शीतलाष्टक स्तोत्र in Hindi/Sanskrit
विनियोग:
ऊँ अस्य श्रीशीतला स्तोत्रस्य महादेव ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, शीतली देवता, लक्ष्मी बीजम्, भवानी शक्तिः, सर्वविस्फोटक निवृत्तये जपे विनियोगः ॥
ऋष्यादि-न्यासः
श्रीमहादेव ऋषये नमः शिरसि, अनुष्टुप् छन्दसे नमः मुखे, श्रीशीतला देवतायै नमः हृदि, लक्ष्मी (श्री) बीजाय नमः गुह्ये, भवानी शक्तये नमः पादयो, सर्व-विस्फोटक-निवृत्यर्थे जपे विनियोगाय नमः सर्वांगे ॥
ध्यानः
ध्यायामि शीतलां देवीं, रासभस्थां दिगम्बराम् ।
मार्जनी-कलशोपेतां शूर्पालङ्कृत-मस्तकाम् ॥
मानस-पूजनः
ॐ लं पृथ्वी-तत्त्वात्मकं गन्धं श्री शीतला-देवी-प्रीतये समर्पयामि नमः। ॐ हं आकाश-तत्त्वात्मकं पुष्पं श्री शीतला-देवी-प्रीतये समर्पयामि नमः। ॐ यं वायु-तत्त्वात्मकं धूपं श्री शीतला-देवी-प्रीतये समर्पयामि नमः। ॐ रं अग्नि-तत्त्वात्मकं दीपं श्री शीतला-देवी-प्रीतये समर्पयामि नमः। ॐ वं जल-तत्त्वात्मकं नैवेद्यं श्री शीतला-देवी-प्रीतये समर्पयामि नमः। ॐ सं सर्व-तत्त्वात्मकं ताम्बूलं श्री शीतला-देवी-प्रीतये समर्पयामि नमः।
मन्त्रः
ॐ ह्रीं श्रीं शीतलायै नमः ॥ [११ बार]
॥ ईश्वर उवाच॥
वन्दे अहं शीतलां देवीं रासभस्थां दिगम्बराम् ।
मार्जनी कलशोपेतां शूर्पालं कृत मस्तकाम् ॥1॥
वन्देअहं शीतलां देवीं सर्व रोग भयापहाम् ।
यामासाद्य निवर्तेत विस्फोटक भयं महत् ॥2॥
शीतले शीतले चेति यो ब्रूयाद्दारपीड़ितः ।
विस्फोटकभयं घोरं क्षिप्रं तस्य प्रणश्यति ॥3॥
यस्त्वामुदक मध्ये तु धृत्वा पूजयते नरः ।
विस्फोटकभयं घोरं गृहे तस्य न जायते ॥4॥
शीतले ज्वर दग्धस्य पूतिगन्धयुतस्य च ।
प्रनष्टचक्षुषः पुसस्त्वामाहुर्जीवनौषधम् ॥5॥
शीतले तनुजां रोगानृणां हरसि दुस्त्यजान् ।
विस्फोटक विदीर्णानां त्वमेका अमृत वर्षिणी ॥6॥
गलगंडग्रहा रोगा ये चान्ये दारुणा नृणाम् ।
त्वदनु ध्यान मात्रेण शीतले यान्ति संक्षयम् ॥7॥
न मन्त्रा नौषधं तस्य पापरोगस्य विद्यते ।
त्वामेकां शीतले धात्रीं नान्यां पश्यामि देवताम् ॥8॥
॥ फल-श्रुति ॥
मृणालतन्तु सद्दशीं नाभिहृन्मध्य संस्थिताम् ।
यस्त्वां संचिन्तये द्देवि तस्य मृत्युर्न जायते ॥9॥
अष्टकं शीतला देव्या यो नरः प्रपठेत्सदा ।
विस्फोटकभयं घोरं गृहे तस्य न जायते ॥10॥
श्रोतव्यं पठितव्यं च श्रद्धा भक्ति समन्वितैः ।
उपसर्ग विनाशाय परं स्वस्त्ययनं महत् ॥11॥
शीतले त्वं जगन्माता शीतले त्वं जगत्पिता।
शीतले त्वं जगद्धात्री शीतलायै नमो नमः ॥12॥
रासभो गर्दभश्चैव खरो वैशाख नन्दनः ।
शीतला वाहनश्चैव दूर्वाकन्दनिकृन्तनः ॥13॥
एतानि खर नामानि शीतलाग्रे तु यः पठेत् ।
तस्य गेहे शिशूनां च शीतला रूङ् न जायते ॥14॥
शीतला अष्टकमेवेदं न देयं यस्य कस्यचित् ।
दातव्यं च सदा तस्मै श्रद्धा भक्ति युताय वै ॥15॥
॥ श्रीस्कन्दपुराणे शीतलाअष्टक स्तोत्रं ॥
Sheetla Ashtakam Stotram in English
Viniyog:
Om Asya Shri Sheetala Stotrasya Mahadeva Rishih, Anushtup Chandah, Sheetala Devata, Lakshmi Beejam, Bhavani Shaktih, Sarvavisphotaka Nivrittaye Jape Viniyogah.
Rishyadi-Nyasa:
Shri Mahadeva Rishaye Namah Shirasi, Anushtup Chandase Namah Mukhe, Shri Sheetala Devatayai Namah Hridi, Lakshmi (Shri) Beejaya Namah Guhye, Bhavani Shaktaye Namah Padayo, Sarva-Visphotaka-Nivrittyarthe Jape Viniyogaya Namah Sarvange.
Dhyan:
Dhyayami Sheetalam Devim, Rasabhastham Digambaram.
Marjani-Kalashopetam Shurpalankrita-Mastakam.
Manas-Poojan:
Om Lam Prithvi-Tattvatmakam Gandham Shri Sheetala-Devi-Pritaye Samarpayami Namah.
Om Ham Akash-Tattvatmakam Pushpam Shri Sheetala-Devi-Pritaye Samarpayami Namah.
Om Yam Vayu-Tattvatmakam Dhupam Shri Sheetala-Devi-Pritaye Samarpayami Namah.
Om Ram Agni-Tattvatmakam Dipam Shri Sheetala-Devi-Pritaye Samarpayami Namah.
Om Vam Jal-Tattvatmakam Naivedyam Shri Sheetala-Devi-Pritaye Samarpayami Namah.
Om Sam Sarva-Tattvatmakam Tamboolam Shri Sheetala-Devi-Pritaye Samarpayami Namah.
Mantra:
Om Hreem Shreem Sheetalayai Namah. (11 times)
Ishwar Uvacha:
Vande Aham Sheetalam Devim Rasabhastham Digambaram.
Marjani Kalashopetam Shurpalam Krita Mastakam. (1)
Vande Aham Sheetalam Devim Sarva Roga Bhayapaham.
Yamasadya Nivarteta Visphotaka Bhayam Mahat. (2)
Sheetale Sheetale Cheti Yo Bruyaddarapiditah.
Visphotaka Bhayam Ghoram Kshipram Tasya Pranashyati. (3)
Yastvamudaka Madhye Tu Dhritva Pujayate Narah.
Visphotaka Bhayam Ghoram Grihe Tasya Na Jayate. (4)
Sheetale Jvara Dagdhasya Putigandhayutasya Cha.
Pranashtachakshushah Pusas Tvamahu Jeevanaushadham. (5)
Sheetale Tanujam Roganrinam Harasi Dustyajan.
Visphotaka Vidirnanam Tvameka Amrita Varshini. (6)
Galagandagriha Rogah Ye Chanye Daruna Nrinam.
Tvadanudhyan Matrena Sheetale Yanti Samkshayam. (7)
Na Mantra Naushadham Tasya Paparogasya Vidyate.
Tvamekam Sheetale Dhatreem Nanyam Pashyami Devatam. (8)
Phal-Shruti:
Mrunalatantu Sadrishim Nabhihrinmadhya Samsthitam.
Yastvam Sanchintayed Devi Tasya Mrityurna Jayate. (9)
Ashtakam Sheetala Devya Yo Narah Prapathat Sada.
Visphotaka Bhayam Ghoram Grihe Tasya Na Jayate. (10)
Shrotavyam Pathitavyam Cha Shraddha Bhakti Samanvitaih.
Upasarga Vinashaya Param Swastyayanam Mahat. (11)
Sheetale Tvam Jaganmata Sheetale Tvam Jagatpita.
Sheetale Tvam Jagaddhatri Sheetalayai Namo Namah. (12)
Rasabho Gardabhashchaiva Kharo Vaishakha Nandanah.
Sheetala Vahanashchaiva Durvakandanikrintanah. (13)
Etani Khara Namani Sheetalagre Tu Yah Pathet.
Tasya Gehe Shishunam Cha Sheetala Roog Na Jayate. (14)
Sheetala Ashtakam Evam Na Deyam Yasya Kasyachit.
Daatavyam Cha Sada Tasmai Shraddha Bhakti Yutaya Vai. (15)
Shri Skanda Puranam Sheetala Ashtaka Stotram.
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श्री शीतला अष्टक स्तोत्र का अर्थ
विनियोग
ऊँ अस्य श्रीशीतला स्तोत्रस्य महादेव ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, शीतली देवता, लक्ष्मी बीजम्, भवानी शक्तिः, सर्वविस्फोटक निवृत्तये जपे विनियोगः।
इस स्तोत्र का रचनाकार महादेव ऋषि हैं, इसका छंद अनुष्टुप् है, इसकी देवता शीतला देवी हैं। इसमें लक्ष्मी का बीज मंत्र और भवानी का शक्ति तत्व है। यह स्तोत्र विस्फोटक (छोटी माता आदि रोगों) के निवारण के लिए जप करने योग्य है।
ऋष्यादि-न्यास
- श्रीमहादेव ऋषये नमः शिरसि: सिर पर महादेव ऋषि को नमन।
- अनुष्टुप् छन्दसे नमः मुखे: मुख पर अनुष्टुप् छंद को नमन।
- श्रीशीतला देवतायै नमः हृदि: हृदय में शीतला देवी को नमन।
- लक्ष्मी (श्री) बीजाय नमः गुह्ये: गुप्त स्थान में लक्ष्मी बीज को नमन।
- भवानी शक्तये नमः पादयो: पैरों में भवानी शक्ति को नमन।
- सर्व-विस्फोटक-निवृत्यर्थे जपे विनियोगाय नमः सर्वांगे: पूरे शरीर में विस्फोटक (रोग) के निवारण के लिए विनियोग।
ध्यान
ध्यायामि शीतलां देवीं, रासभस्थां दिगम्बराम्। मार्जनी-कलशोपेतां शूर्पालङ्कृत-मस्तकाम्।
मैं शीतला देवी का ध्यान करता हूँ, जो गधे पर सवार हैं, दिगम्बर (बिना वस्त्रों के) हैं। उनके हाथ में मार्जनी (झाड़ू) और कलश है तथा उनका मस्तक शूर्प (सूप) से सज्जित है।
मानसिक पूजन
- ॐ लं पृथ्वी-तत्त्वात्मकं गन्धं श्री शीतला-देवी-प्रीतये समर्पयामि नमः।
मैं शीतला देवी को प्रसन्न करने के लिए पृथ्वी तत्व से उत्पन्न सुगंध (गंध) अर्पित करता हूँ। - ॐ हं आकाश-तत्त्वात्मकं पुष्पं श्री शीतला-देवी-प्रीतये समर्पयामि नमः।
मैं शीतला देवी को प्रसन्न करने के लिए आकाश तत्व से उत्पन्न पुष्प अर्पित करता हूँ। - ॐ यं वायु-तत्त्वात्मकं धूपं श्री शीतला-देवी-प्रीतये समर्पयामि नमः।
मैं शीतला देवी को प्रसन्न करने के लिए वायु तत्व से उत्पन्न धूप अर्पित करता हूँ। - ॐ रं अग्नि-तत्त्वात्मकं दीपं श्री शीतला-देवी-प्रीतये समर्पयामि नमः।
मैं शीतला देवी को प्रसन्न करने के लिए अग्नि तत्व से उत्पन्न दीप अर्पित करता हूँ। - ॐ वं जल-तत्त्वात्मकं नैवेद्यं श्री शीतला-देवी-प्रीतये समर्पयामि नमः।
मैं शीतला देवी को प्रसन्न करने के लिए जल तत्व से उत्पन्न नैवेद्य अर्पित करता हूँ। - ॐ सं सर्व-तत्त्वात्मकं ताम्बूलं श्री शीतला-देवी-प्रीतये समर्पयामि नमः।
मैं शीतला देवी को प्रसन्न करने के लिए सभी तत्वों से उत्पन्न ताम्बूल (पान) अर्पित करता हूँ।
मन्त्र
ॐ ह्रीं श्रीं शीतलायै नमः।
(इस मंत्र का 11 बार जप करना चाहिए।)
स्तोत्र
शीतला देवी की वन्दना
ईश्वर उवाच:
मैं शीतला देवी की वंदना करता हूँ, जो गधे पर सवार हैं, बिना वस्त्रों के हैं। जिनके हाथ में झाड़ू और कलश है, और जिनका मस्तक शूर्प से अलंकृत है।
रोगों से मुक्ति के लिए
- वन्दे अहं शीतलां देवीं सर्व रोग भयापहाम्। यामासाद्य निवर्तेत विस्फोटक भयं महत्।
मैं उस शीतला देवी की वंदना करता हूँ, जो सभी रोगों और भय को दूर करती हैं। जिनकी कृपा से बड़ी से बड़ी बीमारी का भय भी समाप्त हो जाता है। - शीतले शीतले चेति यो ब्रूयाद्दारपीड़ितः। विस्फोटकभयं घोरं क्षिप्रं तस्य प्रणश्यति।
जो व्यक्ति शीतला का नाम लेकर उन्हें पुकारता है, उसकी पीड़ा और विस्फोटक का भय शीघ्र ही समाप्त हो जाता है। - यस्त्वामुदक मध्ये तु धृत्वा पूजयते नरः। विस्फोटकभयं घोरं गृहे तस्य न जायते।
जो व्यक्ति जल में आपको स्थापित कर आपकी पूजा करता है, उसके घर में विस्फोटक (रोग) का भय नहीं होता।
रोग निवारण की महिमा
- शीतले ज्वर दग्धस्य पूतिगन्धयुतस्य च। प्रनष्टचक्षुषः पुसस्त्वामाहुर्जीवनौषधम्।
शीतला देवी को जीवन रक्षक औषधि कहा गया है, जो ज्वर से पीड़ित, दुर्गंधयुक्त, और दृष्टिहीन लोगों को भी आरोग्य प्रदान करती हैं। - शीतले तनुजां रोगानृणां हरसि दुस्त्यजान्। विस्फोटक विदीर्णानां त्वमेका अमृत वर्षिणी।
हे शीतला देवी! आप रोगों को हरती हैं, जो कष्टकारी और असहनीय होते हैं। आप ही विस्फोटक रोगों से पीड़ित लोगों को अमृत प्रदान करती हैं। - गलगंडग्रहा रोगा ये चान्ये दारुणा नृणाम्। त्वदनु ध्यान मात्रेण शीतले यान्ति संक्षयम्।
जो लोग आपकी धूप मात्र से ही प्रभावित होते हैं, उनकी सभी प्रकार की बीमारियाँ शीघ्र ही समाप्त हो जाती हैं।
शीतला अष्टक का फल
- मृणालतन्तु सद्दशीं नाभिहृन्मध्य संस्थिताम्। यस्त्वां संचिन्तये द्देवि तस्य मृत्युर्न जायते।
जो व्यक्ति नाभि और हृदय के मध्य स्थित इस शीतला अष्टक का ध्यान करता है, उसकी मृत्यु नहीं होती। - अष्टकं शीतला देव्या यो नरः प्रपठेत्सदा। विस्फोटकभयं घोरं गृहे तस्य न जायते।
जो व्यक्ति इस शीतला अष्टक को सदैव पाठ करता है, उसके घर में विस्फोटक (रोग) का भय नहीं होता। - श्रोतव्यं पठितव्यं च श्रद्धा भक्ति समन्वितैः। उपसर्ग विनाशाय परं स्वस्त्ययनं महत्।
इस शीतला अष्टक को श्रद्धा और भक्ति के साथ सुनना और पाठ करना चाहिए, जिससे सभी विपत्तियाँ दूर होती हैं और सुख-शांति प्राप्त होती है।
शीतला देवी की स्तुति
- शीतले त्वं जगन्माता शीतले त्वं जगत्पिता। शीतले त्वं जगद्धात्री शीतलायै नमो नमः।
हे शीतला देवी! आप ही इस संसार की माता हैं, आप ही इस संसार की पिता हैं। आप ही इस संसार की पालनहार हैं। आपको नमस्कार है। - रासभो गर्दभश्चैव खरो वैशाख नन्दनः। शीतला वाहनश्चैव दूर्वाकन्दनिकृन्तनः।
गधा, गर्दभ, खर, और वैशाखानंदन, ये सभी शीतला देवी के वाहन माने जाते हैं। दूर्वा (घास) काटने वाला गधा, जिसे वैशाख नंदन कहते हैं, यह भी उनका वाहन है। - एतानि खर नामानि शीतलाग्रे तु यः पठेत्। तस्य गेहे शिशूनां च शीतला रूङ् न जायते।
जो व्यक्ति शीतला देवी के समक्ष इन नामों का उच्चारण करता है, उसके घर में शिशुओं को शीतला रोग नहीं होता। - **शीतला अष्टकमेवेदं न देयं यस्य कस्यचित्।
दात
व्यं च सदा तस्मै श्रद्धा भक्ति युताय वै।**
इस शीतला अष्टक को किसी भी व्यक्ति को नहीं देना चाहिए। इसे केवल उसे ही देना चाहिए, जो श्रद्धा और भक्ति से युक्त हो।
शीतला अष्टक स्तोत्र की महत्ता
शीतला देवी का परिचय
शीतला देवी हिंदू धर्म में प्रमुख देवी हैं, जिन्हें बीमारियों से रक्षा करने वाली देवी के रूप में पूजा जाता है। शीतला देवी विशेष रूप से चेचक (छोटी माता) और अन्य संक्रामक बीमारियों के निवारण के लिए पूजनीय हैं। उन्हें आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति में जीवन रक्षक औषधि के रूप में माना जाता है। शीतला अष्टक स्तोत्र उनकी आराधना का एक महत्वपूर्ण स्तोत्र है, जो शीतला देवी की कृपा प्राप्त करने और रोगों से मुक्ति पाने के लिए जपा जाता है।
शीतला अष्टक स्तोत्र का उद्देश्य
शीतला अष्टक स्तोत्र का उद्देश्य सभी प्रकार के विस्फोटक रोगों, जैसे कि छोटी माता, चेचक, ज्वर, गलगंड आदि बीमारियों से मुक्ति दिलाना है। इस स्तोत्र के नियमित पाठ से व्यक्ति अपने परिवार और समाज को इन रोगों से सुरक्षित रख सकता है।
शीतला अष्टक स्तोत्र का पठन विधि
सुबह-शाम का समय
शीतला अष्टक स्तोत्र का पठन सुबह और शाम दोनों समय किया जा सकता है। सुबह के समय इस स्तोत्र का पाठ करने से दिन भर की सुरक्षा प्राप्त होती है, जबकि शाम को पठन करने से रात में भी देवी की कृपा बनी रहती है।
स्नान और पवित्रता का महत्व
इस स्तोत्र का पठन करते समय स्नान करके पवित्र होना आवश्यक है। पवित्र वस्त्र धारण करके, शीतला देवी की मूर्ति या चित्र के समक्ष दीपक जलाकर, यह स्तोत्र पूरे श्रद्धा और विश्वास के साथ पढ़ना चाहिए।
मंत्र जाप की विधि
शीतला अष्टक स्तोत्र के पहले ॐ ह्रीं श्रीं शीतलायै नमः मंत्र का 11 बार जाप करना चाहिए। इसके बाद पूरे स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। इससे देवी की कृपा शीघ्र प्राप्त होती है।
शीतला अष्टक स्तोत्र के पाठ से लाभ
रोगों से मुक्ति
शीतला अष्टक स्तोत्र के पाठ से व्यक्ति को विस्फोटक और अन्य संक्रामक बीमारियों से मुक्ति मिलती है। विशेषकर, जो बच्चे चेचक और अन्य त्वचा संबंधी रोगों से पीड़ित होते हैं, उनके लिए यह स्तोत्र अति प्रभावी है।
मानसिक शांति और स्थिरता
इस स्तोत्र के नियमित पाठ से मानसिक शांति और स्थिरता प्राप्त होती है। व्यक्ति के मन में भय और चिंता का नाश होता है, और वह अपने कार्यों में सफल होता है।
परिवार की सुरक्षा
इस स्तोत्र का पठन करने से परिवार के सभी सदस्यों की सुरक्षा होती है। देवी की कृपा से घर में सुख-शांति बनी रहती है और किसी भी प्रकार की बीमारी का प्रवेश नहीं होता।
शीतला अष्टक स्तोत्र से संबंधित विशेष नियम
- श्रद्धा और भक्ति: इस स्तोत्र का पाठ श्रद्धा और भक्ति के साथ करना चाहिए। बिना श्रद्धा के पाठ करने से इसका प्रभाव नहीं होता।
- सात्विक आहार: इस स्तोत्र का पाठ करने वाले को सात्विक आहार लेना चाहिए और मांसाहार, मद्यपान आदि से दूर रहना चाहिए।
- विशेष दिनों में पाठ: विशेष रूप से वैशाख मास के सोमवार को इस स्तोत्र का पाठ करना अत्यंत लाभकारी होता है। इस दिन शीतला माता की पूजा का विशेष महत्व होता है।
शीतला अष्टक स्तोत्र का समापन
शीतला अष्टक स्तोत्र का पाठ करने के बाद “शीतला माता की जय” का जयकारा लगाना चाहिए। इसके बाद, माता को भोग अर्पित करना चाहिए और भक्तों में प्रसाद का वितरण करना चाहिए। इस प्रकार, शीतला अष्टक स्तोत्र का समापन करना चाहिए।
शीतला माता की कृपा सभी भक्तों पर बनी रहे और सभी प्रकार के रोगों से मुक्ति मिले, इसी प्रार्थना के साथ शीतला अष्टक स्तोत्र का पाठ करना चाहिए।