- – यह गीत पाबूजी की भक्ति और उनकी महिमा का वर्णन करता है, जो एक देवता के रूप में पूजे जाते हैं।
- – गीत में पाबूजी के आगमन की बात की गई है, जो पूरी की पूर्णिमा की रात को आते हैं।
- – घोड़े और उनके महत्व का उल्लेख है, जो पाबूजी के साथ जुड़े हुए हैं और उनकी शक्ति का प्रतीक हैं।
- – क्षत्रिय वंश और भवानी माता की स्तुति भी गीत में शामिल है, जो धार्मिक और सांस्कृतिक संदर्भ को दर्शाता है।
- – गीत में राजस्थान की लोक संस्कृति और परंपराओं की झलक मिलती है, विशेषकर पाबूजी की पूजा और उनसे जुड़ी कथाओं के माध्यम से।

पूरी रे पुनम री रे रात देवल,
पुरी रे पुनम री रे रात,
पाबुजी आया देवल रे पावणा रे हा।।
ढालीया हींगलोया रे ठाठ देवल,
रेशम री रे जायो माते डालदी रे हा,
बिछादी फुलडो री रे सेज देवल,
केसर अंतर रा किना छोटना रे हा।।
अमे करलो मनडा री रे बात पाबु,
किन रे कामा सु आया पावणा रे हा,
कई केवु मनडा री रे बात देवल,
किन ने केवुतो कुन साम्बले रे हा।।
अरे घोड़ा नही है पायगो रे माय,
घोडा बिना है सुनो रावलो रे हा,
अरे कोनी चाले घोड़ा बिना काम देवल,
घोडी तो दिरावो केसर कालवी रे हा।।
अरे घोड़ा मारे होता रे चार पाबू,
एक तो लेगीयो रूनीचे रामदेव रे हा,
अरे लारे घोड़ा बचीया रे तीन पाबू,
दुजो तो लेगीयो रे रावल मालदे रे हा।।
अरे लारे घोड़ा बचीया रे दो पाबू,
तीजो तो लेगीयो रे भोज बागडे रे हा,
अरे लारे घोड़ो रेगो रे एक पाबू,
नेनकी रलीया रो गुबो रान्डीयो रे हा।।
अरे कोनी मारे रान्डीया रो काम देवल,
घोडी तो दिरावो केसर कालवी रे हा,
अरे क्षत्रिय वंश रे वेले रे आव भवानी,
पाबू रे आईजो रे पगा रे पागडे रे हा।।
सिवरू सुन्धा री रे राय भवानी,
भारत में सिवरू भवानी कालीका रे हा,
अरे पुरी रे पुनम री रे रात देवल,
पुरी ने पुनम री रे रात पाबूजी,
आया देवल रे पावणा रे हा।।
पूरी रे पुनम री रे रात देवल,
पुरी रे पुनम री रे रात,
पाबुजी आया देवल रे पावणा रे हा।।
स्वर – प्रकाश माली जी।
प्रेषक – मनीष सीरवी
9640557818
