निर्जला एकादशी कथा in Hindi/Sanskrit
निर्जला एकादशी, जिसे भीमसेनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू धर्म में सबसे कठिन व्रतों में से एक है। इस दिन, भक्त न केवल भोजन बल्कि जल ग्रहण से भी दूर रहते हैं। निर्जला एकादशी की कथा महाभारत के वीर भीमसेन से जुड़ी हुई है।
भीम की विवशता
कथा के अनुसार, पांडवों में सबसे बलशाली भीमसेन को स्वादिष्ट भोजन का बहुत शौक था। उनकी भूख इतनी तीव्र थी कि वह एकादशी के दिन भी उपवास नहीं कर पाते थे। वहीं, उनके भाई युधिष्ठिर, माता कुंती, द्रौपदी, अर्जुन, नकुल और सहदेव पूरे साल श्रद्धापूर्वक एकादशी का व्रत रखते थे।
एक समय, भीम अपनी इस असमर्थता से बहुत परेशान हो गए। उन्हें लगता था कि वह एकादशी का व्रत न रखकर भगवान विष्णु का अपमान कर रहे हैं। अपनी पीड़ा दूर करने के लिए उन्होंने अपने बड़े पितामह वेद व्यास जी से सलाह ली।
वेद व्यास जी का उपदेश
भीम की व्यथा सुनकर, वेद व्यास जी ने उन्हें समझाया, “हे भीमसेन! यदि तुम नरक को बुरा और स्वर्ग को अच्छा मानते हो तो प्रत्येक मास की दोनों एकादशियों को अन्न ग्रहण मत करो।”
भीमसेन ने जवाब दिया, “हे पितामह! मैं आपसे सच कहता हूं, मुझसे एक बार भोजन किए बिना भी व्रत नहीं किया जाता, तो फिर उपवास करके मैं कैसे रह सकता हूं? मेरे शरीर में ‘वृक’ नामक अग्नि सदा प्रज्वलित रहती है। जब मैं बहुत खाता हूं, तभी यह शांत होती है।”
भीम को सरल उपाय
भीम की भूख को देखते हुए वेद व्यास जी ने उन्हें एक सरल उपाय सुझाया। उन्होंने कहा, “हे पुत्र!
- वर्ष में एक बार निर्जला एकादशी का व्रत रखें: शास्त्रों में एक वर्ष में केवल एक ही दिन निर्जला एकादशी का व्रत रखने का विधान है। इस व्रत के पुण्य से पूरे वर्ष की एकादशियों का फल प्राप्त होता है।
- पापों से मुक्ति: निर्जला एकादशी का व्रत रखने से व्यक्ति को सभी पापों से मुक्ति मिलती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
- भगवान विष्णु की कृपा: निर्जला एकादशी का व्रत भगवान विष्णु को प्रसन्न करने का एक उत्तम तरीका है। इस व्रत को रखने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है।
निष्कर्ष: भीमसेनी एकादशी का व्रत कठिन जरूर है, लेकिन इसकी महिमा अपार है। यदि आप इस व्रत को रखने का संकल्प करते हैं, तो आपको निश्चित रूप से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होगी।
निर्जला एकादशी कथा Video
Nirjala Ekadashi Vrat Vidhi in English
Nirjala Ekadashi, also known as Bhimseni Ekadashi, is considered one of the most challenging fasts in Hinduism. On this day, devotees abstain not only from food but also from water. The story of Nirjala Ekadashi is associated with the powerful Bhima from the Mahabharata.
Bhima’s Dilemma
According to the story, Bhima, the strongest among the Pandavas, was extremely fond of delicious food. His appetite was so great that he found it impossible to fast, even on Ekadashi. Meanwhile, his brothers Yudhishthira, Arjuna, Nakula, Sahadeva, and Draupadi, along with their mother Kunti, observed the Ekadashi fasts with great devotion throughout the year.
At one point, Bhima became troubled by his inability to fast. He felt he was disrespecting Lord Vishnu by not observing Ekadashi. To find a solution, he approached his wise and respected granduncle, Ved Vyas.
Ved Vyas’s Advice
Hearing Bhima’s concern, Ved Vyas explained, “Oh Bhimasena! If you consider hell undesirable and heaven desirable, then abstain from eating on both Ekadashis of each month.”
Bhima responded, “Oh Grandfather! I speak truthfully to you; I am unable to fast even for a single day without food, so how can I observe fasts on Ekadashi? There is a fire called ‘Vrika’ within my body that always burns. It is only pacified when I eat sufficiently.”
A Simple Solution for Bhima
Understanding Bhima’s strong appetite, Ved Vyas offered him a simple solution. He said, “Oh son!
Observe Nirjala Ekadashi once a year: According to the scriptures, observing the Nirjala Ekadashi fast just once a year is equivalent to observing all Ekadashis of the year. By observing this fast, one earns the merit of all the year’s Ekadashis.
Liberation from sins: Observing the Nirjala Ekadashi fast grants freedom from all sins and leads to the attainment of moksha (liberation).
Blessings of Lord Vishnu: Nirjala Ekadashi is a powerful way to please Lord Vishnu. By observing this fast, one can receive the grace and blessings of Lord Vishnu.
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निर्जला एकादशी व्रत कब है
निर्जला एकादशी 2025 में शुक्रवार, 6 जून को मनाई जाएगी। यह व्रत ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को रखा जाता है। इस दिन भक्तगण भगवान विष्णु की पूजा करते हैं और सूर्योदय से अगले दिन द्वादशी तिथि के सूर्योदय तक जल और भोजन का त्याग करते हैं। इस व्रत को करने से वर्ष भर की सभी एकादशियों का पुण्य प्राप्त होता है।
निर्जला एकादशी 2025 के महत्वपूर्ण समय:
- एकादशी तिथि प्रारंभ: 6 जून 2025 को प्रातः 2:15 बजे
- एकादशी तिथि समाप्त: 7 जून 2025 को प्रातः 4:47 बजे
निर्जला एकादशी व्रत का पारण कब है
निरजला एकादशी व्रत 2025 में 6 जून, शुक्रवार को मनाया जाएगा। इस व्रत का पारण (व्रत तोड़ने का समय) 7 जून, शनिवार को दोपहर 1:43 बजे से 4:30 बजे के बीच है। पारण के दिन हरि वासर का समापन सुबह 11:28 बजे होगा।
निरजला एकादशी व्रत का पालन करते समय, पारण का समय विशेष महत्व रखता है। हरि वासर के दौरान पारण नहीं करना चाहिए; इसलिए, हरि वासर समाप्त होने के बाद ही पारण करना उचित माना जाता है। हरि वासर एकादशी तिथि के अंतिम चरण को संदर्भित करता है, जो द्वादशी तिथि के पहले एक चौथाई तक रहता है।
कृपया ध्यान दें कि पारण का समय स्थान के अनुसार भिन्न हो सकता है। उपरोक्त समय नई दिल्ली, भारत के लिए है। अपने स्थान के अनुसार सटीक पारण समय जानने के लिए स्थानीय पंचांग या विश्वसनीय ज्योतिषीय स्रोतों की सलाह लें।
निर्जला एकादशी व्रत विधि (Nirjala Ekadashi Vrat Vidhi)
निर्जला एकादशी, जिसे भीमसेनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है, एक कठिन व्रत है, लेकिन इसकी विधि काफी सरल है। यहां विधि के चरणों को विस्तार से बताया गया है:
तैयारी (Preparation)
- दशमी तिथि (Dashami Tithi): निर्जला एकादशी से एक दिन पहले यानी दशमी तिथि को सात्विक भोजन ग्रहण करें। मांस, मछली, लहसुन और प्याज का सेवन न करें।
- सूर्योदय से पहले उठें (Rise Before Sunrise): निर्जला एकादशी के दिन सूर्योदय से पहले उठें। स्नान कर के स्वच्छ और धुले हुए वस्त्र धारण करें।
पूजा (Worship)
- संकल्प लें (Take Sankalpa): पूजा स्थल को साफ करें और एक चौकी या आसन पर बैठ जाएं। भगवान विष्णु का ध्यान करें और व्रत का संकल्प लें। संकल्प लेते समय इस बात का ध्यान रखें कि आप अगले दिन द्वादशी तिथि पर ही व्रत का पारण करेंगी।
- भगवान विष्णु की पूजा (Worship Lord Vishnu): पूजा स्थल पर गंगाजल छिड़कें और फिर भगवान विष्णु की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें।
- अभिषेक (Abhishek): भगवान विष्णु का पंचामृत ( दूध, दही, घी, शहद और शक्कर का मिश्रण) या गंगाजल से अभिषेक करें।
- आसन (Offerings): भगवान विष्णु को तुलसी दल, फल और फूल अर्पित करें। धूप और दीप जलाएं। भगवान विष्णु को भोग लगाएं (आप उन्हें फल या जल का भोग लगा सकते हैं)।
- आरती (Aarti): श्रद्धापूर्वक भगवान विष्णु की आरती करें।
- निर्जला एकादशी व्रत कथा (Nirjala Ekadashi Vrat Katha): निर्जला एकादशी की कथा पढ़ें या सुनें। कथा सुनने के बाद भगवान विष्णु का ध्यान करें और उन्हें व्रत को पूर्ण करने की कृपा देने की प्रार्थना करें।
व्रत का पालन (Observing the Vrat)
- निर्जला रहें (Stay Nirjala): निर्जला एकादशी के पूरे दिन जल ग्रहण न करें। अन्न और किसी भी प्रकार का भोजन भी ग्रहण न करें।
- मन को शुद्ध रखें (Keep Your Mind Pure): इस दिन क्रोध, लोभ, मोह आदि नकारात्मक भावों से दूर रहें। सत्संग करें और ईश्वर चिन्तन में लीन रहें।
व्रत का पारण (Parana)
- द्वादशी तिथि (Dwadashi Tithi): निर्जला एकादशी का व्रत द्वादशी तिथि पर पारण किया जाता है। ज्योतिषीय गणना के अनुसार सही समय का निर्धारण करें। आम तौर पर सूर्योदय के बाद और पारण के लिए निर्धारित समय (जिसे हरि वासर कहा जाता है) से पहले व्रत का पारण किया जाता है।
- जल ग्रहण (Taking Jal): द्वादशी तिथि पर सबसे पहले जल ग्रहण करें। आप तुलसी दल के साथ जल ग्रहण कर सकते हैं।
- सात्विक भोजन (Sattvik Food): जल ग्रहण करने के बाद फलाहार ग्रहण करें। इसके बाद आप सात्विक भोजन ग्रहण कर सकते हैं।
ध्यान दें: निर्जला एकादशी का व्रत काफी कठिन होता है। यदि आप पहली बार व्रत रख रहे हैं, तो अपनी शारीरिक क्षमता का आकलन करें। अस्वस्थ होने पर व्रत न रखें। गर्भवती महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों को भी इस व्रत का पालन करने में सावधानी बरतनी चाहिए।
निर्जला एकादशी व्रत का महत्व (Importance of Nirjala Ekadashi Vrat)
निर्जला एकादशी का व्रत रखने से व्यक्ति को सभी पापों से मुक्ति मिलती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। ऐसा माना जाता है कि इस व्रत के पुण्य से व्यक्ति को साल भर की सभी एकादशियों का फल प्राप्त हो जाता है। निर्जला एकादशी का व्रत कठिन जरूर है, लेकिन इसकी महिमा अपार है।