जय देवी जय देवी जय शांते जननी ।
दुर्गे बहुदु:खदमने रतलो तव भजनी ॥
भूकैलासा ऐसी ही कवला नगरी ।
शांतादुर्गा तेथे भक्तभवहारी ।
असुराते मर्दुनिया सुरवरकैवारी ।
स्मरती विधीहरीशंकर सुरगण अंतरी ।
जय देवी जय देवी जय शांते जननी ।
दुर्गे बहुदु:खदमने रतलो तव भजनी ॥
प्रबोध तुझा नव्हे विश्वाभीतरी ।
नेति नेति शब्दे गर्जती पै चारी ।
साही शास्त्रे मथिता न कळीसी निर्धारी ।
अष्टादश गर्जती परी नेणती तव थोरी ।
जय देवी जय देवी जय शांते जननी ।
दुर्गे बहुदु:खदमने रतलो तव भजनी ॥
कोटी मदन रूपा ऐसी मुखशोभा ।
सर्वांगी भूषणे जांबूनदगाभा ।
नासाग्री मुक्ताफळ दिनमणीची प्रभा ।
भक्तजनाते अभय देसी तू अंबा ।
जय देवी जय देवी जय शांते जननी ।
दुर्गे बहुदु:खदमने रतलो तव भजनी ॥
अंबे भक्तांसाठी होसी साकार ।
नातरी जगजीवन तू नव्हसी गोचर ।
विराटरूपा धरूनी करीसी व्यापार ।
त्रिगुणी विरहीत सहीत तुज कैचा पार ।
जय देवी जय देवी जय शांते जननी ।
दुर्गे बहुदु:खदमने रतलो तव भजनी ॥
त्रितापतापे श्रमलो निजवी निजसदनी ।
अंबे सकळारंभे राका शशीवदनी ।
अगमे निगमे दुर्गे भक्तांचे जननी ।
पद्माजी बाबाजी रमला तव भजनी ।
जय देवी जय देवी जय शांते जननी ।
दुर्गे बहुदु:खदमने रतलो तव भजनी ॥
श्री शांतादुर्गेची आरती
जय देवी जय देवी जय शांते जननी
शब्दार्थ: “जय देवी” का अर्थ है देवी को विजय प्राप्त हो, “जय शांते जननी” में देवी शांतादुर्गा को जननी (माँ) के रूप में स्तुति की जाती है।
इस पंक्ति में माँ शांतादुर्गा को जननी (माँ) के रूप में श्रद्धा और आदर के साथ पूजा जाता है। यह उनके आशीर्वाद और कृपा के प्रति समर्पण व्यक्त करता है।
दुर्गे बहुदु:खदमने रतलो तव भजनी
शब्दार्थ: दुर्गे का अर्थ है दुर्गा देवी, जो संकट और दुःखों को नष्ट करने वाली हैं। “बहुदु:खदमने” का मतलब है, जो अनेक दुःखों का नाश करती हैं, और “रतलो तव भजनी” में भक्त देवी के भजन में लीन रहता है।
इस पंक्ति में देवी को आह्वान किया गया है कि वे भक्तों के जीवन से सभी दुःखों और संकटों का नाश करें। उनके भजनों में लीन होकर व्यक्ति की आत्मा भी दुःखों से मुक्ति पाती है।
भूकैलासा ऐसी ही कवला नगरी
शब्दार्थ: भूकैलासा का अर्थ है पृथ्वी पर स्थित कैलाश पर्वत, जो दिव्य स्थान के रूप में जाना जाता है। “कवला नगरी” में कवला एक पवित्र स्थान को दर्शाता है, जहाँ शांतादुर्गा का निवास माना जाता है।
इस पंक्ति में कहा गया है कि जिस प्रकार कैलाश पर्वत भगवान शिव का निवास है, उसी प्रकार यह नगरी देवी शांतादुर्गा का निवास है। यह स्थान भक्तों के लिए दिव्य और पवित्र माना जाता है।
शांतादुर्गा तेथे भक्तभवहारी
शब्दार्थ: शांतादुर्गा, भक्तों के लिए भव (दुनिया) के दुःखों का हरण करने वाली देवी हैं।
इस पंक्ति में यह बताया गया है कि देवी शांतादुर्गा भक्तों के सारे दुःखों का हरण करती हैं और उन्हें संसार के बंधनों से मुक्ति दिलाती हैं।
असुराते मर्दुनिया सुरवरकैवारी
शब्दार्थ: “असुराते मर्दुनिया” का अर्थ है असुरों (राक्षसों) का मर्दन करने वाली, और “सुरवरकैवारी” का अर्थ है देवताओं की रक्षक।
यह पंक्ति देवी की शक्ति और वीरता को उजागर करती है कि कैसे वे असुरों का नाश करती हैं और देवताओं की रक्षक बनकर सदा उनके साथ खड़ी रहती हैं।
स्मरती विधीहरीशंकर सुरगण अंतरी
शब्दार्थ: “विधी” का मतलब है ब्रह्मा, “हरी” का अर्थ है विष्णु, और “शंकर” का अर्थ शिव। सुरगण अंतरी में “सुरगण” का मतलब है देवताओं का समूह।
यह पंक्ति बताती है कि देवी शांतादुर्गा को ब्रह्मा, विष्णु और शिव जैसे प्रमुख देवता भी स्मरण करते हैं। देवी सभी देवताओं के लिए पूज्य हैं और उनके हृदय में स्थान रखती हैं।
जय देवी जय देवी जय शांते जननी
इस पंक्ति को दोहराकर भक्त अपनी भक्ति और श्रद्धा को प्रकट करता है। यह आरती के दौरान श्रद्धालुओं द्वारा बार-बार उच्चारित किया जाता है ताकि देवी की महिमा और शक्ति का गान हो।
प्रबोध तुझा नव्हे विश्वाभीतरी
शब्दार्थ: “प्रबोध तुझा नव्हे” का अर्थ है तेरा ज्ञान दुनिया की समझ से परे है, “विश्वाभीतरी” का मतलब है पूरे विश्व के भीतर।
इस पंक्ति में देवी के ज्ञान और समझ की महानता को बताया गया है कि देवी का ज्ञान और बोध इतना गहरा है कि वह सम्पूर्ण सृष्टि की सीमाओं से परे है।
नेति नेति शब्दे गर्जती पै चारी
शब्दार्थ: “नेति नेति” का अर्थ है “यह नहीं है, यह नहीं है,” जो उपनिषदों में ब्रह्म के असीम और अनजाने स्वरूप को इंगित करने के लिए कहा गया है। “गर्जती पै चारी” का अर्थ है चारों ओर गूँजती आवाज़।
यह पंक्ति यह दर्शाती है कि देवी की महानता और उनके रूप का पूर्ण रूप से वर्णन करना असंभव है। उपनिषदों के “नेति नेति” शब्द उनके असीम और अनजाने स्वरूप को उजागर करते हैं।
साही शास्त्रे मथिता न कळीसी निर्धारी
शब्दार्थ: “साही शास्त्रे” का अर्थ है सभी शास्त्रों का मंथन किया गया, लेकिन “न कळीसी निर्धारी” में बताया गया है कि देवी का पूर्ण रूप समझ में नहीं आता है।
इस पंक्ति में यह स्पष्ट होता है कि सभी शास्त्र और ग्रंथ देवी की महिमा का वर्णन करने का प्रयास करते हैं, लेकिन देवी की सम्पूर्णता को समझ पाना किसी के बस की बात नहीं है।
अष्टादश गर्जती परी नेणती तव थोरी
शब्दार्थ: “अष्टादश” का मतलब अठारह, जो मुख्य पुराणों की संख्या है। “गर्जती परी नेणती तव थोरी” का मतलब है गर्जन के बावजूद वे तुम्हारी महानता का पूर्ण रूप नहीं समझ पाते।
यह पंक्ति कहती है कि अठारह पुराणों में देवी की महिमा का गान है, लेकिन फिर भी वे देवी की सम्पूर्ण महत्ता को व्यक्त करने में असमर्थ हैं।
जय देवी जय देवी जय शांते जननी
इस पंक्ति की पुनरावृत्ति आरती के दौरान देवी को बार-बार स्मरण और सम्मान देने के लिए की जाती है, जिससे भक्त अपने समर्पण को व्यक्त करते हैं और देवी से आशीर्वाद की याचना करते हैं।
कोटी मदन रूपा ऐसी मुखशोभा
शब्दार्थ: “कोटी मदन रूपा” का अर्थ है देवी का रूप लाखों कामदेवों की तरह मनोहारी है, और “ऐसी मुखशोभा” का मतलब है देवी का मुखमंडल अत्यंत सुंदर और आकर्षक है।
इस पंक्ति में देवी के रूप और सुंदरता का वर्णन किया गया है। उनके मुख की शोभा और आकर्षण कामदेव से भी अधिक है, जिससे उनके सौंदर्य की अपार महिमा का पता चलता है।
सर्वांगी भूषणे जांबूनदगाभा
शब्दार्थ: “सर्वांगी भूषणे” का अर्थ है देवी का संपूर्ण शरीर आभूषणों से सुसज्जित है। “जांबूनदगाभा” का मतलब है सोने की आभा लिए हुए।
इस पंक्ति में देवी के अलंकारों और उनके दिव्य रूप की सुंदरता को दर्शाया गया है। उनका शरीर सुनहरे आभूषणों से अलंकृत है, जो उनकी दिव्यता को और भी बढ़ाता है।
नासाग्री मुक्ताफळ दिनमणीची प्रभा
शब्दार्थ: “नासाग्री मुक्ताफळ” का अर्थ है नाक पर लगा हुआ मोती, और “दिनमणीची प्रभा” का मतलब है सूर्य के समान चमक।
इस पंक्ति में देवी की सौंदर्यता का एक और विवरण दिया गया है कि उनकी नासिका पर मोती चमक रहा है, जिसकी आभा सूर्य की किरणों के समान है, जो देवी की दिव्य आभा को और बढ़ाता है।
भक्तजनाते अभय देसी तू अंबा
शब्दार्थ: “भक्तजनाते” का अर्थ है भक्तजन, “अभय देसी” का मतलब है अभय प्रदान करना, और “तू अंबा” में अंबा देवी का संबोधन है।
यह पंक्ति बताती है कि देवी अपने भक्तों को सुरक्षा और निर्भीकता का आशीर्वाद देती हैं। वे उन सभी को निर्भयता प्रदान करती हैं जो उनकी शरण में आते हैं।
जय देवी जय देवी जय शांते जननी
इस पंक्ति को पुनः दोहराकर भक्त अपने मन में देवी के प्रति असीम श्रद्धा और प्रेम को प्रदर्शित करता है।
अंबे भक्तांसाठी होसी साकार
शब्दार्थ: “अंबे” का अर्थ है माँ, और “भक्तांसाठी होसी साकार” का मतलब है अपने भक्तों के लिए साकार रूप धारण करना।
यह पंक्ति बताती है कि देवी अपने भक्तों के लिए साकार रूप में प्रकट होती हैं। जब भक्त सच्चे मन से देवी का आह्वान करते हैं, तो वे भक्तों के सामने साकार होकर उनकी सहायता करती हैं।
नातरी जगजीवन तू नव्हसी गोचर
शब्दार्थ: “नातरी जगजीवन” का अर्थ है इस संसार की जननी और जीवन का स्रोत, “तू नव्हसी गोचर” का मतलब है तुम अदृश्य रहती हो।
इस पंक्ति में देवी के मायावी रूप का वर्णन है। वे इस जगत का आधार हैं, लेकिन फिर भी मानव की आंखों से परे अदृश्य हैं। वे सृष्टि का संचालन करती हैं परन्तु साकार रूप में प्रकट नहीं होतीं।
विराटरूपा धरूनी करीसी व्यापार
शब्दार्थ: “विराटरूपा धरूनी” का अर्थ है विराट रूप धारण करना, और “करीसी व्यापार” का मतलब है संसार का संचालन करना।
इस पंक्ति में देवी के विराट स्वरूप का उल्लेख किया गया है। वे पूरे ब्रह्मांड का संचालन करती हैं और अपनी शक्ति से सभी घटनाओं को नियंत्रित करती हैं।
त्रिगुणी विरहीत सहीत तुज कैचा पार
शब्दार्थ: “त्रिगुणी” का अर्थ है तीन गुण (सत्व, रज और तम), “विरहीत सहीत” का मतलब है इनसे परे, और “तुज कैचा पार” का अर्थ है तेरी महिमा का पार पाना असंभव है।
इस पंक्ति में देवी को इन तीन गुणों से परे बताया गया है। उनकी शक्ति और महिमा इतनी बड़ी है कि किसी के लिए भी उसे समझ पाना या पार पाना असंभव है।
जय देवी जय देवी जय शांते जननी
इस पंक्ति की पुनरावृत्ति में देवी को सादर स्मरण करते हुए भक्त अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हैं।
त्रितापतापे श्रमलो निजवी निजसदनी
शब्दार्थ: “त्रितापतापे” का अर्थ है तीन प्रकार के ताप (शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक), “निजवी निजसदनी” का मतलब है उन्हें अपने निवास स्थान पर शांति मिले।
इस पंक्ति में भक्त देवी से प्रार्थना कर रहे हैं कि उन्हें संसार की तीनों प्रकार की समस्याओं और कष्टों से मुक्ति मिले, और वे अपने हृदय के निवास स्थान में शांति प्राप्त करें।
अंबे सकळारंभे राका शशीवदनी
शब्दार्थ: “सकळारंभे” का अर्थ है सभी कार्यों में, और “राका शशीवदनी” का मतलब है पूर्णिमा के चंद्रमा के समान मुख वाली।
यह पंक्ति देवी के मुखमंडल की सुंदरता को चंद्रमा की तरह शीतल और सौम्य बताती है, जो सभी कार्यों में शुभता लाती है।
अगमे निगमे दुर्गे भक्तांचे जननी
शब्दार्थ: “अगमे निगमे” का अर्थ है वेद और शास्त्र, और “दुर्गे भक्तांचे जननी” का मतलब है भक्तों की जननी।
इस पंक्ति में देवी को सभी वेद और शास्त्रों में पूजनीय बताया गया है। वे सभी भक्तों की माता हैं और उनके लिए सबसे पवित्र देवी मानी जाती हैं।
पद्माजी बाबाजी रमला तव भजनी
शब्दार्थ: “पद्माजी बाबाजी” भक्त के रूप में उनकी स्तुति करते हैं, और “रमला तव भजनी” का अर्थ है उनके भजन में रम गए।
यह पंक्ति आरती का अंत करते हुए पद्माजी बाबाजी के श्रद्धापूर्ण समर्पण को दर्शाती है, जिन्होंने अपने मन को देवी के भजन में लीन कर दिया है और उनकी आराधना में तल्लीन हैं।
जय देवी जय देवी जय शांते जननी
इस अंतिम पंक्ति में भक्त देवी को बार-बार स्मरण और उनकी महिमा का गान करते हुए आरती को समाप्त करते हैं, जिससे देवी की महिमा और शक्ति को अंत में सुदृढ़ किया जाता है।