- – यह गीत भगवान शिव के कैलाश पर्वत की ओर जाने का वर्णन करता है, जहां नगाड़े और डमरू की ध्वनि गूंज रही है।
- – नंदी बैल पर सवार शिव शंकर त्रिपुरारी के रूप में गौरा माता के साथ चल रहे हैं।
- – देवता और मुनि शिव की लीला का प्रकाश देखकर फूल बरसा रहे हैं और महादेव की स्तुति कर रहे हैं।
- – मृत्युलोक में शम्भू के आगमन से सभी भक्तों में उत्साह और भक्ति की लहर दौड़ गई है।
- – भक्त अपनी आँखों में शिव के दर्शन की लालसा लिए, अपने आपको उनके चरणों का दास मानते हैं।
- – पूरे वातावरण में शिव शंकर के कैलाश जाने की गूंज और नगाड़ों की आवाज़ से भक्तों का आकाश गूंज रहा है।

शिव शंकर चले कैलाश,
नगाड़े बजने लगे,
बजने लगे हां बजने लगे,
बजने लगे बजने लगे,
भक्तो गूंज रहा आकाश,
नगाड़े बजने लगे,
शिव शंकर चलें कैलाश,
नगाड़े बजने लगे।।
नंदी बैल की करके सवारी,
देखो चले बाबा त्रिपुरारी,
संग चली है गौरा मात,
नगाड़े बजने लगे,
शिव शंकर चलें कैलाश,
नगाड़े बजने लगे।।
फूल बरसाए देवता सारे,
मुनिजन सब महादेव पुकारे,
उनकी लीला का हुआ प्रकाश,
नगाड़े बजने लगे,
शिव शंकर चलें कैलाश,
नगाड़े बजने लगे।।
डमरू नाद और शंख गूंजा रे,
मृत्युलोक में शम्भू पधारे,
सब भक्त लगाए आस,
नगाड़े बजने लगे,
शिव शंकर चलें कैलाश,
नगाड़े बजने लगे।।
कहे ‘धीरान’ है शिव अविनाशी,
अँखियाँ है दर्शन की प्यासी,
मैं तो तेरे चरण का दास,
एक तुम अपने लगे,
शिव शंकर चलें कैलाश,
नगाड़े बजने लगे।।
शिव शंकर चले कैलाश,
नगाड़े बजने लगे,
बजने लगे हां बजने लगे,
बजने लगे बजने लगे,
भक्तो गूंज रहा आकाश,
नगाड़े बजने लगे,
शिव शंकर चलें कैलाश,
नगाड़े बजने लगे।।
स्वर – अंजलि जैन।
