दत्ताची आरती in Hindi/Sanskrit
त्रिगुणात्मक त्रैमूर्ती दत्त हा जाणा ।
त्रिगुणी अवतार त्रैलोक्य राणा ।
नेती नेती शब्द न ये अनुमाना ॥
सुरवर मुनिजन योगी समाधी न ये ध्याना ॥
जय देव जय देव जय श्री गुरुद्त्ता ।
आरती ओवाळिता हरली भवचिंता ॥
सबाह्य अभ्यंतरी तू एक द्त्त ।
अभाग्यासी कैची कळेल हि मात ॥
पराही परतली तेथे कैचा हेत ।
जन्ममरणाचाही पुरलासे अंत ॥
दत्त येऊनिया ऊभा ठाकला ।
भावे साष्टांगेसी प्रणिपात केला ॥
प्रसन्न होऊनि आशीर्वाद दिधला ।
जन्ममरणाचा फेरा चुकवीला ॥
दत्त दत्त ऐसें लागले ध्यान ।
हरपले मन झाले उन्मन ॥
मी तू पणाची झाली बोळवण ।
एका जनार्दनी श्रीदत्तध्यान ॥
Datta Aarti in English
Trigunatmak Traimurti Datt ha jaana.
Triguni Avataar Trailokya Rana.
Neti Neti shabd na ye anumanaa.
Survar munijan yogi samadhi na ye dhyana.
Jai Dev Jai Dev Jai Shri Gurudatta.
Aarti owalita harali bhavachinta.
Sabahya Abhyantari tu ek Datt.
Abhagyasi kaichi kalel hi maat.
Parahi paratali tethe kaicha het.
Janmamaranachahi purlase ant.
Datt yeuniya ubha thakala.
Bhaave sashtangesi pranipat kela.
Prasanna houuni ashirwad didhala.
Janmamaranacha fera chukavila.
Datt Datt aise lagale dhyan.
Harapale man jhale unman.
Mi tu panachi jhali bolavan.
Eka Janardani Shridattadhyan.
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दत्ताची आरती का अर्थ
दत्तात्रेय, जिन्हें दत्त कहा जाता है, हिंदू धर्म में त्रिदेवों (ब्रह्मा, विष्णु और महेश) के अवतार माने जाते हैं। यह आरती उनकी स्तुति में गाई जाती है और इसमें उनके विभिन्न रूपों और उनकी कृपा का वर्णन किया गया है।
त्रिगुणात्मक त्रैमूर्ती दत्त हा जाणा
अर्थ:
दत्तात्रेय को त्रिगुणात्मक त्रिमूर्ति के रूप में समझो। वे सत्व, रजस और तमस, तीनों गुणों से परिपूर्ण हैं और यह गुण ही उनके त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) के रूप में प्रकट होते हैं।
त्रिगुणी अवतार त्रैलोक्य राणा
अर्थ:
दत्तात्रेय तीनों गुणों का अवतार हैं और तीनों लोकों के राजा हैं। ये गुण सृष्टि (सृजन), पालन और विनाश का प्रतीक हैं और दत्तात्रेय इनका प्रतिनिधित्व करते हैं।
नेती नेती शब्द न ये अनुमाना
अर्थ:
उनका स्वरूप इतना असीम है कि उसे शब्दों में नहीं बांधा जा सकता। ‘नेति नेति’ का अर्थ है ‘यह नहीं, वह नहीं’, जो उनके असीमित स्वरूप को दर्शाता है।
सुरवर मुनिजन योगी समाधी न ये ध्याना
अर्थ:
सर्वश्रेष्ठ देवता, मुनि और योगी भी उनकी समाधि में ध्यान नहीं कर सकते। उनका स्वरूप इतना गूढ़ है कि उसे ध्यान या साधना से समझ पाना आसान नहीं है।
जय देव जय देव जय श्री गुरुदत्त
अर्थ:
दत्तात्रेय की जय हो! उनका गुणगान किया जा रहा है, जिसमें उनके भक्त उन्हें गुरुओं के गुरु और सर्वोच्च ईश्वर के रूप में संबोधित करते हैं।
आरती ओवाळिता हरली भवचिंता
अर्थ:
जब उनकी आरती की जाती है, तो संसारिक चिंताओं और समस्याओं से मुक्ति मिलती है। उनकी कृपा से भक्त की सभी समस्याएं दूर हो जाती हैं।
सबाह्य अभ्यंतरी तू एक दत्त
अर्थ:
दत्तात्रेय अंदर और बाहर हर जगह विद्यमान हैं। वे हर प्राणी के अंदर और बाहर मौजूद हैं, यही सच्चा ज्ञान है। वे सर्वव्यापी हैं।
अभाग्यासी कैची कळेल हि मात
अर्थ:
दुर्भाग्यशाली व्यक्ति, जो इस सत्य को नहीं समझते, उन्हें यह महान ज्ञान नहीं प्राप्त होता। केवल भाग्यशाली और समझदार लोग ही इस सच्चाई को समझ सकते हैं।
पराही परतली तेथे कैचा हेत
अर्थ:
जो सत्य से परे हैं, जो अपने जीवन में मार्ग से भटके हुए हैं, उनके लिए कोई उद्देश्य नहीं बचता। यह पंक्ति उन्हें सचेत करती है कि सही मार्ग पर चलने का महत्त्व क्या है।
जन्ममरणाचाही पुरलासे अंत
अर्थ:
दत्तात्रेय की कृपा से जन्म और मृत्यु के चक्र का अंत हो जाता है। उनकी आराधना से व्यक्ति मोक्ष प्राप्त कर सकता है और संसार के बंधनों से मुक्त हो सकता है।
दत्त येऊनिया ऊभा ठाकला
अर्थ:
यहां दत्तात्रेय को साकार रूप में प्रस्तुत किया गया है। वे अपने भक्तों के सामने प्रकट होते हैं और उनकी रक्षा के लिए तैयार खड़े होते हैं।
भावे साष्टांगेसी प्रणिपात केला
अर्थ:
भक्त भाव से पूर्ण समर्पण के साथ साष्टांग (आठ अंगों से) प्रणाम करते हैं। यह पूर्ण समर्पण और विनम्रता का प्रतीक है, जो दत्तात्रेय की कृपा प्राप्त करने का मार्ग है।
प्रसन्न होऊनि आशीर्वाद दिधला
अर्थ:
दत्तात्रेय प्रसन्न होकर अपने भक्तों को आशीर्वाद देते हैं। उनकी कृपा से भक्त को जीवन की सभी समस्याओं से मुक्ति मिलती है।
जन्ममरणाचा फेरा चुकवीला
अर्थ:
दत्तात्रेय की कृपा से जन्म और मृत्यु के चक्र से छुटकारा मिल जाता है। वे मोक्ष का मार्ग दिखाते हैं और भक्त को संसारिक बंधनों से मुक्त करते हैं।
दत्त दत्त ऐसें लागले ध्यान
अर्थ:
जब व्यक्ति ‘दत्त, दत्त’ इस मंत्र का ध्यान करता है, तब उसकी सारी चिंता और दुख समाप्त हो जाते हैं। यह ध्यान मन और आत्मा को शांति प्रदान करता है।
हरपले मन झाले उन्मन
अर्थ:
जब ध्यान में मन गहराई से डूब जाता है, तो सभी विचार और विकार समाप्त हो जाते हैं। मन पूरी तरह से ध्यानस्थ हो जाता है और सांसारिक मोह-माया से मुक्त हो जाता है।
मी तू पणाची झाली बोळवण
अर्थ:
यहां ‘मैं’ और ‘तू’ की भावना का अंत हो जाता है। भक्त और भगवान के बीच कोई भेद नहीं रहता, दोनों एक हो जाते हैं।
एका जनार्दनी श्रीदत्तध्यान
अर्थ:
सभी ध्यान दत्तात्रेय में ही समाहित हो जाते हैं। जनार्दन के रूप में श्री दत्तात्रेय का ध्यान सभी चिंताओं और बंधनों से मुक्ति दिलाने वाला है।