- – यह स्तुति माता जनक सुनन्दिनी (सीता माता) की महिमा का वर्णन करती है, जो विष्णु की प्रिय हैं।
- – माता को दुष्टों का नाश करने वाली, सभी मनोरथ पूर्ण करने वाली और जगत की शोभा बताकर पूजा गया है।
- – उन्हें पशुपति (शिव) की मोहिनी, त्रिभुवन की ग्रंथिनी और खल हारिणी के रूप में भी सम्मानित किया गया है।
- – माता को तेजस्वी, विजयी, और सभी ऋषि-मुनियों की पालिका के रूप में वर्णित किया गया है।
- – यह स्तुति माता की दयालुता, शक्ति और जगत में उनके प्रभाव को उजागर करती है।
- – अंत में माता को हरि वन्दिनी और विष्णु की प्रिय कहकर उनकी भक्ति और सम्मान व्यक्त किया गया है।

जय जय जनक सुनन्दिनी, हरि वन्दिनी हे,
दुष्ट निकंदिनि मात, जय जय विष्णु प्रिये।।
सकल मनोरथ दायनी, जग सोहिनी हे,
पशुपति मोहिनी मात, जय जय विष्णु प्रिये।।
विकट निशाचर कुंथिनी, दधिमंथिनी हे,
त्रिभुवन ग्रंथिनी मात, जय जय विष्णु प्रिये।।
दिवानाथ सम भासिनी, मुख हासिनि हे,
मरुधर वासिनी मात, जय जय विष्णु प्रिये।।
जगदंबे जय कारिणी, खल हारिणी हे,
मृगरिपुचारिनी मात, जय जय विष्णु प्रिये।।
पिपलाद मुनि पालिनी, वपु शालिनी हे,
खल खलदायनी मात जय जय विष्णु प्रिये।।
तेज – विजित सोदामिनी, हरि भामिनी हे,
अहि गज ग्रामिनी मात, जय जय विष्णु प्रिये।।
घरणीधर सुसहायिनी, श्रुति गायिनी हे,
वांछित दायिनी मात जय जय विष्णु प्रिये।।
जय जय जनक सुनन्दिनी, हरि वन्दिनी हे,
दुष्ट निकंदिनि मात, जय जय विष्णु प्रिये।।
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