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रमा एकादशी कथा in Hindi/Sanskrit

एक समय की बात है, जब एक राजा था जिसका नाम मुचुकुंद था। वह भगवान विष्णु का परम भक्त और सत्यवादी था। उसके राज्य में सभी प्रकार की वस्तुओं की प्रचुरता थी। राजा की एक पुत्री भी थी, जिसका नाम चंद्रभागा था। राजा ने अपनी पुत्री का विवाह एक अन्य राजा के पुत्र शोभन से कर दिया। राजा मुचुकुंद और उसके राज्य के सभी निवासी एकादशी व्रत का पालन करते थे और उसके कड़े नियमों का अनुसरण करते थे। यहाँ तक कि उस नगर के पशु भी एकादशी का व्रत रखते थे।

एक दिन, चन्द्रभागा ने सोचा कि उसके पति कमजोर इच्छाशक्ति के हैं और एकादशी का व्रत करना उनके लिए कठिन होगा। उसने अपने पति शोभन को बताया कि उसके पिता के राज्य में सभी, मनुष्यों से लेकर जानवरों तक, एकादशी का व्रत करते हैं। यदि शोभन व्रत नहीं करेंगे तो उन्हें राज्य छोड़ना होगा। यह सुनकर, शोभन ने भी व्रत का पालन करने का निर्णय लिया, परन्तु दुर्भाग्यवश व्रत पूरा होने से पहले ही उनका निधन हो गया। तत्पश्चात, चंद्रभागा अपने पिता के घर लौट आई और पूजा-पाठ में लीन हो गई।

एकादशी व्रत के प्रभाव से, शोभन को अगले जन्म में देवपुर नगरी का राजा बनने का आशीर्वाद प्राप्त हुआ, जहाँ उसे किसी भी वस्तु की कमी नहीं थी। एक दिन, मुचुकुंद के नगर का एक ब्राह्मण शोभन से मिला और उसने उसे पहचान लिया। ब्राह्मण ने नगर लौटकर चंद्रभागा को सारी घटना बताई। यह सुनकर चंद्रभागा अत्यंत प्रसन्न हुई और वह शोभन के पास पहुँची। चंद्रभागा 8 वर्ष की आयु से एकादशी का व्रत कर रही थी और उसने अपना सारा पुण्य शोभन को समर्पित कर दिया। इसके फलस्वरूप, देवपुर नगरी में समृद्धि आ गई। अंततः, चंद्रभागा और शोभन आनंदपूर्वक एक साथ रहने लगे।

रमा एकादशी कथा Video

Rama Ekadashi Vrat Katha in English

Once upon a time, there was a king named Muchukunda. He was a devout follower of Lord Vishnu and was known for his truthfulness. His kingdom was filled with abundance in all types of resources. The king had a daughter named Chandrabhaga, whom he married off to Shobhana, the son of another king. King Muchukunda and all the residents of his kingdom strictly observed the Ekadashi fast and followed its strict rules. Even the animals in that city observed the Ekadashi fast.

One day, Chandrabhaga thought that her husband, Shobhana, had a weak willpower, and she worried that fasting on Ekadashi would be challenging for him. She informed her husband that in her father’s kingdom, everyone, from humans to animals, observed the Ekadashi fast. She added that if Shobhana did not follow the fast, he would have to leave the kingdom. Hearing this, Shobhana decided to observe the fast. However, unfortunately, before completing the fast, he passed away. After this, Chandrabhaga returned to her father’s home and immersed herself in worship.

Due to the effect of the Ekadashi fast, Shobhana was blessed to be reborn as the king of Devpura, a divine city of abundance. One day, a Brahmin from Muchukunda’s city met Shobhana and recognized him. The Brahmin returned to the city and told Chandrabhaga everything he had seen. Upon hearing this, Chandrabhaga was overjoyed and went to meet Shobhana. Since Chandrabhaga had been observing the Ekadashi fast since the age of eight, she dedicated all her accumulated merits to Shobhana. As a result, Devpura became even more prosperous. Ultimately, Chandrabhaga and Shobhana lived together happily and peacefully.

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रमा एकादशी व्रत कब है

रमा एकादशी, जिसे कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी के रूप में मनाया जाता है, साल 2025 में 17 अक्टूबर, शुक्रवार को पड़ेगी। इस दिन भक्तजन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा-अर्चना करते हैं और व्रत रखते हैं।

रमा एकादशी 2025 की तिथि:

  • तारीख: 17 अक्टूबर 2025, शुक्रवार

रमा एकादशी व्रत का पारण कब है

रमा एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि को किया जाता है, जो एकादशी के अगले दिन होती है। 2025 में रमा एकादशी 17 अक्टूबर को मनाई जाएगी। अतः व्रत का पारण 18 अक्टूबर 2025 को किया जाएगा। पारण का समय सूर्योदय के बाद होता है, और इसे द्वादशी तिथि समाप्त होने से पहले करना चाहिए। सटीक पारण समय आपके स्थान के अनुसार भिन्न हो सकता है, इसलिए स्थानीय पंचांग या ज्योतिषी से परामर्श करना उचित होगा।

रमा एकादशी के फल

रमा एकादशी, कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष में आने वाली एकादशी तिथि को मनाई जाती है। यह व्रत भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी को समर्पित है। रमा एकादशी व्रत रखने से अनेक फल प्राप्त होते हैं, जिनमें से कुछ निम्नलिखित हैं:

धार्मिक फल:

  • पापों का नाश: रमा एकादशी व्रत रखने से सभी पापों का नाश होता है।
  • मोक्ष की प्राप्ति: रमा एकादशी व्रत मोक्ष प्राप्ति का द्वार खोलता है।
  • भगवान विष्णु की कृपा: रमा एकादशी व्रत रखने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है।
  • माता लक्ष्मी का आशीर्वाद: रमा एकादशी व्रत रखने से माता लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

सांसारिक फल:

  • सुख-समृद्धि: रमा एकादशी व्रत रखने से जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
  • आरोग्य: रमा एकादशी व्रत रखने से स्वास्थ्य अच्छा होता है।
  • धन-धान्य: रमा एकादशी व्रत रखने से धन-धान्य की वृद्धि होती है।
  • संतान प्राप्ति: रमा एकादशी व्रत रखने से संतान प्राप्ति की इच्छा पूर्ण होती है।

रमा एकादशी व्रत के कुछ विशेष फल:

  • कामधेनु गाय के समान फल: रमा एकादशी व्रत को कामधेनु गाय को घर में रखने के समान फल देने वाला माना जाता है।
  • पितृदोष से मुक्ति: रमा एकादशी व्रत रखने से पितृदोष से मुक्ति प्राप्त होती है।
  • कालसर्प दोष से मुक्ति: रमा एकादशी व्रत रखने से कालसर्प दोष से मुक्ति प्राप्त होती है।

रमा एकादशी व्रत का महत्त्व

रमा एकादशी व्रत भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी को समर्पित है। यह व्रत हर वर्ष मार्गशीर्ष मास (अगहन) के कृष्ण पक्ष में आता है। इस व्रत को रखने से व्यक्ति के पापों का नाश होता है और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।

रमा एकादशी व्रत के कुछ प्रमुख महत्त्व:

  • पापों का नाश: रमा एकादशी व्रत को रखने से व्यक्ति के सभी पापों का नाश होता है।
  • मोक्ष की प्राप्ति: इस व्रत को रखने से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
  • भगवान विष्णु की कृपा: रमा एकादशी व्रत को रखने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है।
  • माता लक्ष्मी की कृपा: इस व्रत को रखने से माता लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है।
  • सुख-समृद्धि: रमा एकादशी व्रत को रखने से व्यक्ति के जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
  • मनोकामनाएं पूर्ण: इस व्रत को रखने से व्यक्ति की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

रमा एकादशी पूजाविधि

दिन: दशमी तिथि को सूर्यास्त के बाद से एकादशी तिथि प्रारंभ होती है।

पूजा सामग्री:

  • भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र
  • फल, फूल, नारियल, सुपारी
  • धूप, दीप, घी
  • पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, गंगाजल)
  • अक्षत, तुलसी दल, चंदन
  • मिष्ठान
  • दान के लिए दक्षिणा, फल, वस्त्र

पूजा विधि:

  1. स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  2. पूजा स्थान को साफ करके चौकी रखें और उस पर भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
  3. आसन बिछाकर बैठें और भगवान विष्णु का ध्यान करें।
  4. दीप प्रज्वलित करें और धूप अर्पित करें।
  5. पंचामृत से भगवान विष्णु का अभिषेक करें।
  6. अक्षत, तुलसी दल, चंदन और फूल अर्पित करें।
  7. भगवान विष्णु को मिष्ठान का भोग लगाएं।
  8. आरती करें और भगवान विष्णु से प्रार्थना करें।
  9. रात्रि जागरण करें और भगवान विष्णु के मंत्रों का जाप करें।

अगले दिन:

  1. सुबह स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  2. फिर से भगवान विष्णु की पूजा करें।
  3. ब्राह्मण को भोजन करवाएं, अन्न, वस्त्र दान करें और दक्षिणा दें।
  4. तत्पश्चात स्वयं पारण करें।

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