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द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्रम् क्या होता है?

द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्रम् एक पवित्र स्तोत्र है जो भगवान शिव के बारह पवित्र ज्योतिर्लिंगों की महिमा का वर्णन करता है। ज्योतिर्लिंग हिंदू धर्म में शिव के प्रतीक माने जाते हैं, जो भगवान शिव के आध्यात्मिक और अनंत प्रकाश का प्रतिनिधित्व करते हैं। इस स्तोत्र में इन बारह ज्योतिर्लिंगों के नाम और उनकी विशेषताओं का उल्लेख किया गया है, जिनकी पूजा और स्मरण से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है।

द्वादश ज्योतिर्लिंगों में निम्नलिखित शिवलिंग शामिल हैं:

  1. सोमनाथ (गुजरात) – जो चंद्रमा के श्राप से मुक्ति का प्रतीक है।
  2. मल्लिकार्जुन (आंध्र प्रदेश) – जहां भगवान शिव और माता पार्वती निवास करते हैं।
  3. महाकालेश्वर (मध्य प्रदेश) – काल को जीतने वाले भगवान का रूप।
  4. ओंकारेश्वर (मध्य प्रदेश) – ओंकार स्वरूप शिव।
  5. वैद्यनाथ (झारखंड/महाराष्ट्र) – रोगों को हरने वाले भगवान।
  6. भीमाशंकर (महाराष्ट्र) – भक्त भीमा की तपस्या से प्रसन्न शिव।
  7. रामेश्वरम् (तमिलनाडु) – राम द्वारा पूजित शिव।
  8. नागेश्वर (गुजरात) – संसार के भय को हरने वाले।
  9. काशी विश्वनाथ (उत्तर प्रदेश) – काशी के ईश्वर और मोक्ष के दाता।
  10. त्र्यंबकेश्वर (महाराष्ट्र) – त्र्यंबक पर्वत पर स्थित शिव।
  11. केदारनाथ (उत्तराखंड) – हिमालय में स्थित।
  12. घृष्णेश्वर (महाराष्ट्र) – घृष्णा देवी के तप का फल।

यह स्तोत्र भगवान शिव के इन सभी रूपों की स्तुति और आराधना करता है। इसका नियमित पाठ करने से भक्त के जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का आगमन होता है। मान्यता है कि जो व्यक्ति इस स्तोत्र का पाठ श्रद्धा और भक्ति से करता है, वह सभी पापों से मुक्त हो जाता है और भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त करता है। प्रत्येक ज्योतिर्लिंग का अलग महत्व और पौराणिक कथा है, जो इसे विशिष्ट बनाती है।

द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्रम् भक्तों के लिए एक अद्भुत साधन है भगवान शिव के करीब आने और उनकी कृपा प्राप्त करने का। इसे संस्कृत भाषा में रचकर महान ऋषियों ने इसे अमूल्य धरोहर के रूप में प्रस्तुत किया है।

द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्रम् का अर्थ

द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्रम् का अर्थ

यह स्तोत्र भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों की स्तुति में रचा गया है। हर ज्योतिर्लिंग का अपना विशेष महत्व और स्थान है। इस स्तोत्र को पढ़ने और स्मरण करने से भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है और सभी पापों का नाश होता है। आइए इसके प्रत्येक श्लोक का विस्तार से अर्थ समझते हैं:


श्लोक 1:

सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्। उज्जयिन्यां महाकालम्ॐकारममलेश्वरम्॥

  • सौराष्ट्रे सोमनाथं: गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र में स्थित सोमनाथ ज्योतिर्लिंग, यह भगवान शिव का पहला ज्योतिर्लिंग माना जाता है। इसकी महिमा इतनी है कि यह काल के प्रभाव से मुक्त करता है।
  • श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्: आंध्र प्रदेश के श्रीशैल पर्वत पर मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग स्थित है। यह शिव और पार्वती के संयुक्त रूप का प्रतीक है।
  • उज्जयिन्यां महाकालम्: उज्जैन में स्थित महाकाल ज्योतिर्लिंग, जो शिव के रौद्र रूप का प्रतिनिधित्व करता है। यह विशेष रूप से मोक्ष प्रदान करने वाला है।
  • ॐकारममलेश्वरम्: मध्य प्रदेश में नर्मदा नदी के तट पर स्थित ओंकारेश्वर और ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग, जो शिव के दो रूपों का प्रतीक हैं।

श्लोक 2:

परल्यां वैद्यनाथं च डाकिन्यां भीमाशंकरम्। सेतुबंधे तु रामेशं नागेशं दारुकावने॥

  • परल्यां वैद्यनाथं: झारखंड के देवघर में स्थित वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग, जिसे “वैद्यनाथ धाम” भी कहा जाता है। इसे आरोग्य प्रदान करने वाला और दुख हरने वाला माना गया है।
  • डाकिन्यां भीमाशंकरम्: महाराष्ट्र के पुणे जिले में सह्याद्री पर्वत पर स्थित भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग, जो शिव के शक्ति स्वरूप का प्रतिनिधित्व करता है।
  • सेतुबंधे तु रामेशं: तमिलनाडु के रामेश्वरम में स्थित रामेश्वर ज्योतिर्लिंग, जिसे भगवान राम ने लंका पर विजय प्राप्ति के बाद स्थापित किया था। यह शिव और विष्णु के अद्वितीय मेल का प्रतीक है।
  • नागेशं दारुकावने: गुजरात के द्वारका क्षेत्र में स्थित नागेश्वर ज्योतिर्लिंग, जो भय से मुक्ति दिलाने वाला है।

श्लोक 3:

वाराणस्यां तु विश्वेशं त्र्यंबकं गौतमीतटे। हिमालये तु केदारम् घुश्मेशं च शिवालये॥

  • वाराणस्यां तु विश्वेशं: उत्तर प्रदेश के वाराणसी में स्थित काशी विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग, जिसे मोक्ष प्रदान करने वाला कहा गया है। यह शिव के प्रमुख तीर्थों में से एक है।
  • त्र्यंबकं गौतमीतटे: महाराष्ट्र के नासिक में गोदावरी नदी के तट पर स्थित त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग। यह शिव के तीन नेत्रों का प्रतीक है और जीवन के तीनों दोषों को समाप्त करता है।
  • हिमालये तु केदारम्: उत्तराखंड के हिमालय में स्थित केदारनाथ ज्योतिर्लिंग। यह शिव का आध्यात्मिक और प्राकृतिक रूप है।
  • घुश्मेशं च शिवालये: महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में स्थित घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग, जो भक्ति और सेवा का प्रतिफल है।

श्लोक 4:

एतानि ज्योतिर्लिङ्गानि सायं प्रातः पठेन्नरः। सप्तजन्मकृतं पापं स्मरणेन विनश्यति॥

इस श्लोक में कहा गया है कि जो व्यक्ति सुबह और शाम इन बारह ज्योतिर्लिंगों का स्मरण करता है, उसके सात जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं। यह स्तोत्र आध्यात्मिक शुद्धि और मोक्ष प्राप्ति का साधन है।


भावार्थ:

द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्रम् भगवान शिव के बारह रूपों का वर्णन करता है, जो भौतिक और आध्यात्मिक दोनों स्तरों पर मनुष्य को शांति, स्वास्थ्य, और मोक्ष प्रदान करते हैं। हर ज्योतिर्लिंग का अपना ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व है। इस स्तोत्र को नित्य पाठ करने से न केवल पापों का नाश होता है, बल्कि जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और दिव्य कृपा भी प्राप्त होती है।

द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्रम्  के फायदे क्या हैं?

द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्रम् शिव भगवान की स्तुति में रचित एक अत्यंत पवित्र और शक्तिशाली स्तोत्र है। यह स्तोत्र भगवान शिव के बारह प्रमुख ज्योतिर्लिंगों का वर्णन करता है, जिन्हें हिंदू धर्म में अत्यंत पूजनीय माना जाता है। इसका नियमित पाठ करने से भक्त को शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक लाभ प्राप्त होते हैं।

यह स्तोत्र भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने का प्रभावशाली माध्यम है। इसे श्रद्धा और भक्ति के साथ पढ़ने से मन को शांति मिलती है और नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है। द्वादश ज्योतिर्लिंगों के नाम स्मरण करने से व्यक्ति के जीवन में सुख, समृद्धि और सकारात्मकता का संचार होता है। यह स्तोत्र कठिन परिस्थितियों में साहस प्रदान करता है और आत्मविश्वास को बढ़ाता है।

धार्मिक मान्यता है कि इस स्तोत्र का पाठ करने से पापों का क्षय होता है और भक्त को मोक्ष प्राप्ति की ओर अग्रसर होने में सहायता मिलती है। जिन लोगों के जीवन में कष्ट, रोग या आर्थिक परेशानियां होती हैं, वे इस स्तोत्र के नियमित पाठ से अपने जीवन में सुधार देख सकते हैं। यह स्तोत्र ध्यान और साधना के लिए भी महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि यह भक्त को आत्मिक शक्ति और शिव से एकत्व का अनुभव करने में मदद करता है।

इसके अलावा, द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्रम् का पाठ विशेष रूप से सोमवार और शिवरात्रि के दिन करने से इसका प्रभाव कई गुना बढ़ जाता है। इसे गाने या सुनने से मन और शरीर को शांति और ऊर्जा मिलती है। यह स्तोत्र व्यक्ति के भीतर भक्ति और श्रद्धा की भावना को प्रबल करता है, जिससे उसका जीवन अधिक संतुलित और सुखमय बनता है।

इस प्रकार, द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्रम् का पाठ जीवन के हर क्षेत्र में शुभ फलदायी होता है और भक्त को शिव कृपा से आशीर्वादित करता है।

द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्रम् के नियम और विधि?

द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्रम् का पाठ भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों की स्तुति और उनके महत्व को समर्पित है। इसका पाठ करने से मनुष्य को शांति, सुख, समृद्धि और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस स्तोत्र का पाठ करने के लिए विशेष नियम और विधियां हैं, जिनका पालन करने से इसका प्रभाव अधिक होता है।

पाठ की नियम और विधियां:

  1. स्नान और शुद्धता:
    पाठ प्रारंभ करने से पहले स्वयं को शुद्ध करना अत्यंत आवश्यक है। सुबह स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  2. शिवलिंग की पूजा:
    पाठ से पहले भगवान शिव का अभिषेक करें। शिवलिंग पर जल, दूध, दही, शहद, घी और गंगाजल से अभिषेक करना उत्तम माना जाता है। अभिषेक के बाद बेलपत्र, अक्षत, धूप, दीप और फूल अर्पित करें।
  3. आसन और स्थान:
    पाठ करते समय शांत और पवित्र स्थान चुनें। आसन पर बैठकर पाठ करें और अपनी ध्यान शक्ति को भगवान शिव पर केंद्रित करें। उत्तर या पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठना श्रेष्ठ है।
  4. समय:
    यह स्तोत्र प्रातःकाल या संध्याकाल में पढ़ना अधिक फलदायक होता है। सोमवार और शिवरात्रि जैसे विशेष अवसरों पर इसका पाठ करना शुभ माना जाता है।
  5. शुद्ध उच्चारण:
    द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र का पाठ करते समय इसके श्लोकों का शुद्ध उच्चारण करना जरूरी है। शुद्धता के साथ पाठ करने से इसका प्रभाव अधिक होता है।
  6. श्रद्धा और भक्ति:
    पाठ के समय श्रद्धा और भक्ति का होना अत्यंत आवश्यक है। मन को शांत रखकर, भगवान शिव के नाम का स्मरण करते हुए पाठ करें।
  7. द्वादश ज्योतिर्लिंग नामों का स्मरण:
    इस स्तोत्र में बारह ज्योतिर्लिंगों का वर्णन है—सोमनाथ, मल्लिकार्जुन, महाकालेश्वर, ओंकारेश्वर, केदारनाथ, विश्वनाथ, भीमाशंकर, त्र्यंबकेश्वर, वैद्यनाथ, नागेश्वर, रामेश्वरम, और घृष्णेश्वर। इन सभी के नामों का स्मरण पाठ के दौरान करना चाहिए।
  8. दान और सेवा:
    पाठ के बाद जरूरतमंदों को दान देना और शिवमंदिर में अपनी सामर्थ्य के अनुसार सेवा करना पुण्यदायक माना गया है।
  9. नियमितता:
    नियमित रूप से इस स्तोत्र का पाठ करने से मन और आत्मा को शांति मिलती है। इसे 11, 21, या 108 बार जपने से विशेष फल प्राप्त होता है।

द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र का पाठ न केवल धार्मिक दृष्टि से बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक शांति के लिए भी अत्यंत लाभकारी है। यह भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने का सरल और प्रभावशाली मार्ग है।

सौराष्ट्रे सोमनाथं – द्वादश ज्योतिर्लिंग – मंत्र Video

Saurashtre Somanathan – Dwadas Jyotirling in English

Saurastre Somanatha Cha Srishaile Mallikarjunam ।
Ujjayinyam Mahakalamomkarammaleswaram ॥ 1 ॥Paralya Vaidyanatham Cha Dakkinam Bhimashankaram ।
Setubandhe Tu Ramesham Nagesham Darukavane ॥ 2 ॥

Varansyam Tu Vishwesham Trimbakam Gautamitate ।
Himalaye Tu Kedaram Ghushmesham Cha Shivalaye ॥ 3 ॥

Etani Jyotirlingani Saayam Pratah Pathennarah ।
Saptajanmakritam Papam Smarnen Binasyati ॥ 4 ॥

सौराष्ट्रे सोमनाथं – द्वादश ज्योतिर्लिंग – मंत्र PDF Download

सौराष्ट्रे सोमनाथं – द्वादश ज्योतिर्लिंग – मंत्र Mp3 Audio

सोमनाथ ज्योतिर्लिंग का महत्व (Significance)

सोमनाथ मंदिर गुजरात राज्य के सौराष्ट्र क्षेत्र में स्थित है और इसे द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से पहला माना जाता है। यह भगवान शिव को समर्पित एक प्राचीन और प्रसिद्ध मंदिर है। माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण स्वयं चन्द्रदेव ने किया था और बाद में इसे कई बार पुनर्निर्माण किया गया।

सोमनाथ ज्योतिर्लिंग के इतिहास और धार्मिक महत्व:

  1. इतिहास: सोमनाथ मंदिर का प्राचीन इतिहास बहुत समृद्ध है। इसे सबसे पहले चन्द्रदेव ने सोने से बनाया था। बाद में इसे रावण ने चाँदी से और श्रीकृष्ण ने चन्दन की लकड़ी से बनवाया। समय-समय पर इस मंदिर को विदेशी आक्रांताओं ने नष्ट किया, लेकिन हर बार इसका पुनर्निर्माण किया गया।
  2. धार्मिक महत्व: इस मंदिर को हिन्दू धर्म में बहुत उच्च स्थान प्राप्त है। मान्यता है कि सोमनाथ ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने से समस्त पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
  3. पौराणिक कथा: एक पौराणिक कथा के अनुसार, चन्द्रदेव को श्राप से मुक्त करने के लिए भगवान शिव ने स्वयं यहां प्रकट होकर ज्योतिर्लिंग के रूप में विराजमान हुए थे।

सोमनाथ ज्योतिर्लिंग की यात्रा और दर्शन:

  1. प्रवेश और पूजा: सोमनाथ मंदिर में प्रवेश के लिए भक्तों को विशेष अनुशासन का पालन करना होता है। मंदिर में श्रद्धालु शिवलिंग पर जल, दूध और बिल्वपत्र अर्पित करते हैं।
  2. मंदिर की संरचना: वर्तमान में सोमनाथ मंदिर की संरचना भव्य और सुंदर है। मंदिर की दीवारों पर उत्कृष्ट शिल्पकला का प्रदर्शन किया गया है।
  3. मेले और त्यौहार: सोमनाथ मंदिर में महाशिवरात्रि और श्रावण मास के दौरान विशेष पूजा और मेले का आयोजन होता है, जिसमें लाखों श्रद्धालु भाग लेते हैं।

सोमनाथ ज्योतिर्लिंग की यात्रा और दर्शन से भक्तों को अपार आध्यात्मिक शांति और संतोष प्राप्त होता है। यह स्थान हर हिन्दू के जीवन में एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है।

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