दुर्गा पूजा पुष्पांजली in Hindi/Sanskrit
प्रथम पुष्पांजली मंत्र
ॐ जयन्ती, मङ्गला, काली, भद्रकाली, कपालिनी ।
दुर्गा, शिवा, क्षमा, धात्री, स्वाहा, स्वधा नमोऽस्तु ते॥
एष सचन्दन गन्ध पुष्प बिल्व पत्राञ्जली ॐ ह्रीं दुर्गायै नमः॥
द्वितीय पुष्पांजली मंत्र
ॐ महिषघ्नी महामाये चामुण्डे मुण्डमालिनी ।
आयुरारोग्यविजयं देहि देवि! नमोऽस्तु ते ॥
एष सचन्दन गन्ध पुष्प बिल्व पत्राञ्जली ॐ ह्रीं दुर्गायै नमः ॥
तृतीया पुष्पांजली मंत्र
ॐ सर्व मङ्गल माङ्गल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके ।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरी नारायणि नमोऽस्तु ते ॥१॥
सृष्टि स्थिति विनाशानां शक्तिभूते सनातनि ।
गुणाश्रये गुणमये नारायणि! नमोऽस्तु ते ॥२॥
शरणागत दीनार्त परित्राण परायणे ।
सर्वस्यार्तिहरे देवि! नारायणि! नमोऽस्तु ते ॥३॥
Durga Puja Pushpanjali in English
Pratham Pushpanjali Mantra
Om Jayanti, Mangala, Kali, Bhadrakali, Kapalini.
Durga, Shiva, Kshama, Dhatri, Swaha, Swadha Namo’stu Te.
Esha Sachandan Gandha Pushpa Bilva Patranjali Om Hrim Durgayai Namah.
Dvitiy Pushpanjali Mantra
Om Mahishaghni Mahamaye Chamunde Mundamalini.
Ayurarogyavijayam Dehi Devi! Namo’stu Te.
Esha Sachandan Gandha Pushpa Bilva Patranjali Om Hrim Durgayai Namah.
Tritiy Pushpanjali Mantra
Om Sarva Mangala Mangalye Shive Sarvartha Sadhike.
Sharanye Tryambake Gauri Narayani Namo’stu Te. (1)
Srishti Sthiti Vinashanam Shaktibhute Sanatani.
Gunashraye Gunamaye Narayani! Namo’stu Te. (2)
Sharanya Dinartha Paritran Parayane.
Sarvasyartihare Devi! Narayani! Namo’stu Te. (3)
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दुर्गा पूजा पुष्पांजली का अर्थ
“ॐ जयन्ती, मङ्गला, काली, भद्रकाली, कपालिनी ।
दुर्गा, शिवा, क्षमा, धात्री, स्वाहा, स्वधा नमोऽस्तु ते॥”
इस चौपाई में देवी के विभिन्न रूपों का आवाहन किया गया है। देवी दुर्गा के कई नामों का उल्लेख है, जैसे:
- जयन्ती – वह जो हमेशा विजयशाली रहती हैं।
- मङ्गला – शुभ और कल्याणकारी।
- काली – काली वह स्वरूप हैं जो समय का अंत करती हैं, और इस संसार के विनाश की द्योतक हैं।
- भद्रकाली – वह जो कल्याणकारी रूप में काली हैं।
- कपालिनी – कपाल धारण करने वाली, जो सभी असुरों का नाश करती हैं।
- दुर्गा – दुष्टों का नाश करने वाली।
- शिवा – शिव की पत्नी और शक्ति, साथ ही कल्याणकारी।
- क्षमा – क्षमाशील, सभी को क्षमा प्रदान करने वाली।
- धात्री – पालन करने वाली, सृष्टि का भरण-पोषण करने वाली।
- स्वाहा – यज्ञ में आहुतियों को स्वीकार करने वाली शक्ति।
- स्वधा – पितरों के लिए समर्पित आहुतियों को स्वीकार करने वाली।
इस मंत्र के माध्यम से साधक देवी दुर्गा को समर्पण भाव से नमन करते हैं। वे देवी के हर स्वरूप का आह्वान कर उनसे जीवन में विजय, सुख और कल्याण की कामना करते हैं।
“एष सचन्दन गन्ध पुष्प बिल्व पत्राञ्जली ॐ ह्रीं दुर्गायै नमः॥”
इस वाक्यांश में, साधक देवी दुर्गा को चंदन, पुष्प और बिल्व पत्र अर्पित करते हुए नमन करते हैं।
“ॐ महिषघ्नी महामाये चामुण्डे मुण्डमालिनी ।
आयुरारोग्यविजयं देहि देवि! नमोऽस्तु ते ॥”
इस मंत्र में देवी के महाशक्ति रूप का वर्णन किया गया है:
- महिषघ्नी – वह जो महिषासुर का वध करने वाली हैं। यह देवी दुर्गा के शक्ति स्वरूप की ओर संकेत करता है।
- महामाया – वह जो माया की अधिष्ठात्री हैं, जो इस जगत की रचना, स्थिति और संहार करती हैं।
- चामुण्डा – यह स्वरूप महाकाली का है जिन्होंने चंड और मुंड नामक असुरों का संहार किया था।
- मुण्डमालिनी – मुंडों की माला धारण करने वाली, यह देवी के संहारक रूप की ओर संकेत करता है।
साधक इस मंत्र के माध्यम से देवी से आयु, आरोग्य और विजय की कामना करते हैं। साधक देवी को प्रणाम कर उनसे जीवन में शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक कल्याण की प्रार्थना करता है।
“एष सचन्दन गन्ध पुष्प बिल्व पत्राञ्जली ॐ ह्रीं दुर्गायै नमः॥”
यहां पर फिर से साधक देवी को चंदन, पुष्प और बिल्व पत्र अर्पित करते हुए उनकी कृपा की कामना करता है।
चौपाई 1:
“ॐ सर्व मङ्गल माङ्गल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके ।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरी नारायणि नमोऽस्तु ते ॥”
यह चौपाई देवी के मंगलकारी स्वरूप का वर्णन करती है। देवी को सर्व मङ्गल माङ्गल्ये कहा गया है, यानी वह जो सभी प्रकार के कल्याणों की अधिष्ठात्री हैं।
- शिवे – वह जो शुभ हैं, जो हर व्यक्ति के जीवन में कल्याण और शांति लाती हैं।
- सर्वार्थ साधिके – सभी कार्यों को सिद्ध करने वाली।
- शरण्ये – शरण में आने वाले भक्तों की रक्षा करने वाली।
- त्र्यम्बके – तीन नेत्रों वाली देवी, जो शक्ति, भक्ति और ज्ञान की अधिष्ठात्री हैं।
- गौरी – उज्जवल रूप वाली, शिव की पत्नी और शक्ति।
- नारायणि – विष्णु की शक्ति के रूप में प्रतिष्ठित देवी, जो संसार की पालनहार हैं।
साधक इस चौपाई में देवी को नमन करते हुए उनसे जीवन के हर कार्य में सफलता की कामना करता है और उनसे शरण में आने की विनती करता है।
चौपाई 2:
“सृष्टि स्थिति विनाशानां शक्तिभूते सनातनि ।
गुणाश्रये गुणमये नारायणि! नमोऽस्तु ते ॥”
इस चौपाई में देवी की महाशक्ति का वर्णन किया गया है। वे सृष्टि, स्थिति और विनाश की शक्ति हैं।
- सृष्टि स्थिति विनाशानां शक्तिभूते – देवी वह शक्ति हैं जो सृष्टि की रचना, उसे बनाए रखने और अंत में उसके विनाश की कारक हैं।
- सनातनि – शाश्वत, अनादि और अनंत देवी।
- गुणाश्रये – गुणों का आश्रय लेने वाली, जहां से सारा सृजन और गुण प्रकट होते हैं।
- गुणमये – गुणों से पूर्ण, जिसमें सत्व, रजस और तमस तीनों गुण विद्यमान हैं।
- नारायणि – विष्णु की शक्ति, जो संसार के पालन और रक्षण की जिम्मेदारी संभालती हैं।
इस चौपाई के माध्यम से साधक देवी से संसार के समस्त कार्यों के सुचारू रूप से संचालित होने की प्रार्थना करता है।
चौपाई 3:
“शरणागत दीनार्त परित्राण परायणे ।
सर्वस्यार्तिहरे देवि! नारायणि! नमोऽस्तु ते ॥”
यह चौपाई उन भक्तों के लिए है जो जीवन में संकट और दुखों का सामना कर रहे हैं:
- शरणागत – जो भक्त देवी की शरण में आते हैं।
- दीनार्त – जो दुखी और कष्ट में हैं।
- परित्राण परायणे – जो भक्तों के दुखों का निवारण करती हैं।
- सर्वस्यार्तिहरे – सभी प्रकार के कष्टों को हरने वाली देवी।
- नारायणि – वह जो सभी को शरण देती हैं और संसार की पालक हैं।
साधक इस चौपाई में देवी से अपने जीवन के सभी कष्टों का निवारण करने और उन्हें शरण देने की प्रार्थना करता है।