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मोहिनी एकादशी की महिमा

मोहिनी एकादशी हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण व्रत है। इसकी कुछ प्रमुख महिमाएँ इस प्रकार हैं:

१. इस व्रत को करने से भगवान विष्णु और उनके अवतार मोहिनी प्रसन्न होते हैं। मान्यता है कि मोहिनी अवतार ने असुरों को मोहित कर अमृत प्राप्त किया था।

२. मोहिनी एकादशी का व्रत करने से भक्त को आध्यात्मिक तथा भौतिक लाभ मिलता है। यह पापों का नाश करता है और पुण्य प्रदान करता है।

३. इस व्रत को विधि-विधान से पूरी श्रद्धा के साथ करने वाले भक्त को मोक्ष की प्राप्ति होती है।

४. महाभारत में भी इस व्रत का महत्व बताया गया है। युधिष्ठिर द्वारा मोहिनी एकादशी का व्रत करने से उन्हें श्रेय की प्राप्ति हुई थी।

५. यह व्रत मन को पवित्र बनाता है, सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करता है और जीवन में सफलता दिलाने में सहायक होता है।

६. मोहिनी एकादशी व्रत को करने से सभी पापों का नाश होता है और साधक को भगवान विष्णु के निवास वैकुंठ लोक में स्थान मिलता है।

मोहिनी एकादशी व्रत कथा

क समय देवताओं और असुरों के बीच समुद्र मंथन हुआ था। इससे निकले अमृत को पाने के लिए दोनों के बीच संघर्ष छिड़ गया। यह देख भगवान विष्णु ने मोहिनी अवतार धारण किया। अपनी माया से मोहिनी ने असुरों को मोहित कर दिया और उन्हें अमृत पीने से रोक दिया।

इसके बाद भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप में ही देवताओं को अमृत का वितरण किया। इससे असुर क्रोधित हो उठे। तब मोहिनी ने उन्हें शांत किया और कहा कि वे अमृत नहीं पा सकते क्योंकि उन्होंने तप और व्रत नहीं किए हैं।

असुरों ने मोहिनी से व्रत और तप का मार्ग पूछा। तब भगवान ने वैशाख माह की शुक्ल एकादशी का व्रत करने को कहा। इसे ही मोहिनी एकादशी कहा जाता है। इस दिन व्रत करने वाले भक्त की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

इस व्रत को करने के लिए दशमी तिथि को भक्त एक समय भोजन लेता है। एकादशी के दिन व्रत रखकर रात में भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए। द्वादशी को पारण करने के बाद ब्राह्मणों को भोजन और दक्षिणा देनी चाहिए। मोहिनी एकादशी का व्रत करने से भक्त को आध्यात्मिक और भौतिक लाभ प्राप्त होते हैं।

पूजाविधि

मोहिनी एकादशी के दिन व्रत और पूजा करने की विधि इस प्रकार है:

१. एकादशी के दिन प्रातः स्नान आदि नित्य कर्म से निवृत्त होकर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का ध्यान करते हुए संकल्प लें।

२. भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। इसके आसपास फूल, अक्षत आदि अर्पित करें।

३. पूजा में गंगाजल, पंचामृत (दूध, दही, घी, मधु और शर्करा), पंचरत्न, तुलसी पत्र आदि का उपयोग करें।

४. ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः मंत्र का जाप करते हुए भगवान विष्णु और लक्ष्मी जी को अर्घ्य, चंदन, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य अर्पित करें।

५. तत्पश्चात भगवान विष्णु के द्वादश नामों का उच्चारण करें और उन्हें वस्त्र, उपवस्त्र, यज्ञोपवीत आदि अर्पित करें।

६. इसके बाद विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें या विष्णु जी की लीलाओं का श्रवण-कीर्तन करें।

७. भगवान को नैवेद्य अर्पित करने के बाद आरती करें। आरती में साथ ही मोहिनी अवतार की भी आरती करनी चाहिए।

८. अंत में प्रसाद ग्रहण करें और संकल्प पूरा करते हुए पूजा विसर्जित करें।

९. द्वादशी तिथि को पारण करते समय ब्राह्मणों को भोजन कराएं और दक्षिणा दें।

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