- – भजन में जीवन की अनिश्चितताओं और दुखों के बीच सतगुरु के सहारे की आवश्यकता व्यक्त की गई है।
- – भक्ति और श्रद्धा के माध्यम से आत्मा को शांति और उजाले की कामना की गई है।
- – सांसारिक धन-दौलत और मान-सम्मान की तुलना में गुरु की कृपा और चरणों की रज को अधिक महत्व दिया गया है।
- – जीवन में वैराग्य और अनुराग के बीच संतुलन की बात की गई है, जहाँ गुरु का सहारा ही स्थिरता प्रदान करता है।
- – भजन में कठिनाइयों और थकान के बावजूद गुरु की सहायता और मार्गदर्शन की प्रार्थना की गई है।
- – अंत में, भजनकार ने गुरु की कृपा को जीवन का सर्वोच्च आश्रय बताया है, जो हर परिस्थिति में सहारा बनता है।

मुझे तेरा सहारा सदा चाहिए भजन,
आसरा इस जहाँ का मिले न मिले,
मुझे तेरा सहारा सदा चाहिए।।
चाँद तारे फलक पर दिखे ना दिखे,
मुझ को तेरा नज़ारा सदा चाहिए,
धन दौलत जहाँ की मिले ना मिले,
सतगुरु तेरे चरणों की रज चाहिए॥
यहाँ खुशिया हैं कम, और ज्यादा है गम,
जहाँ देखो वहीँ है देखो भरम ही भरम,
मेरी महफ़िल में शम्मा जले ना जले,
मेरे दिल में उजाला तेरा चाहिए॥
कभी वैराग है, कभी अनुराग है,
यहाँ बदले हैं माली वही बाग़ है,
मेरी चाहत की दुनिया बसे ना बसे,
मेरे दिल में बसेरा तेरा चाहिए॥
मेरी धीमी है चाल, और पथ है विशाल,
हर कदम पर मुसीबत अब तू ही संभाल,
पैर मेरे थकें हैं, चले ना चले,
मेरे दिल में इशारा तेरा चाहिए॥
कभी बैराग है, कभी अनुराग है,
जिन्दगी बिन धुंए की अजब आग है,
मान सम्मान जग में मिले ना मिले,
बस कृपा होनी बाबा तेरी चाहिए॥
आसरा इस जहाँ का मिले न मिले,
मुझे तेरा सहारा सदा चाहिए ॥
