या वैद्यक करना आदि सभी दोष दूर हो जाते हैं। जो क्षत्रिय युद्ध से पलायन करते हैं, वे नरक में गिरते हैं, परंतु अपरा एकादशी का व्रत करने से वे भी स्वर्गलोक प्राप्त करते हैं। जो शिष्य गुरु से शिक्षा ग्रहण करने के पश्चात उनकी आलोचना करते हैं, वे अवश्य ही नरक में पतन करते हैं। किंतु अपरा एकादशी का व्रत करके, वे भी इस महापाप से मुक्त हो जाते हैं। तीनों पुष्करों में कार्तिक पूर्णिमा को स्नान करने या गंगा तीर पर पितरों को पिंडदान करने का जो फल मिलता है, वही अपरा एकादशी के व्रत से भी प्राप्त होता है। मकर संक्रांति पर प्रयागराज में स्नान, शिवरात्रि व्रत, सिंह राशि में बृहस्पति की स्थिति में गोमती नदी में स्नान, कुंभ पर्व में केदारनाथ या बद्रीनाथ दर्शन, सूर्यग्रहण में कुरुक्षेत्र स्नान, सुवर्ण दान या प्रसूति गौ दान से जो पुण्य मिलता है, वह सब अपरा एकादशी के व्रत से भी मिलता है।
अपरा एकादशी व्रत का महत्त्व
यह व्रत पाप वृक्ष को काटने वाली कुल्हाड़ी, पाप ईंधन को भस्म करने वाली अग्नि, पापांधकार को मिटाने वाला सूर्य और पशुओं का वध करने वाला सिंह के सदृश है। अतः मनुष्यों को पापों से भयभीत होकर इस व्रत को अवश्य करना चाहिए। अपरा एकादशी का व्रत और भगवान विष्णु की आराधना करने से व्यक्ति सकल पापों से मुक्त होकर वैकुंठ धाम जाता है।
अपरा एकादशी पूजाविधि
अपरा एकादशी को व्रत रखने के लिए सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि नित्य क्रिया से निवृत्त होकर व्रत का संकल्प लें। इसके बाद भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र के समक्ष व्रत की पूजा करें।
सर्वप्रथम भगवान विष्णु के आसन पर पीले वस्त्र बिछाएं। तदुपरांत भगवान की प्रतिमा या तस्वीर को स्थापित करके पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद और शर्करा) से स्नान कराएं। फिर शुद्ध जल से स्नान कर वस्त्रालंकार से सुशोभित करें।
अब भगवान को धूप, दीप, पुष्प, नैवेद्य, फल आदि अर्पित करते हुए षोडशोपचार पूजन करें। इस पूजन में निम्न मन्त्र का जाप करें:
“ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः”
पूजन के उपरांत भगवान विष्णु की आरती करके प्रसाद ग्रहण करें। दिन भर भक्ति-भाव से भगवान का स्मरण करते हुए पवित्र व्रत का पालन करें। रात्रि में भगवान की कथा सुनें या पढ़ें।
अगले दिन द्वादशी तिथि में भी भगवान का पूजन करके व्रत का पारण करें। इसके पश्चात ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा देकर व्रत को संपन्न करें।
साराशं
- व्रत का संकल्प लेकर भगवान विष्णु की पूजा करें
- प्रतिमा या चित्र को पंचामृत व जल से स्नान कराएं
- धूप, दीप, पुष्प, नैवेद्य से षोडशोपचार पूजन करें
- भगवान की आरती कर प्रसाद ग्रहण करें
- पूरे दिन भक्ति भाव से व्रत का पालन करें
- दूसरे दिन द्वादशी को व्रत का पारण करें
- ब्राह्मणों को दान दक्षिणा देकर व्रत संपन्न करें
इस प्रकार अपरा एकादशी का व्रत पूर्ण श्रद्धा व भक्ति भाव से करने से भगवान विष्णु अत्यंत प्रसन्न होते हैं और भक्तों को अपार कल्याण प्रदान करते हैं।