आंख फरुके बोले कागलियो,
म्हारो हरसे छे हिवड़ो आज,
सांवरियो आवेलो,
म्हारो हरसे छे हिवड़ो आज,
सांवरियो आवैलो,
आंख फरुके बोले कागलियो ॥
मनड़े रो मीत मिलन म्हासू आवे,
मन हरसे नैणां नीर बहावे,
मैं तो घणो ही करुला मनवार,
सांवरियो आवैलो,
आंख फरुके बोले कागलियो ॥
भोऴो सो पंछी हूं नेम ना जाणूं,
पूजा विधि कोई मंत्र ना जाणू,
मैं तो जाणूं जाणूं बस थारो नाम,
सांवरियो आवैलो,
आंख फरुके बोले कागलियो ॥
मिलस्यां बाबाजी थासू बातां करालां,
मनड़े री सारी मैं आज कवालां,
थासुं मिलने रो मनड़े में चाव.
सांवरियो आवैलो,
आंख फरुके बोले कागलियो ॥
गुण अवगुण म्हारा ध्यान न दीजों,
दृष्टि दया की बाबा म्हारे पे किजों,
म्हाने थारो ही है इक आधार,
सांवरियो आवैलो,
आंख फरुके बोले कागलियो ॥
आंख फरुके बोले कागलियो,
म्हारो हरसे छे हिवड़ो आज,
सांवरियो आवेलो,
म्हारो हरसे छे हिवड़ो आज,
सांवरियो आवैलो,
आंख फरुके बोले कागलियो ॥
सांवरियो आवेलो: भजन का सम्पूर्ण अर्थ
इस भजन “सांवरियो आवेलो” में भक्त अपने ईष्ट सांवरे (कृष्ण) के आने पर हर्षोल्लास का अनुभव कर रहा है। हर पंक्ति में भावनाओं का एक नया आयाम है। आइए इस भजन की प्रत्येक पंक्ति का अर्थ विस्तार से समझते हैं।
पहला छंद: सांवरे के आगमन से हृदय की प्रसन्नता
आंख फरुके बोले कागलियो,
कागलियो (काग) यह देखकर बोलने लगा कि सांवरे का आगमन हुआ है। यह पंक्ति प्रकृति और जीवों की संवेगशीलता को दर्शाती है जो भगवान के आगमन की सूचना देती है।
म्हारो हरसे छे हिवड़ो आज, सांवरियो आवेलो
मेरे हृदय में आज विशेष आनंद है क्योंकि सांवरे आए हैं। “हिवड़ो” हृदय का प्रतीक है, जिसमें भक्ति और प्रेम उमड़ रहा है।
आंख फरुके बोले कागलियो
काग का फिर से बोलना यह दर्शाता है कि संपूर्ण प्रकृति और जीव-जंतु भगवान के आगमन से आह्लादित हैं।
दूसरा छंद: मन के साथी का मिलन
मनड़े रो मीत मिलन म्हासू आवे
मन का मित्र यानी सांवरे से मिलन की यह अभिलाषा भक्त के हृदय में उथल-पुथल पैदा कर रही है।
मन हरसे नैणां नीर बहावे
मन की प्रसन्नता आंखों से आंसू के रूप में बह रही है। यह भक्त की गहन भक्ति को दर्शाता है।
मैं तो घणो ही करुला मनवार, सांवरियो आवेलो
मैंने बहुत आग्रह किया था, और अब मेरे सारे इंतजार का फल मिल गया है – सांवरे आए हैं।
तीसरा छंद: भोलेपन का भाव
भोऴो सो पंछी हूं नेम ना जाणूं
मैं एक भोला पंछी हूं, मुझे विधियों का ज्ञान नहीं है। यह पंक्ति भक्ति में भोलेपन और सरलता को दर्शाती है।
पूजा विधि कोई मंत्र ना जाणू
मुझे पूजा का कोई विधि-विधान या मंत्र ज्ञात नहीं है। यह भक्त के सीधापन और सीधे प्रेम को दर्शाता है।
मैं तो जाणूं जाणूं बस थारो नाम, सांवरियो आवेलो
मैं केवल तुम्हारा नाम जानता हूं, सांवरे। यह कहता है कि नाम ही मेरी भक्ति का आधार है।
चौथा छंद: संत के साथ संगत का आनंद
मिलस्यां बाबाजी थासू बातां करालां
जब मैं बाबाजी (संत) के साथ मिलूंगा, तो हम ढेर सारी बातें करेंगे।
मनड़े री सारी मैं आज कवालां
आज मैं अपने मन की सारी बातें साझा करूंगा। यह संत और भगवान की संगत का आनंद है।
थासुं मिलने रो मनड़े में चाव
मन में बाबाजी और भगवान के मिलने का आनंद है, और यह मेरे हृदय में एक विशेष प्रसन्नता का संचार कर रहा है।
पांचवा छंद: भगवान की करुणा की याचना
गुण अवगुण म्हारा ध्यान न दीजों
मेरे गुण-दोषों पर ध्यान न दें, हे सांवरे। भक्त अपनी क्षमताओं की सीमाओं को स्वीकार करता है और करुणा की याचना करता है।
दृष्टि दया की बाबा म्हारे पे किजों
मुझ पर कृपा-दृष्टि डालें, हे बाबा। यह पंक्ति भक्त की गहरी विनम्रता और आश्रय की भावना को दर्शाती है।
म्हाने थारो ही है इक आधार
आप ही मेरे एकमात्र सहारा हैं, हे सांवरे। इस पंक्ति में भक्त का पूर्ण समर्पण झलकता है।
समापन छंद: सांवरे के आगमन का पुनः उत्साह
आंख फरुके बोले कागलियो,
काग का बोलना पुनः संकेत देता है कि भगवान का स्वागत हो चुका है।
म्हारो हरसे छे हिवड़ो आज, सांवरियो आवेलो
मेरे हृदय में अपार हर्ष का संचार हो रहा है, क्योंकि सांवरे आए हैं।
इस भजन में हर पंक्ति के माध्यम से भक्त के हृदय में उमड़ती भावनाओं को शब्दों में उकेरा गया है। यह भजन भक्त और भगवान के रिश्ते को प्रकट करता है, जो प्रेम, समर्पण, और साधारण भक्ति से सराबोर है।