दारिद्र्य दहन शिवस्तोत्रं in Hindi/Sanskrit
विश्वेश्वराय नरकार्णव तारणाय
कणामृताय शशिशेखरधारणाय ।
कर्पूरकान्तिधवलाय जटाधराय
दारिद्र्य दुःखदहनाय नमः शिवाय ॥१॥
गौरीप्रियाय रजनीशकलाधराय
कालान्तकाय भुजगाधिपकङ्कणाय ।
गंगाधराय गजराजविमर्दनाय
दारिद्र्य दुःखदहनाय नमः शिवाय ॥२॥
भक्तिप्रियाय भवरोगभयापहाय
उग्राय दुर्गभवसागरतारणाय ।
ज्योतिर्मयाय गुणनामसुनृत्यकाय
दारिद्र्य दुःखदहनाय नमः शिवाय ॥३॥
चर्मम्बराय शवभस्मविलेपनाय
भालेक्षणाय मणिकुण्डलमण्डिताय ।
मंझीरपादयुगलाय जटाधराय
दारिद्र्य दुःखदहनाय नमः शिवाय ॥४॥
पञ्चाननाय फणिराजविभूषणाय
हेमांशुकाय भुवनत्रयमण्डिताय ।
आनन्दभूमिवरदाय तमोमयाय
दारिद्र्य दुःखदहनाय नमः शिवाय ॥५॥
भानुप्रियाय भवसागरतारणाय
कालान्तकाय कमलासनपूजिताय ।
नेत्रत्रयाय शुभलक्षण लक्षिताय
दारिद्र्य दुःखदहनाय नमः शिवाय ॥६॥
रामप्रियाय रघुनाथवरप्रदाय
नागप्रियाय नरकार्णवतारणाय ।
पुण्येषु पुण्यभरिताय सुरार्चिताय
दारिद्र्य दुःखदहनाय नमः शिवाय ॥७॥
मुक्तेश्वराय फलदाय गणेश्वराय
गीतप्रियाय वृषभेश्वरवाहनाय ।
मातङ्गचर्मवसनाय महेश्वराय
दारिद्र्य दुःखदहनाय नमः शिवाय ॥८॥
वसिष्ठेन कृतं स्तोत्रं सर्वरोगनिवारणं ।
सर्वसंपत्करं शीघ्रं पुत्रपौत्रादिवर्धनम् ।
त्रिसंध्यं यः पठेन्नित्यं स हि स्वर्गमवाप्नुयात् ॥
Daridraya Dahana Shiv Stotram in English
Vishweshwaraya Narakarnava Taranaya
Kanamrutaya Shashishekharadharanaya.
Karpoorakanti Dhavalaya Jatadharaya
Daridrya Duhkhadahanaya Namah Shivaya. ॥1॥
Gauripriyaya Rajanishakaladharanaya
Kaalantakaya Bhujagadhipakankanaya.
Gangadharaya Gajarajavimardanaya
Daridrya Duhkhadahanaya Namah Shivaya. ॥2॥
Bhaktipriyaya Bhavarogabhayapahaya
Ugraya Durgabhavasagarataranaya.
Jyotirmayaya Gunanamasunrityakaya
Daridrya Duhkhadahanaya Namah Shivaya. ॥3॥
Charmambaraya Shavabhasmavilepanaya
Bhalekshanaya Manikundalamanditaya.
Manjeerapadayugalaya Jatadharaya
Daridrya Duhkhadahanaya Namah Shivaya. ॥4॥
Panchananaya Phanirajavibhushanaya
Hemanshukaya Bhuvanatrayamanditaya.
Anandabhumivaradaya Tamomayaya
Daridrya Duhkhadahanaya Namah Shivaya. ॥5॥
Bhanupriyaya Bhavasagarataranaya
Kaalantakaya Kamalasanapujitaya.
Netra Trayaaya Shubhalakshana Lakshitaya
Daridrya Duhkhadahanaya Namah Shivaya. ॥6॥
Ramapriyaya Raghunathavarapradaya
Nagapriyaya Narakarnavataranaya.
Punyessu Punyabharitaya Surarchitaya
Daridrya Duhkhadahanaya Namah Shivaya. ॥7॥
Mukteshwaraya Phaladaya Ganeshwaraya
Geetapriyaya Vrishabeshwaravahanaya.
Matangacharmavasanaya Maheshwaraya
Daridrya Duhkhadahanaya Namah Shivaya. ॥8॥
Vasishthena Kritam Stotram Sarvaroganivaranam.
Sarvasampatkaram Shighram Putrapoutradivardhanam.
Trisandhyam Yah Pathennityam Sah Hi Swargamavapnuyat.
दारिद्र्य दहन शिवस्तोत्रं PDF Download
दारिद्र्य दहन शिवस्तोत्रं का अर्थ
यह श्लोक भगवान शिव को समर्पित है और उनकी असीम महिमा और कृपा का वर्णन करता है। आइए इसे विस्तार से समझते हैं:
“विश्वेश्वराय नरकार्णव तारणाय”
विश्वेश्वराय: यहाँ भगवान शिव को “विश्व के ईश्वर” कहा गया है। वह पूरे ब्रह्मांड के स्वामी हैं और सबका कल्याण करते हैं।
नरकार्णव तारणाय: यह बताता है कि भगवान शिव नरक रूपी समुद्र से जीवों को पार कराने वाले हैं। वे अपने भक्तों को जीवन के कष्टों और पापों से मुक्त करते हैं।
“कणामृताय शशिशेखरधारणाय”
कणामृताय: भगवान शिव को “अमृत का दाता” कहा गया है। यहां अमृत का मतलब केवल जीवन नहीं, बल्कि आत्मा की मुक्ति और शांति से भी है।
शशिशेखरधारणाय: शिव जी के मस्तक पर चंद्रमा है, जो शीतलता और शांति का प्रतीक है। यह शिव की अनंत ऊर्जा और उनके सौम्य रूप को दर्शाता है।
“कर्पूरकान्तिधवलाय जटाधराय”
कर्पूरकान्तिधवलाय: शिव जी की कांति कर्पूर (कपूर) के समान उज्ज्वल और शुद्ध है। यह उनके दिव्य स्वरूप और पवित्रता का प्रतीक है।
जटाधराय: शिव जी की जटाओं का उल्लेख है, जो उनके ध्यान और तपस्या का प्रतीक है। वे योगियों के आदिनाथ माने जाते हैं।
“दारिद्र्य दुःखदहनाय नमः शिवाय”
दारिद्र्य दुःखदहनाय: भगवान शिव को यहाँ विशेष रूप से उन कष्टों को दूर करने वाला बताया गया है जो दारिद्र्य (गरीबी) और दुःख के कारण होते हैं।
नमः शिवाय: इस पंक्ति के अंत में शिव जी को नमन करते हुए, उनकी शरण में जाने की बात की गई है। यह समर्पण और भक्ति का प्रतीक है।
“गौरीप्रियाय”
गौरीप्रियाय: शिव जी को गौरी (पार्वती) के प्रिय कहा गया है। उनका यह स्वरूप एक प्रेमपूर्ण पति का है, जो अपने परिवार के प्रति समर्पित हैं।
“रजनीशकलाधराय”
रजनीश का अर्थ है “रात्रि के स्वामी” और कलाधराय का अर्थ है “चंद्रमा को धारण करने वाला”। यह भगवान शिव की दिव्यता और सौम्यता को दर्शाता है।
“कालान्तकाय भुजगाधिपकङ्कणाय”
कालान्तकाय: शिव को काल (मृत्यु) का संहारक कहा गया है। वे काल को भी नियंत्रित करने वाले हैं।
भुजगाधिपकङ्कणाय: भगवान शिव के हाथों में नाग (सर्प) का कंगन है, जो उनकी शक्ति और डरावने स्वरूप को दर्शाता है।
“गंगाधराय गजराजविमर्दनाय”
गंगाधराय: भगवान शिव ने गंगा को अपनी जटाओं में धारण किया हुआ है, जिससे गंगा की पवित्रता और उनका शिव से संबंध स्पष्ट होता है।
गजराजविमर्दनाय: यहाँ गजराज (हाथी) को मारने का वर्णन है, जो शिव के महान और वीर रूप को दर्शाता है।
“दारिद्र्य दुःखदहनाय नमः शिवाय”
जैसे पहले कहा गया, यह पंक्ति फिर से शिव जी को उन कष्टों को दूर करने वाला बताती है जो गरीबी और दुःख के कारण होते हैं। भक्तों के लिए यह विश्वास है कि शिव की पूजा से सारे दुख दूर हो जाते हैं।
“भक्तिप्रियाय”
भगवान शिव को भक्तों का प्रिय बताया गया है। वे अपने भक्तों की हर इच्छा को पूरी करते हैं और उन पर विशेष कृपा करते हैं। भक्ति से शिव को प्राप्त किया जा सकता है।
“भवरोगभयापहाय”
भवरोग का अर्थ है संसार के कष्ट, जैसे जन्म-मृत्यु, मोह, माया। शिव जी इन सभी भय से मुक्ति प्रदान करने वाले हैं।
“उग्राय दुर्गभवसागरतारणाय”
उग्राय: शिव का उग्र (प्रचंड) स्वरूप, जो संसार की नकारात्मक शक्तियों को समाप्त करने वाला है।
दुर्गभवसागरतारणाय: शिव संसार रूपी कठिन समुद्र से पार कराने वाले हैं, जो भक्तों को जीवन के चक्र से मुक्त करते हैं।
“ज्योतिर्मयाय गुणनामसुनृत्यकाय”
ज्योतिर्मयाय: भगवान शिव प्रकाश स्वरूप हैं, जो अज्ञान के अंधकार को दूर करते हैं।
गुणनामसुनृत्यकाय: वे सद्गुणों और अच्छे नामों के गुणगान करने वाले देवता हैं।
“दारिद्र्य दुःखदहनाय नमः शिवाय”
यह फिर से पुष्टि करता है कि भगवान शिव सभी दुखों को दूर करने वाले हैं, खासकर जो गरीबी और दुःख के कारण होते हैं।
“चर्मम्बराय”
यहाँ भगवान शिव को “चर्माम्बर” अर्थात् जानवरों की खाल पहनने वाले बताया गया है। उनका यह रूप तपस्या और त्याग का प्रतीक है। वे सांसारिक मोह-माया से दूर हैं और साधारण जीवन को धारण करते हैं।
“शवभस्मविलेपनाय”
भगवान शिव अपने शरीर पर “शव की भस्म” लगाते हैं, जो मृत्यु और जीवन दोनों के प्रति उनकी तटस्थता का प्रतीक है। यह बताता है कि शिव न केवल मृत्यु के देवता हैं, बल्कि उन्हें जीवन और मृत्यु दोनों का ज्ञान है।
“भालेक्षणाय मणिकुण्डलमण्डिताय”
भालेक्षणाय: यहाँ शिव की तीसरी आँख का उल्लेख है, जो उनके अद्वितीय ज्ञान और शक्तियों का प्रतीक है। शिव जी की तीसरी आँख से संसार की बुराई का अंत होता है।
मणिकुण्डलमण्डिताय: शिव जी के कानों में सुंदर मणियों के कुंडल हैं, जो उनकी दिव्यता और सौंदर्य को दर्शाते हैं।
“मंझीरपादयुगलाय जटाधराय”
मंझीरपादयुगलाय: भगवान शिव के पैरों में मंझीर (घुंघरू) धारण किए गए हैं। यह उनके नृत्य का प्रतीक है, जो नटराज के रूप में उनके नृत्य की अभिव्यक्ति है।
जटाधराय: यह फिर से भगवान शिव की जटाओं का वर्णन करता है, जो उनके तपस्वी स्वरूप को दर्शाता है।
“दारिद्र्य दुःखदहनाय नमः शिवाय”
यह श्लोक एक बार फिर से भगवान शिव को उन दुःखों को दूर करने वाला बताता है जो गरीबी और कष्टों से उत्पन्न होते हैं। शिव के भक्तों का विश्वास है कि उनकी उपासना से सभी कष्ट समाप्त हो जाते हैं।
“पञ्चाननाय”
भगवान शिव को “पञ्चानन” कहा गया है, जिसका अर्थ है पांच मुखों वाले। उनके पांच मुख पांच तत्वों – पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, और आकाश – का प्रतिनिधित्व करते हैं। ये पांच तत्व संपूर्ण सृष्टि का आधार हैं और शिव जी इन सभी के अधिपति हैं।
“फणिराजविभूषणाय”
फणिराजविभूषणाय: भगवान शिव को नागराज (सर्पों के राजा) द्वारा विभूषित कहा गया है। नाग का गहना शिव की भयानक और अद्भुत शक्ति को दर्शाता है। शिव का नाग उनके नियंत्रण में है, जिससे उनके भयहीन स्वरूप का परिचय मिलता है।
“हेमांशुकाय भुवनत्रयमण्डिताय”
हेमांशुकाय: भगवान शिव को स्वर्णिम आभा वाला बताया गया है। उनका स्वरूप दैवीय प्रकाश से युक्त है, जो संसार की हर नकारात्मकता को नष्ट कर देता है।
भुवनत्रयमण्डिताय: इसका अर्थ है कि भगवान शिव तीनों लोकों – स्वर्ग, पृथ्वी, और पाताल – को अपनी महिमा से मंडित करते हैं। उनका प्रभाव सम्पूर्ण ब्रह्मांड में फैला हुआ है।
“आनन्दभूमिवरदाय तमोमयाय”
आनन्दभूमिवरदाय: भगवान शिव आनंद की भूमि के दाता हैं। वे अपने भक्तों को जीवन के हर प्रकार के दुख से मुक्त करके उन्हें शांति और आनंद प्रदान करते हैं।
तमोमयाय: शिव तमस स्वरूप हैं, जो अज्ञान और अंधकार को नष्ट करते हैं। वे अज्ञान के अंधकार को दूर करके ज्ञान का प्रकाश फैलाते हैं।
“दारिद्र्य दुःखदहनाय नमः शिवाय”
यह श्लोक एक बार फिर भगवान शिव की महिमा का गुणगान करता है, जो गरीबी और दुखों को समाप्त करने वाले हैं।
“भानुप्रियाय”
भगवान शिव को “भानु” अर्थात् सूर्य का प्रिय बताया गया है। उनका यह नाम सूर्य और चंद्रमा दोनों के प्रति उनके अद्वितीय संबंध को दर्शाता है। शिव जीवन के हर स्रोत का सम्मान करते हैं, चाहे वह प्रकृति के रूप में हो या उसके अन्य रूपों में।
“भवसागरतारणाय”
भवसागर संसार का प्रतीक है, जिसे पार करना अत्यंत कठिन है। शिव जी भवसागर को पार कराने वाले देवता हैं, जो अपने भक्तों को संसार के कष्टों से मुक्त करते हैं।
“कालान्तकाय कमलासनपूजिताय”
कालान्तकाय: शिव मृत्यु के देवता भी माने जाते हैं। वे समय और मृत्यु दोनों पर विजय प्राप्त करने वाले हैं।
कमलासनपूजिताय: कमलासन पर विराजमान ब्रह्मा और अन्य देवता भी भगवान शिव की पूजा करते हैं। यह दर्शाता है कि शिव को सभी देवताओं में सर्वोच्च स्थान प्राप्त है।
“नेत्रत्रयाय शुभलक्षण लक्षिताय”
नेत्रत्रयाय: भगवान शिव की तीन आंखें हैं, जो अतीत, वर्तमान, और भविष्य का प्रतीक हैं। उनकी तीसरी आँख से संसार की नकारात्मकता का अंत होता है।
शुभलक्षण लक्षिताय: शिव जी शुभ लक्षणों से युक्त हैं, जो उन्हें देवताओं में विशेष बनाते हैं।
“दारिद्र्य दुःखदहनाय नमः शिवाय”
भगवान शिव की महिमा का यह श्लोक फिर से उनकी शक्ति का वर्णन करता है कि वे गरीबी और दुखों को दूर करने वाले हैं। उनकी शरण में जाने से भक्तों के सभी कष्ट समाप्त हो जाते हैं।
इस प्रकार इस स्तोत्र में भगवान शिव की अपार महिमा का गुणगान किया गया है, जहाँ उन्हें विभिन्न नामों और रूपों में पुकारा गया है। यह स्तोत्र भगवान शिव की करुणा, शक्ति और दयालुता को दर्शाता है।
“रामप्रियाय”
यहाँ भगवान शिव को “राम के प्रिय” कहा गया है। राम का नाम शिव के प्रति विशेष प्रेम को दर्शाता है। वे भगवान राम को अत्यधिक प्रिय मानते हैं, और उनकी भक्ति का अनुकरण करने वाले भक्तों को शिवजी विशेष कृपा प्रदान करते हैं।
“रघुनाथवरप्रदाय”
रघुनाथवरप्रदाय: शिव जी वह देवता हैं जिन्होंने राम को वरदान दिया था। उन्होंने राम को उनका महान उद्देश्य पूरा करने में सहायता की थी, जिससे भगवान राम ने रावण का वध कर धर्म की स्थापना की थी। इस प्रकार, शिव का यह रूप महान और पूजनीय है।
“नागप्रियाय नरकार्णवतारणाय”
नागप्रियाय: भगवान शिव नागों के प्रिय हैं और उन्हें अपने शरीर पर धारण करते हैं। नाग शक्ति और रहस्य के प्रतीक माने जाते हैं।
नरकार्णवतारणाय: शिव उन लोगों को नरक के समुद्र से तारने वाले हैं, जो उनके प्रति सच्ची भक्ति और श्रद्धा रखते हैं। वे अपने भक्तों को जीवन के सभी कष्टों और पापों से मुक्ति दिलाते हैं।
“पुण्येषु पुण्यभरिताय सुरार्चिताय”
पुण्येषु पुण्यभरिताय: भगवान शिव पुण्य के स्रोत हैं, और उनकी कृपा से उनके भक्तों का जीवन पुण्यमय हो जाता है। शिव की उपासना से व्यक्ति को उसके सारे पुण्य प्राप्त होते हैं।
सुरार्चिताय: सभी देवता भी भगवान शिव की पूजा करते हैं, क्योंकि वे संपूर्ण सृष्टि के नियंता हैं। उनके बिना किसी देवता का अस्तित्व संभव नहीं है।
“दारिद्र्य दुःखदहनाय नमः शिवाय”
यह श्लोक एक बार फिर भगवान शिव की दयालुता और करुणा को दर्शाता है, जो दारिद्र्य और दुःख को नष्ट करते हैं। उनकी शरण में आने से जीवन के सारे कष्ट समाप्त हो जाते हैं।
“मुक्तेश्वराय”
भगवान शिव को “मुक्तेश्वर” कहा गया है, जिसका अर्थ है मुक्ति के देवता। वे अपने भक्तों को संसार के बंधनों से मुक्त करते हैं और उन्हें आत्मा की शांति और मुक्ति का वरदान प्रदान करते हैं।
“फलदाय”
फलदाय: शिव जी अपने भक्तों को उनकी पूजा और तपस्या का फल अवश्य प्रदान करते हैं। उनकी कृपा से सभी प्रकार के शुभ फलों की प्राप्ति होती है, चाहे वह भौतिक सुख हो या आध्यात्मिक उन्नति।
“गणेश्वराय”
गणेश्वराय: शिव को “गणों के स्वामी” कहा गया है। गणेश, जो उनके पुत्र हैं, शिव के गणों के प्रमुख माने जाते हैं। भगवान शिव के पास असंख्य गण (सैनिक) हैं, जो उनकी शक्ति का प्रतीक हैं।
“गीतप्रियाय वृषभेश्वरवाहनाय”
गीतप्रियाय: भगवान शिव को गीतों और भजनों का प्रिय कहा गया है। उनकी पूजा में भक्ति गीत और मंत्रों का विशेष महत्व होता है।
वृषभेश्वरवाहनाय: शिव का वाहन वृषभ (नंदी बैल) है, जो शक्ति और धैर्य का प्रतीक है। यह दर्शाता है कि शिव संसार की हर परिस्थिति में संतुलन बनाए रखते हैं।
“मातङ्गचर्मवसनाय महेश्वराय”
मातङ्गचर्मवसनाय: भगवान शिव ने हाथी की खाल को वस्त्र के रूप में धारण किया हुआ है, जो उनकी वैराग्य और तपस्या का प्रतीक है।
महेश्वराय: शिव को महेश्वर कहा गया है, जिसका अर्थ है “महान ईश्वर।” वे सृष्टि, पालन और संहार तीनों के नियंत्रक हैं।
“दारिद्र्य दुःखदहनाय नमः शिवाय”
यह अंतिम पंक्ति फिर से भगवान शिव की महिमा का गुणगान करती है कि वे गरीबों और दुखियों के उद्धारकर्ता हैं। उनकी कृपा से सारे कष्ट समाप्त हो जाते हैं।
“वसिष्ठेन कृतं स्तोत्रं”
यह स्तोत्र महान ऋषि वसिष्ठ द्वारा रचा गया है, जिन्होंने भगवान शिव की स्तुति की। यह स्तोत्र शिव की महिमा का गान है और उनके दिव्य गुणों का वर्णन करता है।
“सर्वरोगनिवारणं”
यह स्तोत्र सभी प्रकार की बीमारियों और दुखों को दूर करने वाला माना गया है। जिन लोगों पर शिव जी की कृपा होती है, वे सभी प्रकार के रोगों और कष्टों से मुक्त हो जाते हैं।
“सर्वसंपत्करं शीघ्रं पुत्रपौत्रादिवर्धनम्”
यह स्तोत्र शीघ्र ही व्यक्ति को सभी प्रकार की संपत्ति और समृद्धि प्रदान करता है। इसके नियमित पाठ से व्यक्ति के परिवार में वृद्धि होती है और उसे पुत्र-पौत्र आदि का सुख प्राप्त होता है।
“त्रिसंध्यं यः पठेन्नित्यं स हि स्वर्गमवाप्नुयात्”
जो व्यक्ति इस स्तोत्र का त्रिसंध्या (प्रातः, मध्यान्ह, और सायं) पाठ करता है, वह निश्चित रूप से स्वर्गलोक की प्राप्ति करता है। इसके नियमित पाठ से व्यक्ति के सारे कष्ट समाप्त हो जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
भगवान शिव की तात्त्विक महिमा
भगवान शिव को “आदि योगी” माना जाता है। उनका स्वरूप सभी विरोधाभासों को समेटे हुए है – वे संहारक भी हैं और सृष्टि के रक्षक भी। उनके गले में सर्प धारण करना, भस्म को शरीर पर लगाना, और तीसरी आँख का होना यह दर्शाता है कि वे संपूर्ण जगत के मालिक हैं और सभी प्रकार की ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करते हैं।
त्रिनेत्र का प्रतीक
भगवान शिव की तीन आँखें अतीत, वर्तमान, और भविष्य का प्रतीक हैं। तीसरी आँख से शिव का प्रचंड रूप प्रकट होता है, जिससे संसार की बुराइयों का अंत होता है। इसे “ज्ञान चक्षु” भी कहा जाता है, जो आत्मज्ञान और उच्चतम चेतना का प्रतीक है। जब शिव अपनी तीसरी आँख खोलते हैं, तो यह विश्व के हर अज्ञान और अंधकार को नष्ट कर देती है।
शिव का योग और ध्यान से संबंध
भगवान शिव को “योग के प्रवर्तक” कहा जाता है। उनकी तपस्या और ध्यान की मुद्रा से ही यह प्रतीत होता है कि वे योग के माध्यम से संसार को अपने नियंत्रण में रखते हैं। उनके ध्यान की शक्ति इतनी प्रबल है कि वे सृष्टि के संचालन में हस्तक्षेप किए बिना उसे सम्हाल सकते हैं। शिव की तपस्या यह सिखाती है कि आत्मसंयम और ध्यान के द्वारा ही व्यक्ति जीवन की सभी कठिनाइयों से पार पा सकता है।
शिव और शक्ति का संबंध
भगवान शिव और देवी पार्वती (गौरी) के बीच के प्रेम और समर्पण का संबंध ब्रह्मांडीय ऊर्जा (शक्ति) और चेतना का प्रतीक है। शिव बिना शक्ति के शून्य हैं, और शक्ति बिना शिव के अचल है। यह संबंध दर्शाता है कि पुरुष और प्रकृति दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। शिव और शक्ति का यह मिलन संपूर्ण ब्रह्मांडीय ऊर्जा का आधार है, जिससे सृष्टि और विनाश दोनों संचालित होते हैं।
पंचाक्षर मंत्र – “नमः शिवाय”
इस स्तोत्र में बार-बार “नमः शिवाय” का जिक्र आता है, जो पंचाक्षर मंत्र के रूप में प्रसिद्ध है। यह मंत्र शिव की संपूर्ण ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करता है।
- “न” पृथ्वी तत्व का प्रतिनिधित्व करता है।
- “म” जल तत्व का प्रतीक है।
- “शि” अग्नि तत्व का प्रतिनिधित्व करता है।
- “वा” वायु तत्व का प्रतीक है।
- “य” आकाश तत्व का प्रतीक है।
इस प्रकार, “नमः शिवाय” का जप करने से व्यक्ति इन पांचों तत्वों को साध सकता है और शिव की कृपा से मोक्ष प्राप्त कर सकता है।
शिव का तांडव नृत्य
शिव को नटराज भी कहा जाता है, जो उनके नृत्य रूप का प्रतीक है। उनका तांडव नृत्य सृष्टि और संहार दोनों का प्रतीक है। यह नृत्य जीवन के चक्र – उत्पत्ति, पालन, और विनाश – का प्रतीक है। जब शिव तांडव करते हैं, तो इसका अर्थ होता है कि वे किसी महत्वपूर्ण परिवर्तन को अंजाम दे रहे हैं। शिव का यह रूप व्यक्ति को जीवन में संतुलन बनाए रखने की प्रेरणा देता है।
गंगा का शिव की जटाओं में वास
गंगा को शिव ने अपनी जटाओं में धारण किया है, जो शिव की करुणा और उनके धैर्य का प्रतीक है। गंगा का प्रवाह संसार को शुद्ध करने का प्रतीक है, और शिव उसे नियंत्रित करके यह दर्शाते हैं कि वे संसार की सारी शक्तियों को संतुलित रखते हैं। गंगा की धारा से जीवन की सभी नकारात्मकताओं को धोया जा सकता है।
शिव का वैराग्य स्वरूप
भगवान शिव का जीवन वैराग्य का सबसे बड़ा उदाहरण है। वे सांसारिक बंधनों से मुक्त हैं, और भस्म, नाग, और जानवरों की खाल पहनते हैं। उनका यह रूप सिखाता है कि सच्चा संतोष और शांति केवल भौतिक वस्तुओं से नहीं, बल्कि आत्म-साक्षात्कार से प्राप्त होती है। शिव का यह वैराग्य स्वरूप हर योगी और साधक के लिए प्रेरणादायक है, जो मोक्ष की तलाश में हैं।
स्तोत्र के पाठ का फल
यह स्तोत्र केवल भगवान शिव की स्तुति नहीं है, बल्कि उनके गुणों और शक्तियों को आत्मसात करने का माध्यम है। इस स्तोत्र के नियमित पाठ से व्यक्ति के सभी कष्ट दूर होते हैं। शिव का आशीर्वाद जीवन के हर क्षेत्र में प्राप्त होता है – चाहे वह आर्थिक समृद्धि हो, पारिवारिक सुख हो, या आध्यात्मिक उन्नति।
जो व्यक्ति इस स्तोत्र का श्रद्धा पूर्वक पाठ करता है, उसे भगवान शिव की कृपा शीघ्र ही प्राप्त होती है। यह न केवल बीमारियों और कष्टों को दूर करता है, बल्कि जीवन में शांति, समृद्धि, और आनंद भी प्रदान करता है। यह स्तोत्र व्यक्ति को जीवन के हर मोड़ पर दिशा देता है और उसे संसार के बंधनों से मुक्त करता है।