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पार्श्व एकादशी कथा in Hindi/Sanskrit

कथा आरंभ:

कुरुक्षेत्र युद्ध के दौरान, श्रीकृष्ण ने राजा युधिष्ठिर को धर्म और नीति की शिक्षा देते हुए, भगवान विष्णु के वामन अवतार की कथा सुनाई।

बलि राजा की भक्ति:

त्रेतायुग में, बलि नामक एक दैत्य राजा था। वह भगवान विष्णु का परम भक्त था और विविध प्रकार के वेद मंत्रों से उनका पूजन करता था। बलि ने अनेक यज्ञ संपन्न किए और ब्राह्मणों को दान दिया।

इंद्र से युद्ध और देवताओं की पराजय:

इंद्र, बलि की शक्ति और पराक्रम से ईर्ष्या करते थे। उनके बीच युद्ध हुआ, जिसमें बलि ने इंद्र और देवताओं को पराजित कर दिया।

देवताओं की शरणागति और वामन अवतार:

पराजित देवता भगवान विष्णु की शरण में गए। भगवान ने उनकी रक्षा का वचन दिया और वामन रूप धारण कर बलि के पास गए।

तीन पग भूमि की याचना:

वामन रूप में, भगवान विष्णु ने बलि से तीन पग भूमि दान में मांगी। बलि, भगवान की भक्ति में लीन, बिना किसी शर्त के दान देने को तैयार हो गए।

त्रिविक्रम रूप और बलि का बलिदान:

वामन रूप धारण किए हुए भगवान विष्णु ने अपना विशाल रूप धारण किया। उन्होंने अपने पहले पग से पृथ्वी और दूसरे पग से स्वर्ग लोक नाप लिया। तीसरे पग के लिए स्थान न होने पर, बलि ने अपना मस्तक आगे कर दिया। भगवान ने अपना पैर बलि के मस्तक पर रख दिया, जिससे बलि पाताल लोक चले गए।

बलि की भक्ति का सम्मान:

बलि की अटूट भक्ति और त्याग से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उन्हें सदैव अपने पास रहने का वरदान दिया।

कथा का महत्व:

भगवान विष्णु के वामन अवतार की कथा, सत्य, न्याय, दान, और भक्ति का महत्व दर्शाती है। यह सिखाती है कि भगवान सदैव अपने भक्तों की रक्षा करते हैं और दानवीरता तथा त्याग का सदैव सम्मान करते हैं।

कथा का समापन:

भगवान विष्णु की वामन अवतार कथा, युधिष्ठिर के मन में धर्म और कर्तव्य की भावना को दृढ़ करती है।

अतिरिक्त जानकारी:

  • भगवान विष्णु का वामन अवतार, भाद्रपद शुक्ल एकादशी को मनाया जाता है।
  • इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से विशेष फल प्राप्त होते हैं।

पार्श्व एकादशी कथा Video

Parsva Ekadashi Vrat Katha in English

Beginning of the Story

During the Kurukshetra war, Lord Krishna taught King Yudhishthira the principles of dharma (righteousness) and niti (moral policy) by narrating the story of Lord Vishnu’s Vamana avatar.

The Devotion of King Bali

In the Treta Yuga, there was a demon king named Bali. He was a great devotee of Lord Vishnu and worshiped him with various Vedic mantras. Bali performed many sacrifices (yajnas) and generously donated to Brahmins.

The Battle with Indra and the Defeat of the Gods

Indra, the king of the gods, was envious of Bali’s power and valor. A battle ensued between them, in which Bali defeated Indra and the other gods.

The Gods’ Surrender and the Vamana Avatar

The defeated gods then sought refuge with Lord Vishnu. The Lord promised to protect them and assumed the form of Vamana, a dwarf Brahmin, to approach Bali.

The Request for Three Paces of Land

In his Vamana form, Lord Vishnu asked Bali to grant him three paces of land as alms. Immersed in devotion, Bali agreed to the request without any conditions.

The Trivikrama Form and Bali’s Sacrifice

After receiving Bali’s consent, Lord Vishnu expanded into his Trivikrama form. With his first step, he measured the entire earth, and with his second step, he measured the heavens. When there was no place left for the third step, Bali offered his own head. Lord Vishnu placed his foot on Bali’s head, sending him to the netherworld (Patal Lok).

Honoring Bali’s Devotion

Pleased with Bali’s unwavering devotion and sacrifice, Lord Vishnu blessed him with the boon of staying forever in his divine presence.

The Significance of the Story

The story of Lord Vishnu’s Vamana avatar emphasizes the values of truth, justice, charity, and devotion. It teaches that the Lord always protects his devotees and honors generosity and sacrifice.

Conclusion of the Story

The story of Lord Vishnu’s Vamana avatar reinforces the spirit of dharma and duty in the mind of Yudhishthira.

Additional Information

  • Lord Vishnu’s Vamana avatar is celebrated on Bhadrapada Shukla Ekadashi.
  • Worshiping Lord Vishnu on this day brings special blessings.

पार्श्व एकादशी कथा PDF Download

पार्श्व एकादशी व्रत कब है

पार्श्व एकादशी, जिसे परिवर्तिनी एकादशी भी कहा जाता है, हिंदू पंचांग के अनुसार भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है। साल 2025 में यह व्रत 3 सितंबर, बुधवार को पड़ेगा। 

पार्श्व एकादशी 2025 के महत्वपूर्ण समय:

  • एकादशी तिथि प्रारंभ: 2 सितंबर 2025 को रात 10:20 बजे
  • एकादशी तिथि समाप्त: 3 सितंबर 2025 को रात 11:36 बजे

पार्श्व एकादशी व्रत का पारण कब है

पार्श्व एकादशी, जिसे परिवर्तिनी एकादशी भी कहा जाता है, 2025 में 3 सितंबर को मनाई जाएगी। इस व्रत का पारण (व्रत तोड़ने का समय) 4 सितंबर 2025 को होगा। पारण का शुभ मुहूर्त सूर्योदय के बाद से द्वादशी तिथि की समाप्ति तक होता है। सटीक पारण समय स्थान और पंचांग के अनुसार भिन्न हो सकता है, इसलिए अपने क्षेत्र के स्थानीय पंचांग या विश्वसनीय स्रोत से परामर्श करना उचित होगा।

पार्श्व एकादशी के फल

पार्श्व एकादशी जिसे वामन एकादशी भी कहा जाता है, हिन्दू कैलेंडर के भाद्रपद महीने में मनाई जाती है। यह विशेष रूप से भगवान विष्णु के वामन अवतार को समर्पित है। इस दिन उपवास रखने और विषेष पूजा-अर्चना करने का महत्व होता है। पार्श्व एकादशी के फल इस प्रकार हैं:

  1. धार्मिक लाभ: इस दिन उपवास करने वाले भक्तों को विशेष धार्मिक फल प्राप्त होता है। भक्तों का मानना है कि यह उपवास उन्हें आध्यात्मिक शुद्धि प्रदान करता है और उनके पापों का नाश करता है।
  2. मोक्ष की प्राप्ति: हिन्दू धर्म में माना जाता है कि पार्श्व एकादशी के दिन विष्णु भक्ति में लीन होने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।
  3. संकटों से मुक्ति: यह एकादशी विशेष रूप से संकटों और कठिनाइयों से मुक्ति दिलाने में सहायक मानी जाती है। इस दिन की गई पूजा और व्रत से जीवन के विभिन्न प्रकार के संकट दूर होते हैं।
  4. भौतिक और आध्यात्मिक समृद्धि: इस दिन के व्रत से न केवल आध्यात्मिक बल्कि भौतिक समृद्धि भी बढ़ती है। भक्तों का मानना है कि यह व्रत उन्हें धन और स्वास्थ्य में वृद्धि प्रदान करता है।

पार्श्व एकादशी व्रत का महत्त्व

हिंदू धर्म में पार्श्व एकादशी, जिसे परिवर्तिनी एकादशी या क्षीरदायिनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है, एक महत्वपूर्ण व्रत माना जाता है। यह व्रत वर्ष में दो बार आता है, एक बार शुक्ल पक्ष में और एक बार कृष्ण पक्ष में।

पार्श्व एकादशी व्रत का धार्मिक महत्व

  • पापों का नाश: ऐसा माना जाता है कि पार्श्व एकादशी का व्रत रखने से सभी प्रकार के पापों का नाश होता है।
  • पुण्य की प्राप्ति: इस व्रत को रखने से पुण्य की प्राप्ति होती है और मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होता है।
  • भगवान विष्णु की कृपा: भगवान विष्णु की पूजा और व्रत रखने से भक्तों को उनकी विशेष कृपा प्राप्त होती है।
  • ग्रहों के दोषों का निवारण: पार्श्व एकादशी का व्रत ग्रहों के दोषों को दूर करने में भी सहायक होता है।
  • मनोकामनाओं की पूर्ति: भगवान विष्णु की पूजा और व्रत रखने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

पार्श्व एकादशी व्रत का सामाजिक महत्व

  • दान-पुण्य: पार्श्व एकादशी के अवसर पर दान-पुण्य करने का विशेष महत्व होता है।
  • समानता: इस व्रत को सभी जाति, धर्म और लिंग के लोग रख सकते हैं।
  • समाजिक कुरीतियों का नाश: व्रत रखने से सात्विक विचारों को बढ़ावा मिलता है और सामाजिक कुरीतियों का नाश होता है।

पार्श्व एकादशी व्रत का वैज्ञानिक महत्व

  • स्वास्थ्य लाभ: पार्श्व एकादशी के व्रत में सात्विक भोजन ग्रहण करने से शरीर और मन स्वस्थ रहता है।
  • मन पर नियंत्रण: व्रत रखने से मन पर नियंत्रण रखने में मदद मिलती है।
  • एकाग्रता में वृद्धि: व्रत रखने से एकाग्रता और स्मरण शक्ति बढ़ती है।

पार्श्व एकादशी पूजाविधि

दसमी तिथि

  • दसमी तिथि को सूर्यास्त से पहले भोजन ग्रहण करें।
  • घर की साफ-सफाई करें और पूजा स्थान को स्वच्छ रखें।
  • भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित करें।

एकादशी तिथि

सुबह

  • सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र पहनें।
  • एकाग्रचित होकर भगवान विष्णु का ध्यान करें।
  • व्रत का संकल्प लें।
  • भगवान विष्णु की पूजा करें।
  • उनके सामने दीप, धूप, नैवेद्य और फल अर्पित करें।
  • “ॐ नमो नारायणाय” मंत्र का जाप करें।
  • गाय को दूध, फल और फूल खिलाएं।
  • दिनभर फलाहार ग्रहण करें।

शाम

  • सूर्यास्त के बाद फिर से स्नान करें।
  • भगवान विष्णु की आरती करें।
  • फिर से भोजन ग्रहण करें।

रात

  • रात में जागरण करें और भगवान विष्णु के भजन गाएं।
  • दूसरे दिन द्वादशी तिथि को सूर्योदय के बाद पारण करें।

पार्श्व एकादशी व्रत के दौरान कुछ नियम

  • व्रत के दौरान अन्न, लहसुन, प्याज, मांस, मदिरा और नमक का सेवन नहीं करना चाहिए।
  • दिनभर सत्य बोलना चाहिए और किसी से क्रोध नहीं करना चाहिए।
  • दान-पुण्य करना चाहिए।
  • ब्राह्मणों को भोजन खिलाना चाहिए।

पार्श्व एकादशी व्रत का पारण

  • द्वादशी तिथि को सूर्योदय के बाद पारण करें।
  • सबसे पहले भगवान विष्णु की पूजा करें।
  • फिर फलों और मिठाइयों का भोजन ग्रहण करें।
  • बाद में दान-पुण्य करें।

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